हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक, पत्रकार व विचारक अपनी बेबाकी और अलग अंदाज से दूसरों के मुंह पर ताला लगाना एक बेहद मुश्किल काम होता है। कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है और ऐसे कई पत्रकार हैं जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी। गणेश शंकर विद्यार्थी भी ऐसे ही पत्रकार रहे हैं जिन्होंने अपने कलम की ताकत से अंग्रेजी शासन की नीव हिला दी थी। 26 अक्टूबर 1890 को प्रयागराज, उप्र में जन्मे गणेशशंकर विद्यार्थी एक निडर और निष्पक्ष, क्रांतिकारी पत्रकार तो थे ही, एक समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। गणेश शंकर विद्यार्थी एक ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जो कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसक समर्थकों और क्रांतिकारियों को समान रूप से देश की आजादी में सक्रिय सहयोग प्रदान करते रहे। मनुष्य जिंदगी भर सीखता है मैं अपने नाम के आगे विद्यार्थी इसलिए जोड़ता हूं क्योंकि मेरा मानना है कि मनुष्य जिंदगी भर सीखता है, हम विद्यार्थी बने रहते हैं। ऐसी अनुकरणीय मीमांसा से ओत-प्रोत गणेशशंकर विद्यार्थी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली (ग्वालियर) में हुई थी। इन्होंने उर्दू-फ़ारसी का अध्ययन किया। वह आर्थिक कठिनाइयों के कारण प्रवेश तक ही पढ़ सके, किन्तु उनका स्वतंत्र अध्ययन अनवरत चलता ही रहा। अपनी लगन के बल पर उन्होंने पत्रकारिता के गुणों को खुद में सहेज लिया था। शुरु में गणेश शंकर जी को एक नौकरी भी मिली थी पर अंग्रेज़ अधिकारियों से ना पटने के कारण उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी। फिर राष्ट्रवाद और आजादी का जुनून ऐसा चढ़ा की अपने समर्पण और कलम से क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सारे देश में नव ऊर्जा का संचार कर दिया। ओज, गाम्भीर्य और निर्भीकता भी पर्याप्त पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य करने के कारण उन्हें पांच बार सश्रम कारागार और अर्थदंड अंग्रेजी शासन ने दिया। विद्यार्थी जी के जेल जाने पर ‘प्रताप’ का संपादन माखनलाल चतुर्वेदी व बालकृष्ण शर्मा नवीन करते थे। उनके समय में श्यामलाल गुप्त पार्षद ने राष्ट्र को एक ऐसा बलिदानी गीत दिया जो देश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक छा गया। यह गीत ‘झण्डा ऊंचा रहे हमारा’ है. इस गीत की रचना के प्रेरक थे अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी। जालियावाला बाग के बलिदान दिवस 13 अप्रैल 1924 को कानपुर में इस झंडागीत के गाने का शुभारंभ हुआ था। विद्यार्थी जी की शैली में भावात्मकता, ओज, गाम्भीर्य और निर्भीकता भी पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। उनकी भाषा कुछ इस तरह की थी जो हर किसी के मन पर तीर की भांति चुभती थी। गरीबों की हर छोटी से छोटी परेशानी को वह अपनी कलम की ताकत से दर्द की कहानी में बदल देते थे। कोई भी हिन्दुस्तानी भुला नहीं पाएगा वह निडर, निर्भीक और बेजोड़ कलमकार थे। महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे, पर पंडित चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, बासकृष्ण शर्मा नवीन, सोहन लाल द्विवेदी, सनेही, प्रताप नारायण मिश्र जैसे तमाम देशभक्त और राष्ट्रप्रेमी इनके अच्छे मित्र थे। प्रताप अखबार में जब भी अजादी की खबर प्रकाशित होती तो गोरे उन्हें कैद कर जेल भेज देते। बाहर आते ही वह फिर उनसे कलम से जंग छेड़ देते। लेकिन देशभक्त पत्रकार महान क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी की 25 मार्च 1931 को दंगाईयों ने कानपुर के चौबे गोला चौराहे के चाकू घोपकर शहीद कर दिया था। वह वहीं पर गिर गए। जब तक सांस चलती रही, तब तक वह हिंसा न करने की लोगों से फरियाद करते रहे। उनकी मौत के बाद दंगा तो खत्म हो गया, लेकिन वह ऐसा जख्म दे गया जिसे सैकड़ों साल तक कोई भी हिन्दुस्तानी भुला नहीं पाएगा। देश ही नहीं पूरे विश्व में उनके जैसा कोई कलमकार न तो हुआ है और न ही आगे होगा। अपने छोटे जीवन-काल में उन्होंने उत्पीड़न क्रूर व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाई। गणेश शंकर विद्यार्थी भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उनका नाम अजर-अमर है। Post navigation जयराम विद्यापीठ में हास्य कवि सम्मेलन में हरियाणवी हास्य कवियों ने मानवीय संवेदनाओं के साथ देशभक्ति का रंग बिखेरा ‘संत नामदेव’, अमृत का निरंतर बहता झरना