मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा, उप्र चुनावों में भी धर्मं संसद मुद्दा बनाभाजपा में शीर्ष पदों पर बैठे जिम्मेदार नेता इस मसले पर चुपभाजपा को प्रमाणपत्र देने की आवश्यकता नहीं: केशव प्रसाद मौर्यबीबीसी के साथ जो हरकत उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ दल द्वारा की गई, उसकी गूंज बहुत दूर तक सुनाई देगी] अशोक कुमार कौशिक उत्तरप्रदेश चुनावों में भाजपा सत्ता में फिर से लौटने के लिए हर तरह की रणनीति अपना रही है और इसमें सांप्रदायिक कार्ड सबसे अधिक इस्तेमाल में ला रही है। प्रधानमंत्री मोदी भले ही सबका साथ, सबका विकास का नारा दें, लेकिन जब बात सत्ता की आती है तो भाजपा हिंदू राष्ट्र, हिंदू गौरव की बात करने लगती है। यह अनायास नहीं है कि विधानसभा चुनावों से पहले आयोजित धर्म संसदों में खुलेआम सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की बातें हुई। हरिद्वार के बाद रायपुर की धर्म संसद में अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काऊ बयान दिए गए। रायपुर धर्म संसद में तो पुलिस कार्रवाई भी की गई है, आरोपी कालीचरण को छत्तीसगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया। लेकिन हरिद्वार धर्म संसद में एफ़आईआर दर्ज होने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है। उप्र चुनावों में भी धर्मं संसद एक मुद्दा बन चुका है, जिस पर विपक्षी दल भाजपा को घेर सकते हैं। भाजपा का धर्म संसद के मुद्दे पर क्या रुख है, यह अब तक ज़ाहिर नहीं हो पाया है, क्योंकि भाजपा में शीर्ष पदों पर बैठे जिम्मेदार नेता इस मसले पर चुप ही हैं। और जब उनसे इस बारे में सवाल किया जाए, तो यह भी उन्हें पसंद नहीं आता। इस बात की ताजा मिसाल उत्तरप्रदेश से ही सामने आई है, जिसमें उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने न केवल जवाब देने से बचने की कोशिश की, बल्कि सवाल पूछने वाले को एजेंट भी करार दे दिया। दरअसल केशव प्रसाद मौर्य से बीबीसी ने हाल ही में उप्र चुनावों से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर साक्षात्कार लिया। बीबीसी के संवाददाता ने इस दौरान श्री मौर्य से अखिलेश यादव के डिजिटल प्रचार वाले बयान, माफिया पर कार्रवाई, आदित्यनाथ योगी के चुनाव लड़ने आदि पर सवाल पूछे। इन सारे सवालों के जवाब केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी लाइन के अनुसार दिए। लेकिन जब उनसे धर्म संसद के मंच से कही गयी बातों पर बीबीसी संवाददाता ने सवाल किए, तो पहले केशव प्रसाद मौर्य असहज हो गए। उनसे हरिद्वार की धर्म संसद के मंच से दिए गए भड़काऊ भाषणों पर मुख्यमंत्री की चुप्पी पर सवाल किए गए कि क्या आप लोगों को बयान देकर लोगों को आश्वस्त नहीं करना चाहिए कि आप किसी धर्म विशेष के ख़िलाफ़ नहीं हैं? इसके जवाब में श्री मौर्य ने कहा कि, ‘भाजपा को प्रमाणपत्र देने की आवश्यकता नहीं है। हम सबका साथ सबका विकास करने में विश्वास रखते हैं। धर्माचार्यों को अपनी बात अपने मंच से कहने का अधिकार होता है। आप हिन्दू धर्माचार्यों की ही बात क्यों करते हो? बाकी धर्माचार्यों के बारे में क्या क्या बयान दिए गए हैं। उनकी बात क्यों नहीं करते हो। आप जब सवाल उठाओ तो फिर सवाल सिर्फ़ एक तरफ़ के नहीं होने चाहिए। केशव प्रसाद मौर्य ने ये भी कहा कि धर्म संसद भाजपा की नहीं है, वो संतों की होती है। संत अपनी बैठक में क्या कहते हैं, क्या नहीं कहते हैं, यह उनका विषय है।’ इसके बाद भी राजद्रोह, मौलिक अधिकार, आदि पर तक़रीबन दस मिनट तक सवालों के जवाब देने के बाद उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बीबीसी के रिपोर्टर से कहा कि वे केवल चुनाव के बारे में सवाल पूछें। जब उन्हें कहा गया कि यह मामला चुनाव से जुड़ा हुआ है, इस पर उप-मुख्यमंत्री भड़क गए और उन्होंने रिपोर्टर से कहा कि आप पत्रकार की तरह नहीं, बल्कि किसी के ‘एजेंट’ की तरह बात कर रहे हैं, इसके बाद उन्होंने अपनी जैकेट पर लगा माइक हटा दिया। उन्होंने बातचीत वहीं रोक दी और कैमरा बंद करने के लिए कहा। बीबीसी का दावा है कि उसके बाद उन्होंने बीबीसी रिपोर्टर का कोविड मास्क खींचा और सुरक्षाकर्मियों को बुलाकर वीडियो जबरन मिटा दिया। बीबीसी ने इस घटना पर गंभीर एतराज़ जताते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष,भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री को आधिकारिक तौर पर एक शिकायत भेजी है, लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया है। उपमुख्यमंत्री मौर्य शायद रिकार्डिंग मिटाकर मामले को रफा-दफा करना चाहते थे, मगर कैमरे में लगी चिप के कारण सारी रिकार्डिंग फिर से हासिल कर ली गई, जिसे बीबीसी ने अब प्रसारित भी कर दिया है। भाजपा के शासनकाल में देश में मीडिया की स्वतंत्रता पर मंडराते खतरे को लेकर कई बार सवाल उठे हैं। देश में मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अब खुद को राष्ट्रवादी मीडिया कहने लगा है, जिसे निष्पक्ष सोच और पत्रकारिता के हिमायती लोग गोदी मीडिया का विशेषण देते हैं। गोदी मीडिया के पत्रकार सत्ता के लिए समर्पित होकर काम करते हैं और कभी भी सरकार से ऐसे सवाल नहीं करते जिनसे सरकार को तक़लीफ हो। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि भाजपा का वरदहस्त इन पत्रकारों को प्राप्त है। लेकिन बीबीसी जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान के साथ कथित तौर पर जो हरकत उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ दल द्वारा की गई है, उसकी गूंज बहुत दूर तक सुनाई देगी। मीडिया को आसानी से मैनेज करने यानी संभाल लेने का दंभ पालने वाले नेताओं को इस प्रकरण से तक़लीफ हो सकती है और हो सकता है आगामी चुनाव में यह मामला भाजपा के खिलाफ जाए। देखना होगा कि भाजपा किस तरह इस मामले को संभालती है, किस तरह विपक्षी दल इसे चुनावों में बड़ा मुद्दा बनाते हैं और पत्रकारों के हितों की रक्षा करने वाले संस्थान इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं। Post navigation जहां गौमाता सुखचैन व अमन की सांस लेती है वही साक्षात रूप में भगवान निवास करते हैं:रामबिलास शर्मा सीएम चेहरे पर चर्चा