भागवत कथा श्रवण करने से बड़ा और कोई सौभाग्य नहीं हो सकता : विकास दास महाराज।

समस्त श्यामप्रेमी परिवार,कुरुक्षेत्र द्वारा श्रीमद् भागवत कथा आयोजन का तीसरा दिन।

कुरूक्षेत्र,10 दिसंबर : समस्त श्यामप्रेमी परिवार कुरूक्षेत्र द्वारा गीता जयंती के उपलक्ष्य में श्री गीता धाम में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को जड़भरत एवं प्रह्लाद चरित्र सुनाया गया।भागवत अनुष्ठान यजमान श्यामप्रेमी अजय गोयल, दिनेश गोयल,अरुण गोयल, अशोक गर्ग व डिंपल गर्ग सहित अन्य यजमानों ने व्यासपूजन किया।इससे पूर्व सुबह 11 कुण्डीय गीता ज्ञान महायज्ञ में यजमानों ने आहुतियां दी।कार्यक्रम में आर.एस.एस.राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश ने दीप प्रज्जवलित किया।

प्रसंगों में कथाव्यास महामंडलेश्वर विकास दास महाराज बोले कि भागवत कथा श्रवण करने से बड़ा और कोई सौभाग्य नहीं हो सकता।जड़भरत का प्रकृत नाम ‘भरत’ है, जो पूर्वजन्म में स्वायंभुव वंशी ऋषभदेव के पुत्र थे। मृग के छौने में तन्मय हो जाने के कारण इनका ज्ञान अवरुद्ध हो गया था और वे जड़वत् हो गए थे जिससे ये जड़भरत कहलाए।जड़भरत की कथा विष्णुपुराण के द्वितीय भाग में और भागवत पुराण के पंचम काण्ड में आती है।वहीं, प्रह्लाद चरित्र में बताया गया कि फागुन जिन कारणों से मशहूर है, उनमें दीवानापन और मस्ती का आवेग भी शामिल है। ऐसा नहीं है कि फागुन कोई पहली बार आया हो और लोगों में आनंद-उल्लास जगा हो, लेकिन कहते हैं शुरुआत प्रह्लाद से हुई। प्रह्लाद अर्थात खास किस्म के उल्लास से सराबोर व्यक्तित्व। आनंद-उल्लास पहले भी रहे होंगे, लेकिन अर्जित या विकसित स्थिति में पहली बार प्रह्लाद के रूप में स्थापित हुआ। कयाधु (प्रह्लाद की जननी) ने अपने पति हिरण्यकश्यप से होशियारी से ‘नारायण-नारायण’ नाम की एक माला जपवा ली। कहते हैं कि इसके प्रभाव से ही कयाधु, प्रह्लाद जैसे विष्णुभक्त की मां बनीं। कयाधु के अलावा सभी परिजन हिरण्यकश्यप और बुआ होलिका आदि आसुरी स्वभाव के थे।

शुक्राचार्य गुरु तो थे, पर अपनी प्रकृति के कारण आसुरी स्वभाव के कहे जाते थे। दत्तात्रेय, शंड और मर्क के अलावा आयुष्मान, शिवि, वाष्कल, विरोचन और यशकीर्ति आदि पुत्र-कलत्र विष्णुभक्त भी कहलाते थे। प्रह्लाद भी विष्णुभक्त ही निकले। यद्यपि पिता ने बहुत कहा-सुना और यातनाएं दी, पर बेटे को विष्णुभक्ति से डिगा न सके।अपने सम्बोधन में इन्द्रेश ने कहा कि हम जो भी कार्य करते हैं उसका हमारे जीवन पर किसी न किसी रूप में बहुत प्रभाव पड़ता है।अगर हम कोई अच्छा कार्य करें तो हमें उस कार्य का अच्छा फल मिलता है और इसी प्रकार यदि कोई बुरा कार्य करे तो फल भी बुरा ही मिलता है। इसलिए भागवत में विशेष रूप से कहा गया है कि हमें अच्छे कार्य करने चाहिए और बुरे कार्यों से बचना चाहिए। हमें भगवान सच्चिदानंद को हमेशा अपने मन में रखना चाहिए ताकि मुश्किल समय में भगवान हमारी रक्षा कर सके।आयोजकों ने अतिथियों को स्मृति-चिह्न प्रदान किया। कथा के दौरान सुनाए गए भजनों पर श्रद्घालु झूम उठे।

भागवत आरती में माता सुदर्शन भिक्षु, कुसुम दीदी, आचार्य नरेश कौशिक, खैराती लाल सिंगला, अंकुर गर्ग, विकास गुप्ता,रवि गुप्ता,गौरव गुप्ता,पियांशु तायल,आशुतोष मित्तल, हर्ष गोयल, ए.पी.चावला, मनोज काठपाल,राकेश मंगल, पंकज सिंगला, अनिल मित्तल, राजकुमार मित्तल,मुनीष मित्तल, संजय चौधरी, अमित गर्ग, अनुज सिंगला, सतीश मेहता, योगेंद्र अग्रवाल और बड़ी संख्या में महिला श्रद्धालुओं सहित कई शहरों के श्यामप्रेमी शामिल रहे।

गायकों ने सुनाए खाटू श्याम जी के भजन…….
श्रीमद्भागवत कथा के पश्चात भजन संध्या में भजन सम्राट सुशील गौतम दिल्ली,श्याम दासी रेणु(चुलकाणा धाम) और हर्ष गोयल ने खाटू श्याम जी के मधुर भजनों से समां बांधा। गायकों द्वारा सुनाए गए भजन लगी है कचहरी खाटू के दरबार में….,मैं हो गई श्याम दिवानी…और जिसको जिसको सेठ बनाया….इत्यादि भजनों पर श्यामप्रेमी झूम उठे।

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