‘याद गली से….’ …आकाशवाणी जम्मू की क्षेत्रीय समाचार इकाई के 50 साल।

……. लेखक अजीत सिंह वर्तमान में हिसार के रहने वाले हैं । वह 2006 में दूरदर्शन केंद्र हिसार के समाचार निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए । वह अब एक स्वतंत्र पत्रकार हैं । Mob. 9466647037.

अजीत सिंह

1970 का दशक वह समय था जब रेडियो समाचारों का सबसे विश्वसनीय लोकप्रिय माध्यम था।

1971 में पाकिस्तान के साथ 3 दिसंबर को युद्ध शुरू हो गया था और उसी समय फैसला लिया गया कि तुरंत जम्मू स्टेशन से स्थानीय समाचारों का बुलेटिन शुरू किया जाए जो पाकिस्तान के दुष्प्रचार का जवाब देते हुए सही सच्ची खबरें जनता तक उन्ही की अपनी डोगरी भाषा में पहुंचाए। जाने माने डोगरी लेखक व पत्रकार ठाकुर पूंछी दिल्ली से आए और 6 दिसंबर को पहला बुलेटिन प्रसारित कर दिया। इस बुलेटिन के संपादक, संवाददाता व समाचार वाचक सब कुछ ठाकुर पूंछी ही थे।

दिन बीते तो सुविधाएं और साधन भी बढ़े।

हर्ष का विषय है कि आकाशवाणी जम्मू की क्षेत्रीय समाचार इकाई ने अपने अस्तित्व के 50 गौरवशाली वर्ष पूरे कर लिए हैं और मैं लगभग 20 वर्षों तक इसका हिस्सा रहा हूं ।

ठाकुर पूंछी के बाद एक और साहित्यकार डी.आर. किरण कश्मीरी आए। फिर एएन कोकारिया और अशोक हांडू ने आने वाले वर्षों में समाचार इकाई की कमान संभाली।

राष्ट्रपति वेंकटरमन का साक्षात्कार, साथ में डॉ फारूक अब्दुल्ला

पूर्व आर्मी कैप्टन पीजेएस त्रेहन पहले संवाददाता बने और उनके बाद जून 1979 में मैंने संवाददाता का कार्यभार संभाला। अलबेल सिंह ग्रेवाल उस समय स्टेशन डायरेक्टर थे।

लज्जा मन्हास, नरेंद्र भसीन व जोगिंदर पल सराफ उर्फ छतरपाल तीन नियमित न्यूजरीडर थे। आकस्मिक समाचार वाचकों का एक पैनल भी था। कुछ समय बाद दिल्ली से पहले सुदर्शन पराशर व फिर चंचल भसीन भी न्यूज रीडर के तौर पर आए।

हमने सप्ताह में दो बार क्षेत्रीय समाचार समीक्षा भी शुरू की जिसका आलेख स्थानीय पत्रकार लिखते थे।

पीएल गुप्ता, रतन अत्री और राजेश टिकू हमारे बेहद कुशल स्टेनोग्राफर थे ।

हमने साप्ताहिक न्यूज़रील कार्यक्रम भी शुरू किया । इसके लिए सीएल शर्मा, रचना विनोद, सुभाष शर्मा और राजेंद्र गुप्ता मेरे साथी थे ।
मुझे सभी मतगणना केंद्रों से टेलीफोन हॉटलाइन के साथ चुनाव परिणामों की लाइव कवरेज भी याद है । उस समय फैयाज शहरयार स्टेशन डायरेक्टर थे । वे बाद में ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशक बने और हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हैं ।

ये सभी लोग अत्यधिक प्रतिभाशाली थे और उन्होंने रेडियो कार्यक्रमों व समाचारों का उच्च स्तर बनाने में उल्लेखनीय योगदान किया।

शेख अब्दुल्ला की वापसी
मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ। बीच में यश
गंदोत्रा, तत्कालीन उप निदेशक सूचना विभाग

जम्मू कश्मीर में आकाशवाणी के संवाददाता के रूप में काम करने के बीस वर्ष मेरे लिए इतिहास की गवाही का समय रहे।

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे और हमें विधान सभा में कुछ बड़ी दिलचस्प बहस सुनने को मिलती थी।

