संप्रग अब भी प्रासंगिक है ममता दी

-कमलेश भारतीय

पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बात कही है कि अब कोई संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन नहीं है । असल में वे कांग्रेस पर निशाना लगा रही हैं और कांग्रेस आमंत्रित बैठक से भी दूरी बनाये रखी है । इसी तरह महाराष्ट्र के नेता शरद पवार भी कुछ दूरी बनाये कह रहे हैं कि भाजपा का विरोध करने वालों को साथ लेकर चलने की जरूरत है । किसी को बाहर करने का सवाल नहीं लेकिन कांग्रेस की बजाय नजदीकियां तृणमूल कांग्रेस से बढ़ा रहे हैं । क्यों ? ऐसे कदमों से क्या भाजपा का विपक्ष मुकाबला कर पायेगा ? नहीं । दिख रहा है कि ममता भाजपा से टकराने से पहले कांग्रेस को चित्त करने के तौर तरीके अपना रही है । जो लोग कांग्रेस से रूठे हैं उन्हें मना कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल किया जा रहा है । जैसे अशोक तंवर, कीर्ति आज़ाद और सुष्मिता देव । सुष्मिता देव को तो राज्यसभा में भी भेज दिया यानी दलबदल करते ही दिया अवाॅर्ड । यह रणनीति है तृणमूल कांग्रेस की । पहले यही नीति भाजपा ने अपनाई और कितने ही नेता कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए और हो रहे हैं जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद-दोनों को तोहफे में मिले मंत्रीपद । यानी पहले आओ , पहले पाओ । सुष्मिता देव जल्दी गयीं और राज्यसभा में पहुंच गयीं । सिंधिया और जितिन को भी मनचाहा मिला । मन तड़पत कुर्सी को और हो गयी मुराद पूरी । अभी लगता है मनीष तिवारी भी जाने की तैयारी में हैं ।

खैर, ममता बनर्जी अगर यह सोचती हैं कि वे कांग्रेस के बिना भाजपा को हरा कर प्रधानमंत्री पद तक पहुंच सकती हैं तो यह मुंगेरी लाल के हसीन सपने से कम न होगा । ममता बनर्जी हिंदी अच्छे से बोल नहीं पातीं । याद है पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने क्या लिखा है ? वे लिखते हैं कि मैं राष्ट्रपति नहीं , प्रधानमंत्री बनना चाहता था लेकिन मेरी राह में हिंदी न आना बड़ी बाधा बन गयी । इसी तरह शरद पवार भी गैर हिंदी भाषी हैं , महाराष्ट्र से संबंध रखते हैं । ये दोनों संप्रग से अलग खिचड़ी पका कर भाजपा का काम और राह ही आसान बना रहे हैं । इससे भाजपा को फायदा ही है कि विपक्ष एकजुट न हो जाये । कभी विपक्ष पर व्यंग्य करते पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था -विपक्ष की एकता संतरे के समान है जो ऊपर से तो एक दिखता है जबकि अंदर से अलग अलग है । यही संतरा बनाने जा रही हैं ममता बनर्जी और उनके रणनीतिकार प्रशांत किशोर । बजाय भाजपा पर चोट करने से ऐसे कदमों से ये भाजपा की राह आसान बनाने की ओर बढ़ रहे हैं ।

कांग्रेस ने जवाब भी दिया है कि हमारे बिना भाजपा को हराना एक सपना मात्र होगा । कांग्रेस की ओर से के सी वेणुगोपाल ने यह टिप्पणी करते कहा है कि यह सोचना कि कांग्रेस को साथ लिए बिना भाजपा को हराया जा सकता है जो कभी पूरा नहीं हो सकता । ममता बनर्जी सिर्फ क्षेत्रीय दलों को साथ लाने की रणनीति पर चल रही हैं और यह कितनी कारगर होगी , यह तो आने वाला समय बतायेगा,,,,ज़रा फिर से सोचो ममता दी ,,,,
-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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