भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। ऐलनाबाद की जनता को बधाई कि चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हुआ, छुट-पुट घटनाओं के सिवा। ऐलनाबाद की जनता वोट डालने भी खूब पहुंची, 81.34 प्रतिशत मतदान हुआ। कल जो भाजपा के नेताओं के बड़े ब्यान आ रहे थे कि इतने वोटों से जीतेंगे-इतने वोटों से जीतेंगे लेकिन आज वे बोलने से कतरा रहे हैं। हमने कल लिखा था कि मुख्यमंत्री का लक्ष्य मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को कमजोर करना है, जिसमें वह सफल हुए। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस जमानत बचाने के लिए संघर्ष करती नजर आएगी, जबकि भाजपा दूसरे स्थान पर रहेगी और विजय का सेहरा इनेलो उम्मीदवार अभय चौटाला को मिलेगा। जैसा कि हमने कल लिखा था कि साम-दाम-दंड-भेद का खेल खेला जाएगा तो वही आज सामने भी आया। पुलिस ने कुछ व्यक्तियों को गिरफ्तार भी किया है, जिनके संबंध हलोपा और भाजपा से हैं। उन गिरफ्तार व्यक्तियों के पास से लिस्ट भी मिली, जिसमें अनेक व्यक्तियों के नाम हैं। माना जा रहा है कि यह लिस्ट उन लोगों की थी, जिन्हें वोट देने के लिए पैसे पहुंचाने थे। यह बात दिन में ही ऐलनाबाद में वायरल हो गई। इसका परिणाम शायद भाजपा के लिए घातक ही रहा। सूत्र बताते हैं कि कुछ लोगों ने कहा कि जब वह पैसे बांट रहे हैं तो हमें तो पैसे मिले नहीं, हमारे पैसे कोई और खा गया, फिर हम भाजपा को वोट क्यों दें? इस चुनाव का वास्तविक परिणाम तो दो नवंबर को मतगणना के बाद ही पता लगेगा। वर्तमान में तो अटकले हैं लेकिन इन अटकलों में यह बात अवश्य उभरकर सामने आ रही है कि यदि गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा चुनाव हार भी गए तो उसके नुकसान की भरपाई के लिए गोपाल कांडा को हरियाणा सरकार में मंत्री या अन्य कोई महत्वपूर्ण पद अवश्य मिलेगा। चुनाव परिणाम आने के पश्चात हरियाणा की राजनीति में बदलाव आने की संभावना है। यह चुनाव पूर्ण रूप से मुख्यमंत्री की रणनीति से लड़ा गया है। और यदि इसमें हार मिलती है जोकि बड़ी हार संभावित है तो भाजपा में ही मुख्यमंत्री की सोच से इत्तेफाक न रखने वाले भाजपा नेता यह अवश्य दर्शाने का प्रयास करेंगे कि प्रधानमंत्री का आंकलन सही नहीं था। मुख्यमंत्री प्रयोगधर्मी तो हैं लेकिन उनके प्रयोग सफल तभी तक हो रहे हैं, जब तक उन पर प्रधानमंत्री का वरदहस्त है, अन्यथा उनके प्रयोग सफल नहीं हैं, जिसका प्रमाण वर्तमान में हरियाणा की जनता है, जो मुख्यमंत्री को पसंद नहीं करती। ऐसा सर्वे और हरियाणा की जमीनी हकीकत कह रही है। Post navigation कमलेश सिंहल व डा. रुचि अग्रवाल को विशेष सम्मान 1947 के विभाजन का दर्द – बुजुर्गों की जुबानी