डॉ मीरा ,
सहायक प्राध्यापक ( वाणिज्य ) राजकीय महिला महाविद्यालय लाखन-माजरा रोहतक

अब धीरे-धीरे आमजन स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने लगा है, जिससे प्रतीत होता है कि आजकल लोकल फॉर वोकल बनने की आवाज बुलंद होने लगी है,लेकिन वहीं दूसरा पहलू यह भी है कि स्वदेशी वस्तुओं को जितना बढ़ावा मिलना चाहिए उतना अभी तक नहीं मिल पाया है। हमें स्वदेशी को सिर्फ अर्थव्यवस्था के साथ जोड़कर देखना नहीं चाहिए । स्वदेशी एक व्यापक अवधारणा है, इससे हमारी संस्कृति, कला, ज्ञान की परिधि और वैज्ञानिक उन्नति जुड़ी हुई है। महात्मा गांधी ने कहा था जो भी संसाधन अपने देश में है, उन पर विश्वास करेंगे तो थोड़े दिनों में जब हम विकसित हो जाएंगे तो फिर दूसरे देश स्वयं हमारे पास आएंगे।

हमारे इतिहास के साथ है स्वदेशी का गहरा संबंध
हमारे देश में प्रथम ‘स्वदेशी का नारा’ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने एक विज्ञान सभा में 1872 में दिया था। इसके बाद भोलानाथ चंद्र ने 1874 में एक मैगज़ीन में आत्मनिर्भर बनने के लिए ‘स्वदेशी नारा’ देते हुए कहा था कि भारत की उन्नति भारतीयों के द्वारा ही संभव है। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित एक पत्रिका ‘सरस्वती’ में स्वदेशी वस्तुओं का स्वीकार करो नाम से एक कविता छपी। इसके अलावा 1905 में बंग- भंग के विरोध में 1906 में स्वदेशी आंदोलन के द्वारा स्वदेशी वस्तुएं अपनाने और विदेशी सामान का बहिष्कार करने पर भी जोर दिया गया था। सन 1930 में महात्मा गांधी ने अपने अनुयायियों के साथ नमक कानून का विरोध करते हुए दांडी समुद्र तट पर नमक बनाकर आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की पहल की।

करोना कॉल ने दिया हमें आत्मनिर्भर बनने का सबक
आत्मनिर्भर राष्ट्र होगा तो वह आकस्मिक आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में भी सक्षम होगा,जैसा कि करोना काल में हम सब ने देखा कि भारत को टेस्टिंग किट पीपीई किट और अन्य उपकरणों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ा और जो टेस्टिंग किट भारत ने चीन से खरीदे, वे पूरी तरह से प्रमापों पर खरे भी नहीं उतरे, जिससे हमें आत्म-निर्भर बनने में, लोकल उत्पादों का महत्व समझ में आया और वर्तमान समय में अपना देश कोरोना वैक्सीन बनाकर आत्मनिर्भर बना। हर भारतीय का यह विचार है कि हमारा देश सुई से हवाई जहाज, सुरक्षा उपकरणों, तकनीक और मिसाइलों आदि स्वयं तैयार करें। यह विचार सिर्फ एक विचार बनकर ही न रहे बल्कि एक हकीकत बने। आत्मनिर्भर बनने का मतलब दूसरे देशों से दूरी बनाना बिल्कुल भी नहीं है। आत्मनिर्भर भारत के लिए दो पहलू सबसे महत्वपूर्ण है, एक ‘लोकल फॉर वोकल’ यानी हम हमारे अपने देश में बने हुए सामान को बढ़ावा दें, उसे अपने दैनिक जीवन में प्रयोग में लाएं और दूसरा पहलू है- ग्लोबल फॉर लोकल यानी भारत में बनी हुई वस्तुओं को दूसरे देशों में बेचे अर्थात निर्यात को बढ़ावा दें, जिसके परिणाम स्वरूप हमारा लोकल से ग्लोबल बनने का सपना पूरा होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था विकसित बनेगी।

आत्मनिर्भरता में लघु और मध्यम उद्योगों की अहम भूमिका उद्योगों को बढ़ावा मिलने से बेरोजगारी में कमी आएगी, जिसके फलस्वरुप देश में गरीबी से भी निजात पाया जा सकेगा।

स्वदेशी उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देकर, भारतीय मुद्रा रुपया को विदेशों में जाने से रोका जा सकता है। लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर अर्थव्यवस्था को ओर मजबूत करना स्वदेशी और आत्मनिर्भर बनने का सबसे सही मार्ग है। स्टार्टअप योजना, स्टैंड अप, मुद्रा बैंक, मेक इन इंडिया, लघु उद्योगों को दी जाने वाली सब्सिडी और टैक्स में कटौती आदि के अंतर्गत भी छोटे उद्योगों के उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया गया है।

आत्मनिर्भरता के लिए क्रांतिकारी कदम
लोकल फॉर वोकल के लिए राष्ट्र द्वारा छोटे-छोटे परिवर्तनों की बजाय बड़े स्तर पर क्रांतिकारी कदम उठाते हुए एक ऐसा आधुनिक और डिजिटल तंत्र तैयार किया जाए, जिससे स्थानीय उपभोक्ताओं के साथ-साथ वैश्विक स्तर के उपभोक्ताओं की पसंद को ध्यान में रखकर वस्तुओं का उत्पादन किया जाए। लोकल फॉर वोकल को हमें अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाकर स्वदेशी वस्तुओं के प्रति अपना प्रेम जगाना होगा और विदेशों द्वारा निर्मित महंगे-महंगे ब्रांड्स पर अधिक खर्च न करते हुए, भारतीय वस्तुओं का उपभोग करने के लिए लोगों में ओर जागरूकता फैलाने होगी, तभी हमारा लोकल फॉर वोकल स्लोगन वास्तविकता में बदलेगा।

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