जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करना दूरदर्शिता नहीं होगी: शंकराचार्य नरेंद्रानंद

बिपिन रावत किसी हादसे या फिर शत्रु के षड्यंत्र के शिकार हुए.
जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करने से आगे की लड़ाई जटिल हो जाएगी

फतह सिंह उजाला

गुरूग्राम। भारत के स्वभाव में आज भी प्रथम आक्रमण नहीं है। आक्रमण का उत्तर देना परम्परागत प्रतिक्रियात्मक स्वभाव है। ऐसे में यदि सर्व संहारक अस्त्र का प्रयोग भारत पर होता है, तो व्यापक हानि होकर रहेगी। अतः भारत प्रथम आक्रमण करे या न करे वैज्ञानिक प्रातिभ क्षमता का विकास अवश्य करे। जब तक गुप्त रूप से प्रथम आक्रमण की रणनीति नहीं बनती या सर्वथा नई युद्ध नीति का प्रयोग नहीं होता लड़ाई जीती नहीं जा सकती। देश के प्रथम सीडीएस बिपिन रावत जनरल के वकत्व्य को भविष्य के दृष्टिगत समझना बहुत जरूरी है। यह प्रतिक्रिया काशी सुमेरु मठ के पीठाधीश्वर शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने वायु सेना के हेलीकॉप्टर में हताहत होने वाले सीडीएस रावत, उनकी पत्नी और सहकर्मियों के प्रति अपनी संवेदना में वयक्त की है।

अपनी बेबाक शब्दावली के लिए विख्यात शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि सीडीएस विपिन रावत अपने सहकर्मियों के साथ हवाई हादसे में काल का ग्रास बन गये। उन्होंने कहा इस मुद्दे को लेकर दो पक्ष खड़े हो गये हैं। प्रथम पक्ष है जो कि हेलीकॉप्टर में सवार सभी सैनिक दुर्घटना के शिकार हो गए। द्वितीय पक्ष है कि वे किसी हादसे अथवा शत्रु के षड्यंत्र के शिकार हो गए। इन दोनों स्थितियों में जांच की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना दूरदर्शिता नहीं होगी। इससे आगे की लड़ाई जटिल हो जाएगी। प्रथम पक्ष को प्रबलता मिलने से भारत सुप्तावस्था का शेर बना रहेगा जिसे बार बार एनेस्थीसिया दी जाती रहेगी। यह विचार शत्रु की चाल को सफल बनाने में मददगार होगा।

उन्होंने कहा कि जैसे जैसे यांत्रिक विज्ञान तीक्ष्ण होता जाएगा। प्रथम आक्रमण की अनिवार्यता बढ़ती जाएगी। भावी छद्म युद्धों में न केवल आपके रास्ते रोके जायेंगे बल्कि आपके साधन सेटेलाईट को ध्वस्त किया जाएगा। आकाश में स्थित आपके सभी साधनों को मध्य में मार गिराया जायेगा। वायरस युद्ध को अभी विश्व ने झेला है, झेल रहा है। अब लड़ाई इस दिशा में बढ़ चुकी है। जिनको विश्व को तबाह होने का दर्द नहीं है , वे इस युद्ध को काफी आगे ले जा चुके हैं। भारत से विश्व को इस लिए परेशानी है कि भारत वैज्ञानिक प्रतिभा का धनी है और उसी प्रहतभा के भीतर समस्त श्रेष्ठ गुण निवास करते हैं। अतः इसे रोकना शत्रुओं को अनिवार्य कर्म लगता है।

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