1975 में शेख अब्दुल्ला को सत्ता में लाने वाली कांग्रेस पार्टी ने बाद में साथ छोड़ दिया और शेख अब्दुल्ला ने 1977 में अपने दम पर चुनाव जीता था। नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस की प्रतिद्वंद्विता तेजी से बढ़ रही थी ।

1982 में शेख का निधन हो गया और उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पूर्ण समर्थन के साथ मुख्यमंत्री बने ।

कश्मीर बनाम जम्मू प्रतिद्वंदिता राज्य में बड़े लंबे समय से चलती आ रही है। क्षेत्रीय भेदभाव जम्मू के लोगों की स्थायी शिकायत रही है । कश्मीरी नेतृत्व दरबार बदल की प्रथा को खत्म करना चाहता था, लेकिन जम्मू बार एसोसिएशन ने 1980 के दशक में एक लंबे आंदोलन के माध्यम से ऐसा नहीं होने दिया ।

लगभग हर बार जब दरबार जम्मू में शिफ्ट होता था, तो पहले दिन बंद का आह्वान होता था ।

राजनीति और उग्रवाद

1984 में नेशनल कांफ्रेंस पार्टी के 19 विधायकों के दलबदल के कारण फारूक अब्दुल्ला सरकार गिरा दी गई और उनके बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने । मैंने रात भर चले राजनीतिक नाटक को कवर किया था।

शाह सरकार करीब 20 महीने चली और इसी दौरान कश्मीर घाटी में व्यापक सांप्रदायिक दंगे भी हुए।

नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने संयुक्त रूप से 1987 का विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की । चूंकि कोई विश्वसनीय भारत समर्थक विपक्षी दल कश्मीर घाटी में मैदान में नहीं बचा था और राजनीतिक शून्य मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के उदय और 1989-90 में उग्रवाद के विस्फोट के रूप में उभरा। जम्मू क्षेत्र में भी आने वाले वर्षों में उग्रवाद का बुरा असर पड़ा। मैंने डोडा जिले के ग्राम चपनारी में एक भीषण नरसंहार की खबर भी कवर की थी जिसमें दो बारातों के 25 सदस्यों को आतंकवादियों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया था। मारे गए लोगों में दोनों दूल्हे भी शामिल थे। । उनकी दुल्हनें अपने ससुराल के घरों तक पहुंचने से पहले ही विधवा हो गई थीं । समाचार पत्रों में अपने पतियों के शवों पर दुल्हनों के रोने की तस्वीरें दिल को दहलाने वाली थी।

1997 में ऑल इंडिया रेडियो जम्मू के स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान मुख्यमंत्री डॉ.फारूक अब्दुल्ला के साथ ।

मौलाना आजाद स्टेडियम में जब गवर्नर, जनरल केवी कृष्णराव 26 जनवरी 1995 को जब अपना रिपब्लिक डे संबोधन दे रहे थे, तब वहां बम विस्फोट का समाचार भी मैंने दिया। मेरे एक मित्र अबरोल सहित 8 लोग वहां शहीद हुए।

दूरदर्शन केंद्र श्रीनगर के स्टेशन डायरेक्टर लसा कौल ने रेडियो कॉलोनी जम्मू में मेरे घर पर नाश्ता किया और एक दिन बाद 13 फरवरी 1990 को जब वह वापस श्रीनगर गए तो आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी ।

मलिका पुखराज

जम्मू का सांस्कृतिक दृश्य भी बड़ा जीवंत था। अभिनव थियेटर और डोगरी संस्था गतिविधियों के केंद्र थे ।

प्रसिद्ध गायिका मलिका पुखराज 1988 में पाकिस्तान से अपने पैतृक शहर के जम्मू लौटीं तो कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। मैंने उनके साथ रेडियो के लिए आधे घंटे का साक्षात्कार रिकॉर्ड किया ।

