भक्ति मार्ग में जो अड़चन पैदा करे, उसे  अविलम्ब त्याग दें : कंवर साहेब

भिवानी जयवीर फोगाट

01 जनवरीहर आने वाला दिन एक नया सन्देश लेकर आता है। उस आने वाले नए दिन का बड़ा रूप नववर्ष के नाम से जाना जाता है। नववर्ष का पहला दिन आत्मचिंतन का होता है कि हमने विगत वर्ष में क्या खोया और क्या पाया।दुनियादारी में भी यदि हम पूरे वर्ष के नफा नुकसान का आकलन करते हैं तो जिस शक्ति से हमारा सर्वस्व चलता है, जिसने हमें इतना सुंदर शरीर दिया, ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियां दी हम शक्ति के संदर्भ में अपना आत्मचिंतन क्यों नहीं करते कि उस सर्वशक्तिमान को, उस दयाल को हमने विगत वर्ष में कितना समय दिया। अगर हम इस दृष्टिकोण से साल का लेखा-जोखा देखे तो सही मायने में नफा नुकसान निकलेगा। हुजूर महाराज जी ने संगत को आने वाले वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि एक तासीर ऐसी है जिसको हम प्राप्त कर लें तो सब कुछ हमारे हाथ में हो। वो तासीर है सन्तो की शरणाई। सन्तो की संगत से अभिशाप भी वरदान बन जाता है।

रामायण का जिक्र करते हुए गुरु जी ने फरमाया कि उस मालिक की रजा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। महाराज जी ने कहा कि जल की सँगत से ठंडक और आग के सामीप्य से गर्माहट मिलेगी। इसी प्रकार परमात्मा के नाम की ये खूबी है कि जितना उसका संग करोगे उतने ही निखालिश होते चले जाओगे। गुरु महाराज जी ने कहा कि सन्तो की कृपा ही है कि इस जीवन में सब कार्य करते हुए ही हम भक्ति भी कमा सकते हैं। सच्चाई के साथ अपना कर्म करते चलो आपको फल भी उत्तम मिलेगा। उन्होंने फरमाया की ये नहीं हो सकता कि तुम करो तो बुरा लेकिन कामना अच्छे की करो। भक्ति यदि प्रेम पर आधारित हो तो उसका कहना ही क्या। जहां प्रेम नहीं वहां भक्ति नहीं और जहां भक्ति नहीं वहां परमात्मा नहीं। उन्होंने कहा कि प्रेम करना तो सबसे आसान है। प्रेम के लिए किसी संचय की नहीं अपितु त्याग की समर्पण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मीरा बाई का उद्धाहरण सबके सामने है। मीरा के खिलाफ पूरी दुनिया थी लेकिन वो अपने प्रेम के प्रति दृढ़ थी। ऐसा प्रेम की पूरी दुनिया फीकी लगती थी। गुरु जी ने कहा कि जो भक्ति के मार्ग में अड़चन पैदा करते हैं, परमात्मा और गुरु से बिछोह देते हैं उनका अविलम्ब त्याग कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जैसे विभीषण ने रावण को त्याग दिया, जैसे भक्त प्रह्लाद ने अपने पिता को त्याग दिया। 

गुरु महाराज जी ने कहा कि इंसान द्वारा मंदिरों में तो हम अच्छे आचरण का प्रदर्शन करते हैं लेकिन परमात्मा के असल निवास स्थान हमारे शरीर रूपी इस चेतन मंदिर की हम कद्र ही नहीं करते। उन्होंने कहा कि हम परमात्मा की तलाश वहां तो करते हैं जहां वो नहीं है लेकिन जहां वो है वहां हम झांकते ही नहीं। गुरु जी ने कहा कि परमात्मा का निवास तो आपके अपने अंतर्मन में है। इसलिए परमात्मा को बाहर नहीँ अपने अंतर में खोजो। इस खोज के लिए केवल “तप, त्याग और साधना” की आवश्यकता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि परमात्मा कोई रोक टोक नहीं करता।वो सब कर्म करने की आजादी देता है।

गुरु महाराज जी एक प्रसंग सुनाते हुए कहा एक बादशाह अपने वजीर से पूछा कि परमात्मा कैसे मिल सकता है। वजीर विवेकी था। बोला परमात्मा तो गुरु के रूप में अपने प्रेमियों को स्वयं सम्भाल करता है। राजा बोला कि कैसे। वजीर ने कहा समय आने पर मैं इसका जवाब दूंगा।

