डॉ मीरा…….सहायक प्राध्यापक (वाणिज्य) राजकीय महिला महाविद्यालय लाखन माजरा, रोहतकआज के युग में सोशल मीडिया मंच के माध्यम से झूठी और गलत सूचनाएं फैलने की समस्या लगातार बढ़ रही है। हमारा देश भी इन फर्जी खबरों के बढ़ते खतरे से अछूता नहीं है। सोशल मीडिया जैसे व्हाट्सएप फेसबुक इंस्टाग्राम आदि पर अग्रेषित हो रही झूठी सूचनाओं का मुख्य कारण इनके यूजर्स की संख्या बढ़ना और उनमें डिजिटल साक्षरता की कमी होना है। सोशल मीडिया के माध्यम से सबसे अधिक फर्जी खबरें फैलाई जाती हैं और इनके प्रसार को रोकना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। गंभीर सोचनीय विषय तो यह है कि अभी तक हमारे देश में ऐसी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है जिससे ऐसी फर्जी न्यूज़ को पूरी तरह निषिद्ध किया जा सके। हालांकि कुछ उपाय उपलब्ध हैं जिससे कुछ हद तक इस समस्या का समाधान संभव है। फेक न्यूज़ से संबंधित जागरूकता है जरूरीमार्च 2020 को प्रधानमंत्री जी ने कोरोना महामारी से संबंधित सोशल मीडिया पर फैली किसी भी अफवाह पर विश्वास न करने की अपील की।इसके अलावा भी कई अफवाहें सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई जैसे प्रेस सूचना ब्यूरो ने तथ्यों की जांच करके स्पष्ट किया कि भारत में वित्तीय आपातकाल लागू किए जाने की खबर एकदम फर्जी है। इसके अलावा नागरिक संशोधन अधिनियम और 2019 चुनाव से संबंधित भी कई भ्रमक सूचनाएं सोशल मीडिया पर प्रचलित रही। हमें इस तरह की झूठी और नकली सूचनाओं के बारे में जनता को ओर जागरूक करना होगा और लोगों में वास्तविक खबर पहचानने की क्षमता पैदा करनी होगी।सरकार इसके लिए और प्रभावी नीतियां बनाए और उनको लागू करें ताकि फेक न्यूज़ के प्रसारण को तुरंत रोका जा सके। खबरें साझा करने से पहले करें सत्यता की जांचहम देखते हैं कि ज्यादातर लोग वास्तविक न्यूज़ की पहचान किये बिना ही उसको लाइक शेयर और कमेंट करने की जल्दी करते हैं, जिससे फेक न्यूज़ को ओर बढ़ावा मिलता है और समाज में दंगे, अशांति और भय का माहौल बढ़ता है। अगर कोई भी बड़ी घटना घटती है तो कई मीडिया चैनल, संगठन व एजेंसियां इसकी रिपोर्ट करती हैं, इसलिए यह निर्धारित करें कि क्या अन्य न्यूज़ आउटलेट्स: वेबसाइट्स, न्यूज़पेपर व दूसरे प्रकाशन भी ऐसी पोस्ट पब्लिश कर रहे हैं या नहीं, ऐसा करने से न्यूज़ स्रोत का अच्छे से मूल्यांकन हो पाएगा।एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति फेक न्यूज़ के बारे में बताता है तो उसको देशद्रोही जैसे शब्दों से संबोधित ना करके, हमें उसकी प्रशंसा करते हुए, उसका साथ देना चाहिए। पी.आई. बी और ऑफिशल न्यूज वेबसाइट्स की भूमिकाप्रेस सूचना ब्यूरो के पीआईबी फैक्ट चेक पोर्टल द्वारा सुचनाओ की जांच की जाती है। इसके अलावा कुछ अविश्वसनीय वेबसाइट्स जैसे इंडिया टुडे,द हिंदू इकोनामिक टाइम्स और प्रिंट मीडिया आदि बड़े-बड़े मीडिया हाउस भी फेक न्यूज़ की जांच करने में काफी मददगार हैं। सही दिशा में आगे बढ़ते कदम*भारत के सर्वोच्च न्यायालय के महान्यायवादी द्वारा आधार कार्ड को सोशल मीडिया अकाउंट से जोड़ने जैसे सुझाव दिए गए हैं। वहीं केरल राज्य के कुछ सरकारी स्कूलों में झूठी और नकली खबरों व सूचनाओं से संबंधित कक्षाएं संचालित की गई हैं।फेसबुक ने बेवकूफ जैसी तथ्य जांच वेबसाइट्स के साथ भागीदारी की है। इसके अलावा व्हाट्सएप ने भी भ्रमक सूचनाओं को नियंत्रित करने के लिए एक संदेश को अग्रेषित करने की अधिकतम संख्या सीमित की है। गूगल ने भी तथ्य जांच को लेकर लोगों को जागरूक किया है। कई बार सरकार द्वारा इंटरनेट शटडाउन का उपयोग सोशल मीडिया पर फैली फर्जी न्यूज़ को रोकने के लिए किया जाता रहा है लेकिन लंबे समय तक इंटरनेट सेवाएं बंद करना इस समस्या का सही व स्थाई उपाय नहीं है। सरकार द्वारा साइबर थाने बनाना, पुलिस प्रशिक्षण देना, आदि इस दिशा में सराहनीय कार्य है। डिजिटल साक्षरता से ही ज्यादातर लोगों को जागरूक किया जा सकता है डिजिटल शिक्षा में सुधार लाने के लिए सरकार,मीडिया, पुलिस, प्रौद्योगिकी और हम सबको एक साथ मिलकर प्रयास करना होगा, तभी ऐसी सूचनाओं का खंडन संभव है। Post navigation 11 दिसंबर को नूंह में होगा ‘विपक्ष आपके समक्ष’ कार्यक्रम- हुड्डा अब चुनाव मोड में राजनीतिक दल