पहले प्रधानमंत्री, लोकतंत्र के जनक, राष्ट्रनिर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू जयंती की कल रविवार को सरकार की ओर से घोर उपेक्षा की गई। विद्रोही

15 नवम्बर 2021 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने आरोप लगाया कि एक ओर मोदी-भाजपा संघी सरकार देश की आजादी का 75वां वर्ष अमृतमहोत्सव के नाम से महोत्सव मनाने की नौटंकी करके देश के आजादी आंदोलन, लोकतांत्रिक परम्पराओं, मर्यादाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है, वहीं धीरे-धीरे लोकतंत्र, लोकलाज को खत्म करके देश में संघी फासीजम भी लाद रही है। विद्रोही ने कहा कि भारत सरकार का यह कैसा आजादी अमृतमहोत्सव है जिसमें देश के पहले प्रधानमंत्री, लोकतंत्र के जनक, राष्ट्रनिर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू जयंती की कल रविवार को सरकार की ओर से घोर उपेक्षा की गई। जब मोदी सरकार आजादी आंदोलन के अग्रणी योद्धा व देश केे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को उनकी जयंती पर राजनीतिक पूर्वाग्रहों के कारण उचित सम्मान नही दे सकती तो ऐसी सरकार को आजादी का अमृतमहोत्सव मनाने का कोई नैतिक व लोकतांत्रिक अधिकार नही है। 

विद्रोही ने कहा कि राजीतिक द्वेष व आजादी आंदोलन में संघीयों की देश विरोधी भूमिका के पाप को छिपाने के लिए मोदी-संघी सरकार ना केवल राष्ट्र निर्माताओं की उपेक्षा कर रही अपितु अपने खरीदे गुलामों से स्वतत्रंता सेनानियों, आजादी आंदोलन पर सवाल भी खड़े करवा रही है और जो 15 अगस्त 1947 की आजादी को भीख बता रहे है, उन्हे पदमश्री पुरस्कार से नवाजकर एक तरह से आजादी आंदोलन का ही मजाक उड़ा रही है। प्रधानमंत्री मोदी व उनकी केन्द्र और राज्य सरकारों के रवैये से अब साफ हो गया कि संघी सुनियोजित ढंग से देश में लोकतंत्र, लोकलाज, संविधान, अभिव्यक्ति की आजादी, मानवाधिकारों को कुचलकर संविधान व लोकतंत्र के नाम पर संघी फासीजम लाद रहे है जो लोकतंत्र व संविधान के लिए बहुत बडा खतरा है। 

विद्रोही ने कहा कि वे जिस दक्षिणी हरियाणा-अहीरवाल में पैदा हुए, बड़े हुए वह क्षेत्र पिछडा-दलित बाहुल्य होने के बाद भी यहां के नेताओं की सत्तालिप्सा, निजी स्वार्थो की राजनीति व आमजनों की अंधभक्ति के चलते संघी गढ़ बनकर खुद अपने पैरों पर कुल्हाडी मार रहा है। जिस पिछडे, दलित वर्ग को हजारों वर्षो तक मनुवादी व्यवस्था का दास बनकर प्रताडित होना पडा है और कड़े संघर्ष के बाद उन्हे जो मनुवादी व्यवस्था से छुटकारा मिलकर बराबरी व आजादी मिली थी, उस आजादी को इस क्षेत्र के लोग संघी गुलाम बनकर खुद अपनी भावी पीढी को संघी मनुवाद व संघी हिन्दुत्व का गुलाम बनाने का पाप कर रहे है जिसके दूरगामी दुष्परिणाम उनकी भावी पीढी को भुगतने होंगे।

विद्रोही ने किसान, मजदूरों, पिछडे, दलितों, कमेरे व मेहनतकश वर्ग से आग्रह किया कि यदि उन्होने संघी फासीजम व संघी हिन्दुत्व को पहचानकर इन मनुवादी ताकतों के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष नही किया तो भावी पीढिय़ों को उनकी नादानी के लम्बे समय तक आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक दुष्परिणाम भुगतने होंगे।

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