वैष्णो देवी और कप्लाश यात्रा

मैंने जम्मू क्षेत्र के लगभग सभी क्षेत्रों का दौरा कर वहां के जीवन के समाचार रेडियो पर प्रसारित किए। भदरवाह के रास्ते कप्लाश झील के लिए लम्बी दुर्गम यात्रा एक अद्भुत अनुभव था । प्रीतम कटोच मेरे साथी थे और हमने भदरवाह से सियोज धार, वहां से कप्लाश झील और आगे बनी व बसोहली तक लगभग 110 किलोमीटर तक पर्वतीय क्षेत्र में ट्रेकिंग की थी ।

माता वैष्णोदेवी की यात्रा तो अक्सर करते थे लेकिन मुझे याद है जब राज्यपाल जगमोहन ने पुरानी व्यवस्था बदल कर माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की स्थापना की थी । 1979 तक, लगभग तीन लाख तीर्थयात्री सालाना वैष्णोदेवी यात्रा पर आते थे । अगले बीस साल में यह संख्या 50 लाख पार कर चुकी थी। सुविधाओं में व्यापक सुधार हुआ।

सलाल बिजलीघर व ऊधमपुर रेल।

मैं साल 1980 में सलाल बांध जल विद्युत परियोजना स्थल पर था जब इसकी धारा को मोड़ने के लिए बनाई गई सुरंग चालू की गई थी । कई वर्ष बाद जब जलाशय में पानी भरा गया और बिजली उत्पादन शुरू हुआ तो तीन दिन तक मैं वही रह कर समाचार देता रहा।

मैं ऊधमपुर में था जब इंदिरा गांधी ने बरसात के दिन 1983 में जम्मू-ऊधमपुर रेलवे लाइन की नींव रखी थी । दिल्ली से ऑल इंडिया रेडियो के संवाददाता एसएम कुमार के साथ मैंने जम्मू से ऊधमपुर तक रेल लाइन के प्रस्तावित ट्रैक के साथ यात्रा की और लोगों की आकांक्षाओं को रिकॉर्ड किया । जब मैंने एक छात्र से पूछा कि क्या उसने ट्रेन देखी है, तो उसका सीधा सादा सा जवाब था कि उसने अपनी किताब में एक ट्रेन देखी है । मैं कुछ पुराने लोगों से मिला, जिन्होंने अपने जीवन में ट्रेन में कभी यात्रा नहीं की थी ।

एक बार कुछ मजदूर बाहु किले के नीचे निर्माणाधीन रेल सुरंग के अंदर फंस गए थे । डिप्टी चीफ इंजीनियर सुरिंदर कौल की अगुवाई में इंजीनियरों की यह बड़ी कामयाबी थी कि तीन दिन बाद सभी को सुरक्षित निकाल लिया गया । मजदूरों ने वे तीन दिन ऑक्सीजन की कमी के साथ घुप अंधेरे में बिताए थे।

रेलवे लाइन तैयार होने में काफी समय लगा, लेकिन 1998 में दिल्ली ट्रांसफर के समय मैंने पहले स्टेशन बजालटा तक तवी नदी के पार पहाड़ पर चलती ट्रेन को देखा था।

श्रीनगर, दिल्ली और कारगिल तक
चुनाव-1996 के परिणाम की लाइव रेडियो कवरेज जम्मू से। बाएं से, चुनीलाल शर्मा, फय्याज शहरयार स्टेशन डायरेक्टर, सुभाष शर्मा, अजीत सिंह वरिष्ठ संवाददाता, के सी मन्हास और पी एल राज़दान.

1990 में लसा कौल की हत्या के बाद बंद हुई क्षेत्रीय समाचार इकाई को फिर चालू करने के लिए मुझे वरिष्ठ संवाददाता के पद पर तरक्की देकर 1992 में श्रीनगर भेजा गया था पर जम्मू से संबंध बना रहा क्योंकि सर्दियों के छह महीनों के लिए दरबार के साथ जम्मू आना होता था।

1998 में जब मेरा तबादला दिल्ली हुआ तो अंजलि शर्मा ने जम्मू और कश्मीर के मेरे अनुभव पर इंटरव्यू रिकॉर्ड किया।

मैं जून 1999 में कारगिल युद्ध को कवर करने के लिए 26 दिनों के टूर पर दिल्ली से गया था। जिस दिन टाइगर हिल पर कब्जा हुआ उस दिन मैं द्रास से होकर कारगिल पहुंचा था। वापसी में दोस्तों से मिलने के लिए जम्मू में रुका था । अंजलि ने फिर से मेरा साक्षात्कार लिया कि मैंने कारगिल में क्या देखा ।