 एक वजीर ने राजकुमार जैसा एक पुतला बनाया और राजा के देखते हुए उसे पानी में धक्का दे दिया। राजा ने सोचा कि राजकुमार पानी में गिर गया। उसने एक पल की देरी किये बिना पानी में छलांग लगा दी। बाहर आने पर वजीर ने पूछा कि जहाँपनाह आप पानी में क्यों कूदे।राजा ने कहा कि मुझे लगा कि राजकुमार पानी में गिर गया। वजीर बोला फिर भी बादशाह यहाँ इतने नौकर चाकर सैनिक थे तो आप ने क्यों कष्ट किया। राजा बोला कि मेरा पुत्र डूब रहा था तो मैं इंतज़ार कैसे कर सकता था। वजीर बोला कि यही मेरी बात का जवाब है कि जब परमात्मा भी अपने पुत्रों को मुसीबत में देखता है तो वह भी इंतज़ार नहीं करता वह अविलम्ब प्रकट हो जाता है। राजा को अपने वर्शन का जवाब मिल गया। 

गुरु महाराज जी ने कहा कि परमात्मा जीवो के कल्याण के लिए सन्त रूप में प्रकट होते हैं। उन्होंने कहा कि सन्त सभी एक घर से आते हैं और नामभेद देकर जीव चेताते हैं। उन्होंने कहा कि सन्त सतगुरु पूर्ण होना चाहिए। पूर्ण सन्त वो है जो आपकी कुमति हर कर सुमती को जगा दे। जो गुरु आपको भटकाता है उसे तुरंत तज दो। उन्होंने कहा कि जो आपको परोपकार और परमार्थ के रास्ते से भटकाते हैं उनका त्याग करने में कोई बुराई नहीं है। 

उन्होंने कहा कि सन्तो ने बार बार ये हेला मारा है कि बेटा यदि नालायक हो मित्र अगर स्वार्थी हो तो इनको तुरन्त त्याग दो। इसी प्रकार निर्मोही माता, निर्लज्ज नारी, कामी सन्यासी और नमकहराम नौकर को भी तुरन्त ही छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसी कड़ी में गुरु यदि लालची हो और चेला आलसी हो तो उनका त्याग करने में भी कोई बुराई नहीं है। उन्होंने कहा कि अपनी हस्ती को मिटाने वाला ही नए पंथ का निर्माण करता है। जैसे एक दाना अपनी हस्ती को मिटा कर लाखो दाने पैदा कर देता है वैसे ही कोई बिरला गुरु का प्यारा अपनी हस्ती मिटा कर गुरु के सत्कार्य में चार चांद लगा देता है। उन्होंने कहा कि भक्ति में जो लग्न आप शुरू में लगाते हो अगर वहीं लग्न आप निरन्तर लगाए रखो तो आप ना सिर्फ अपना बल्कि करोड़ो का कल्याण कर देते हो।

हुजूर महाराज जी ने कहा कि अगर नववर्ष को यदि सही मायने में सार्थक करना चाहते हो तो आज मन में यह संकल्प धारो कि जो बीत गया उससे सबक लेकर जो बुरा था उसका पूर्ण त्याग करो और जो अच्छा था उसका और विस्तार करो। अपने जीवन को परोपकार और परमार्थ के रास्ते पर डालो। मत भूलो कि परमात्मा सबके अंतर में समाया है सो हम बुरा किसी इंसान का नहीं बल्कि परमात्मा का करते हैं। घर परिवार में सुविचारों का प्रसार करो। कथनी और करनी को एक करो। काम को त्यागना चाहते हो तो मन की कल्पनाओं को त्यागो क्योंकि जितनी मन की कल्पनाएं हैं वो सब काम का ही रूप हैं। प्रेम करना सीखो। प्रेम भी केवल परमात्मा से रखी। ईर्ष्या द्वेष आशाओं व तृष्णाओं पर अंकुश लगाओ। मन को मारो मत बल्कि मन को काबू में करना सीखो। उन्होंने कहा कि सत्संग में जाओ तो तीन चीज खोल कर जाओ। आंखे खुली रख कर गुरु के दर्शन करो। कान खुले रख कर गुरु के वचन सुनो और मन खुला रख कर गुरु वचनों को आत्मसात करो उनके वचनों का चिंतन करो।

गुरु महाराज जी ने इस अवसर पर रक्तदान शिविर का भी उद्धघाटन किया जिसमें 150 यूनिट रक्त का दान किया गया। गुरु महाराज जी ने आज भिवानी शाखा में नवनिर्मित सन्त निवास का भी शुभारम्भ किया।

नोट:-नववर्ष पर आयोजित यह सत्संग कोविड नियमों की पालना करते हुए आयोजित किया गया।