11 दिसंबर को नूंह में होगा ‘विपक्ष आपके समक्ष’ कार्यक्रम- हुड्डा

सरकार के संरक्षण बिना भर्तियों में इतने घोटाले संभव नहीं- हुड्डा
अगर संरक्षण नहीं तो उच्च स्तरीय जांच कराने में संकोच क्यों- हुड्डा
विकास कार्य पूरी तरह ठप, हर वर्ग परेशान- हुड्डा

22 नवंबर, रोहतक: पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ऐलान किया है कि ‘विपक्ष आपके समक्ष’ कार्यक्रम का अगला पड़ाव 11 दिसंबर को नूंह में होगा। करनाल और जींद की तरह यहां पर भी बड़ी तादाद में आम लोग पहुंचेंगे, जिनसे सीधा संवाद स्थापित किया जाएगा। ‘विपक्ष आपके समक्ष’ एक ऐसा मंच है, जहां आम जनता विपक्ष के समक्ष अपनी स्थानीय और प्रदेश स्तरीय समस्याओं को रखती है।

हुड्डा आज रोहतक में पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि बीजेपी जेजेपी सरकार अपने वायदों पर खरी नहीं उतरी। इस सरकार में विकास कार्य ठप पड़े हैं और हर वर्ग इससे दुखी है। हुड्डा ने कहा कि सरकार के पारदर्शिता और मेरिट के आधार पर नौकरी के दावे की पोल खुल चुकी है। इस सरकार की पारदर्शिता और मेरिट नोटों की अटैची में बंद है। बार-बार मांग करने के बावजूद सरकार भर्ती घोटालों की उच्चस्तरीय जांच से भाग रही है। जाहिर है सरकार के संरक्षण के बिना इतने बड़े घोटाले संभव नहीं है। अगर घोटालेबाजों को सरकार का संरक्षण नहीं है तो फिर उसे उच्चस्तरीय जांच से संकोच क्यों है? पूरे मामले की सीबीआई या हाईकोर्ट के जज से जांच होनी चाहिए ताकि एचएसएससी और एचपीएससी के कार्यालयों से लेकर सरकार में फैले भर्ती माफिया के जाल का पर्दाफाश हो सके। सबसे पहले दोनों ही संस्थाओं के चेयरमैन का इस्तीफा लिया जाना चाहिए ताकि निष्पक्ष जांच हो सके।

हुड्डा ने किसानों की समस्याओं के बारे में बात करते हुए कहा कि आज ना उन्हें एमएसपी मिल रही और ना ही खाद। किसान की लागत लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन एमएसपी में नाममात्र बढ़ोतरी हो रही है। कांग्रेस कार्यकाल में ना बीज, ना खाद, ना कीटनाशक और ना ही खेती उपकरणों पर कोई टैक्स था। लेकिन इस सरकार ने खेती से जुड़ी हर चीज पर टैक्स लगाकर खेती को महंगा करने का काम किया।

उन्होंने कहा कि अगर सरकार किसानों का कुछ भला करना चाहती है तो उसे स्वामीनाथन रिपोर्ट के सी2 फार्मूले के तहत किसानों को एमएसपी देनी चाहिए और कृषि क्षेत्र को लाभकारी बनाने के लिए योजनाओं पर काम करना चाहिए। यह सरकार किसानों को उचित रेट और रियायत देने के बजाय उनपर पाबंदियां और नए नए कानून थोप रही है। पराली को लेकर बेवजह अन्नदाता को परेशान किया जा रहा है जबकि प्रदूषण को बढ़ाने में अन्य फैक्टर ज्यादा जिम्मेदार है। कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार किसानों को पराली का कोई निवारण देने में विफल रही है।

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