दुष्यंत चौटाला उनके भाई दिग्विजय चौटाला और प्रदेश अध्यक्ष धनखड़ किसानों पर दर्ज मुकदमे वापिस लेने की वकालत का ढोंग तो करते है

2 दिसम्बर 2021 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने एक बयान में कहा कि बुधवार को राष्ट्रपति द्वारा विधिवत रूप से गजट नोटिफिकेशन करने के बाद तीन काले कृषि कानून बेशक निरस्त हो गए लेकिन किसान को बाटने, ठगने व उन्हे गुमराह करने की मोदीे-भाजपा संघी सरकार ने अपनी तिकडमी चालों को नही छोड़ा है। विद्रोही ने कहा कि किसानों व विपक्ष के भारी दबाव के बाद मोदीजी ने मजबूर होकर तीन काले कृषि कानून खत्म कर दिये, लेकिन पूंजीपतियों के हित साधने व वोट बैंक की राजनीति खातिर किसानों की एकता को तोडकर उन्हे बाटने और उनके आंदोलन को तोडने की सत्ता दुरूपयोग से हर तिकडमे अपनानी शुरू कर दी है। पंजाब में कांग्रेस सरकार होने के चलते किसान आंदोलन के दौरान आंदोलनकारीे किसानों पर नाममात्र के मुकदमे दर्ज हुए थे, जिन्हे भी पंजाब सरकार ने वापिस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। लेकिन हरियाणा में जिन 45 हजार किसानों पर भाजपा-जजपा खट्टर सरकार ने विभिन्न संगीन धाराओं के तहत अनेक एफआईआर दर्ज करके मुकदमे लादे थे, उन्हे वापिस लेने की बजाय इन मुकदमों को आधार बनाकर किसानों का दमन करने, उन्हे बाटने की तिकडमी चाले चली जा रही है।

विद्रोही ने कहा कि उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला व उनके भाई दिग्विजय चौटाला और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष औमप्रकाश धनखड़ बयान बहादुर बनकर किसानों पर दर्ज मुकदमे वापिस लेने की वकालत का ढोंग तो करते है, लेकिन वे भूल रहे है कि मुकदमे भी उन्ही की सरकार को वापिस लेने है। सवाल उठता है कि मीडिया में बयान दागने की बजाय येे मुख्यमंत्री खट्टर जी से चर्चा करके किसानों पर दर्ज मुकदमे वापिस क्यों नही लेते? मुकदमे वापिस लेने की बजाय व्यर्थ की बयानबाजी का क्या औचित्य है? किसान आंदोलन के संदर्भ में मुख्यमंत्री सत्ता के दलाल कुछ किसान नेताओं से चर्चा करने की बजाय आंदोलनकारी किसान नेताओं से बैठक करके सभी मुद्दों पर चर्चा करके किसान समस्याओं का समाधान क्यों नही करते?

वहीं विद्रोही ने कहा कि देश-प्रदेश के हर नेता व हर मीडिया हाऊस के पास विगत एक साल में किसान आंदोलन में शहीद हुए 681 किसानों की पते सहित पूरी सूची मौजूद है। पर केन्द्र सरकार का संसद में कहना कि उन्हे मृतक किसानों की जानकारी नही है और किसान आंदोलन में हुई मौतों पर मुआवजा देने का प्रश्न ही नही उठता। मोदी सरकार का यह रवैया उनकी नीयत पर सवाल खड़ा करके उनकी कथनी-करनी का स्पष्ट अंतर दर्शा रहा है। आंदोलनकारी किसानों को अपना आंदोलन खत्म करने से पहले सभी मुद्दों पर लिखित समझौता करना चाहिए नही तो यह ठग संघी सरकार उनके साथ धोखा करने से बाज नही आयेगी। विद्रोही ने कहा कि गिरगिट की तरह रंग बदलकर अपनी कही बातों से पलटने वाली मोदी-भाजपा सरकार की किसी जुबानी बात पर विश्वास करना अपने पैरों पर खुद ही कल्हाड़ी मारने के समान है। 

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