भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम नगर निगम पूरे प्रदेश में सबसे धनाड्य निगम के नाम से जाना जाता है और साथ ही यहां के भ्रष्टाचार की भी चर्चाएं उठती रहती हैं। वर्तमान में निगम की सामान्य बैठक पहले 15 दिसंबर को बुलाई थी, वह रद्द कर दी गई फिर 23 को बुलाई वह भी रद्द कर दी गई। अब सूत्रों के अनुसार 27 को सामान्य बैठक होगी।

इस बार सामान्य बैठक हंगामापूर्ण होने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। वैसे तो निगम की सभी बैठकें हंगामापूर्ण होती हैं लेकिन इस बार कुछ विशेष की चर्चा है। सूत्रों के अनुसार 15 तारीख को मीटिंग की घोषणा की गई तो ज्ञात हुआ कि कुछ पार्षद ऐसे सवाल उठा सकते हैं जो मेयर टीम और निगम प्रशासन के लिए हानिकारक हो सकते हैं। उन्हें समझाने के लिए अगली बैठक 23 को रखी गई। काम संपूर्ण न होने के कारण वह बैठक भी रद्द कर दी गई और अब 27 को होने की संभावना है। इसमें एक बड़ा सवाल यह उठने वाला है कि सीएनडी वेस्ट (कचरा उठाने वाली कंपनी) को 50 करोड़ की पेमेंट दे दी गई है और शहर की स्थिति ऐसी है कि जगह-जगह कूड़े के खत्ते बने हुए हैं। 

एक बड़ा सवाल प्रारंभ से ही निगम पार्षद उठाते रहे हैं कि जब किसी भी कमेटी में नियमानुसार पांच से कम सदस्य नहीं होने चाहिए तो फाइनेंस कमेटी में तीन सदस्य क्यों हैं? यह सवाल पहले तो दिवंगत पार्षद आरएस राठी हर मीटिंग में बड़े जोर-शोर से उठाते थे। उनके बाद कुछ पार्षदों ने दबे स्वर में उठाया। यह भी ज्ञात हुआ है कि पार्षदों ने राव इंद्रजीत सिंह से मिलकर भी मांग की थी कि फाइनेंस कमेटी का विधिवत गठन होना चाहिए। पार्षदों के अनुसार वहां से आश्वासन भी मिला था किंतु स्थिति ढाक के तीन पात वाली रही।

सुशासन दिवस पर बड़ा सवाल :

25 दिसंबर को हरियाणा सरकार सुशासन दिवस के रूप में मना रही है। उसमें गुरुग्राम नगर निगम को देखते हुए यह सवाल उठना लाजमी है कि निगम में कैसा सुशासन है? आपको स्मरण करा दें कि गुरुग्राम के कष्ट निवारण समिति के चेयरमैन मुख्यमंत्री स्वयं हैं। उन्हें आज तक इस बात का पता नहीं तो कहीं उनकी एजेंसियों की कमी है और यदि पता है तो उन्होंने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया?

स्थानीय निकाय मंत्री गब्बर के नाम से मशहूर अनिल विज हैं और वह यहां का दौरा भी कर गए हैं। कुछ व्यक्तियों को सजा भी दे गए थे। कागजात भी चैक किए थे। फिर भी यदि उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं तो यह उनकी कमी मानी जाएगी? और यदि ज्ञान है तो इस पर उन्होंने कोई कार्यवाही क्यों नहीं की?

अब बात करें केंद्रीय मंत्री और गुरुग्राम के सांसद राव इंद्रजीत सिंह की। उनके बारे में स्थापित है कि वह ईमानदार हैं और इतने लंबे राजनैतिक जीवन में उन पर कोई दाग नहीं लगा। इस बात की जानकारी पुख्ता रूप से राव इंद्रजीत सिंह को है, क्योंकि इस मेयर टीम का गठन राव इंद्रजीत सिंह ने एक चैलेंज के रूप में आन-बान-शान का सवाल बनाकर कराया था और पार्षद भी उनसे इस बारे में कह चुके हैं तथा उनके बनाए हुए मेयरों को उन्होंने उचित कमेटी बनाने को क्यों नहीं कहा?

प्रश्न यह है कि इस कमेटी के हस्ताक्षरों से जो अरबों के बिल पास हुए हैं, वह क्या सुशासन का उदाहरण हैं? यह तो एक बात हुई। सफाई के मामले में इकोग्रीन कंपनी सदा विवादों में रही है। सभी पार्षद उसकी शिकायत करते रहे हैं।

इसी प्रकार निगम की इंजीनियरिंग विंग विशेष चर्चा में रहती है। अधिकारी नियमों को ताक पर रख अपनी मर्जी के ठेकेदारों को ठेके देते हैं। काम मानकों पर खरे नहीं उतरते। इतना ही नहीं, ऐसा भी हुआ है कि बिना काम हुए करोड़ों रूपए की पेमेंट निगम द्वारा ठेकेदारों को कर दी गई। कुछ मामलों में वह वापिस आई लेकिन सुशासन का नमूना देखिए कि आज तक इस प्रकार पेमेंट करने वाले या लेने वाले किसी पर कोई भी कार्यवाही नहीं की गई।

error: Content is protected !!