अशोक कुमार कौशिक बीते कल सुबह दोस्तों को क्रिसमस की बधाई दी तो कुछ अजीब अजीब से रिप्लाई आने शुरू हो गए, धर्म की दुहाई, तुलसी पूजन दिवस और ये सब। पहली बात तो ये कि हिंदू धर्म में कोई भी त्यौहार तिथि के अनुसार होता है, ना कि अंग्रेजी तारीख के अनुसार। जैसे कि 25 दिसंबर 2019 पौष मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, 25 दिसंबर 2020 मार्गशीष मास की शुक्ल पक्ष एकादशी, 25 दिसंबर 2021 पौष मास की कृष्ण पक्ष षष्ठी। तो 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस हो कैसे गया? और किसी भी त्यौहार को मनाने के पीछे एक कहानी होती है। दिवाली, होली, नवरात्रि सभी की एक कहानी। तुलसी पूजन की क्या कहानी है?किसको उल्लू बना रहे हो ? हिन्दू त्यौहार ग्रेगेरियन कैलेंडर के हिसाब से नहीं मनाए जाते इसीलिए हर साल त्यौहार अलग-अलग तिथियों पर पड़ते हैं. लगभग हर सनातनी के घर में तुलसी चौरा (पौधा) होता है जहां प्रतिदिन दिया जलाकर संझा आरती की जाती है । वैसे भी विधि विधान से तुलसी की पूजा कार्तिक मास में होती है , पौष में नहीं . मांगलिक कार्य पौष मास में नही किए जाते। किसी दूसरे धर्म के त्योहारों को आप नहीं मनाना चाहते ठीक है, लेकिन उसमें जबरदस्ती अपना त्यौहार घुसा देना अजीब है, नफ़रत से भरा हुआ है। क्या होगा अगर होली, दिवाली के दिन आपसे कोई कहने लगे कि जी नहीं आज होली, दिवाली नहीं अलाना त्यौहार है। त्यौहार आपसी सौहार्द, भाईचारे के लिए होते है नफरतों से बच के रहे, नफरती चिंटुओ से भी। हम सब भारतीय हैं हमारे देश का कोई धर्म नहीं है क्योंकि हमारे देश में हर धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं हमारे देश की विविधता में एकता ही इसकी खूबसूरती है। हम सभी लोग हर धर्म के त्योहार मिलजुलकर एक साथ मनाते हैं। आज पूरे विश्व में और हमारे देश में क्रिसमस का त्यौहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है इस दिन का ऐतिहासिक महत्व यह है कि इस दिन जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन होता है। उसके अलावा इस का व्यवसायिक महत्व बहुत है क्योंकि इस दिन लोग अधिकतर बाहर निकलते हैं खर्चा करते हैं जिससे व्यापारी वर्ग को भी काफी मदद मिलती है। पिछले कुछ वर्षों से एक टेंडेंसी देखने को मिली है जिसके बारे में आपको बताना चाहूंगा पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर वायरल मैसेज हो रहा है कि दिसंबर के महीने में गुरु गोविंद सिंह जी के बच्चों ने शहीदी प्राप्त की थी और हम लोग क्रिसमस मना रहे हैं। हम वह भूल गए और हमें यह याद हैं। क्या हम तुलना करके अपने त्यौहार मनाएंगे। लगभग हर बड़े गुरुद्वारे में साहिबजादो का शहीदी पर्व पर बढ़-चढ़कर मनाया जा रहा है। हमें साहिबजादो की शहीदी पर गर्व है और हमेशा रहेगा परंतु हर त्यौहार का अपना महत्व होता है। क्रिसमस विश्व का सबसे बड़ा त्यौहार है और इसका क्या महत्व है व्यवसायिक तौर पर भी इसके बारे में भी मैं ऊपर जिक्र कर चुका हूं। हम साथ साथ भी अपनी परंपराएं और त्यौहार मना सकते हैं इसमें कोई गलत बात नहीं है। अब बात आती है एक और प्रोपेगेंडा पर पिछले चार-पांच साल से क्रिसमस के समय एक और मैसेज वायरल किया जाता है कि ना तुम इसाई ना मैं इसाई फिर किस बात की क्रिसमस मेरे भाई।लगभग सात आठ वर्ष पहले परम पूज्यनीय परम श्रद्धेय आदरणीय पुण्यात्मा संत श्री आसाराम बापू के आश्रम की तरफ से 25 दिसंबर यानी क्रिसमस के दिन को तुलसी पूजन दिवस घोषित किया गया है और इस दिन पर कई कट्टर लोग यह आह्वान करते हैं कि क्रिसमस हमारा त्यौहार नहीं है तो हमें सिर्फ तुलसी पूजन दिवस मनाना चाहिए। जहां तक तुलसी पूजन दिवस मनाने की बात है तो कोई बात नहीं मनाना चाहिए इसमें कुछ बुरा नहीं है। तुलसी हमारा एक पूजनीय पौधा है। इसमें औषधीय गुण भी विद्यमान है। परंतु तुलना करके यह कहना कि हमें सिर्फ यह त्योहार मनाना चाहिए वह नहीं मनाना चाहिए यह किस हद तक न्यायोचित है? यह कहना कि प्लास्टिक के पौधे को क्यों पूज रहे हो असली पौधे को पूजो सिर्फ और सिर्फ नकारात्मकता फैलाना है और कुछ नहीं। यह कुछ और नहीं वसुधेव कुटुंबकम की परंपरा को अपनाने वाले विविधता की एकता मानने वाले देश के लोगों के दिमाग में कट्टरता भरना है। यहां एक बात स्पष्ट कर देता हूं मेरे खुद के घर में तुलसी का पौधा है जिसकी पूजा मेरी धर्मपत्नी हर रोज करती है दीपक जलाकर।कट्टरता लोगों के दिलो-दिमाग पर हावी होती जा रही है और सोचने समझने की शक्ति को क्षीण करती जा रही है। यह उदाहरण मैंने स्वयं महसूस किया जब एक छोटे से बच्चे को क्रिसमस की बधाई दी तो बदले में उसने बोला वह क्रिसमस की बधाई ना स्वीकार करेगा ना देगा और मुझे तुलसी पूजन दिवस की बधाई दे दी। उसका तुलसी पूजन दिवस की बधाई देना बुरा नहीं लगा परंतु इस प्रकार उसके मन में ऐसी कट्टरता भरी हुई थी कि क्रिसमस उसका त्यौहार नहीं है वह देखकर थोड़ा अचरज और दुख भी हुआ। जरा सोचिए प्रगतिशीलता के इस युग में हम अपने समाज को किस तरफ धकेल रहे हैं। जिंदगी ना मिलेगी दोबारा अगर हिंदुस्तान के ईसाइयों ने क्रिसमस ट्री की जगह तुलसी के बिरवे को सजाना शुरू कर दिया तो क्या करोगे , भगवाधारियों ? Post navigation पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई, मदन मोहन मालवीय व तुलसी पूजन पर गौड़ ब्राह्मण सभा में हुआ कवि सम्मेलन गांधी तकनीक के विरोधी नहीं , मनुष्य के शोषण के खिलाफ थे : रामचंद्र राही