मित्र और मेंटर

एक संवाददाता को विविध समाचार स्रोतों के साथ निकट तालमेल से कार्य करना होता है । इनमें राजनीतिक नेता, ट्रेड यूनियन लीडर, सांस्कृतिक कार्यकर्ता, साथी पत्रकार और राज्य सरकार के अधिकारी शामिल थे । मैं विशेष रूप से कहना चाहता हूं कि मुझे सूचना विभाग के उच्च अधिकारियों के बी जंडियाल, महेंद्र शर्मा, यश गंदोत्रा, ज्योतिषवर पथिक और ओ. पी. शर्मा का भरपूर सहयोग मिला।

मैंने अपने जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा जम्मू में बिताया । जब मैं 33 साल का था तब मैं वहां गया था और 53 साल की उम्र में वहां से आया। यह मेरा जम्मू का अनुभव ही था कि मुझे 1990 में वर्ष के सर्वश्रेष्ठ संवाददाता “कॉरेस्पोंडेंट ऑफ द ईयर” का आकाशवाणी पुरस्कार मिला ।

मुझे याद है कि 1997 में मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने रेडियो कश्मीर जम्मू के स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान मुझे ट्रॉफी से सम्मानित किया था ।

किस्सा गोजरी बुलेटिन का।

जम्मू कश्मीर के घुमंतु गुज्जर समुदाय की गोजरी भाषा में बुलेटिन की शुरुआत एक दिलचस्प घटना के साथ हुई।

ऑल इंडिया रेडियो के केंद्रीय अधिकारी इसे शुरू नहीं करना चाहते थे पर एक समय चौधरी गुलजार अहमद के नेतृत्व में आए गुज्जर प्रतिनिधिमंडल ने घोषणा कर दी कि यदि गोजरी बुलेटिन शुरू नहीं किया गया तो से अपनी भैंसों के झुंड से रेडियो परिसर को भर देंगे। इसकी नोबत नहीं आई। गोजरी बुलेटिन जल्द ही शुरू हो गया।। मुंशी खान, अनवर हुसैन और हसन परवाज़ न्यूजरूम में हमारे साथी थे जो गोजरी बुलेटिन संभालते थे।

एक रिपोर्टर के रूप में, मैं उन महत्वपूर्ण दो दशकों के दौरान जम्मू के इतिहास का गवाह था जब यह क्षेत्र पंजाब और कश्मीर के उग्रवाद के बीच था ।

खंड मिट्ठे लोक डोगरे

मैंने करीब दो दशक पहले जम्मू छोड़ दिया था, लेकिन जम्मू ने मुझे एक दिन भी नहीं छोड़ा है । जम्मू की यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी। मैं अपने कई ‘खंड मिट्ठे लोक डोगरे’ दोस्तों की कंपनी को कभी नहीं भूल सकता ।

वेद भसीन, बलराज पुरी, गोपाल सच्चर, बीपी शर्मा, डीसी प्रशांत, मास्टर रोशन लाल और रामनाथ शास्त्री मेरे गुरु जैसे थे । उनमें से ज्यादातर अब नहीं हैं । मैं केबी जंडियाल, गोपाल सच्चर, विजय वर्मा, प्रीतम कटोच, अनवर हुसैन, अनिल आनंद, नसीब सिंह मन्हास, संत कुमार शर्मा, अंजलि शर्मा और कुछ अन्य जैसे दोस्तों से कभी-कभी बात करता हूं ।

मैं अक्सर यू-ट्यूब पर डोगरी गाने सुनता हूं । ‘फौजी परदेसी नौकरा, दिल लगदा नी मेरा हो..’ डोगरी गायिका सरस भारती इन दिनों मेरी फेवरेट हैं।

मैं उन सभी को बधाई देता हूं जो वर्तमान में आरएनयू जम्मू को उसके स्वर्ण जयंती वर्ष में संभाले हुए हैं । आप दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें, ऐसी मेरी कामना है और आप सभी के लिए आशीर्वाद है।

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