सत्संग बुराई से अच्छाई की और ले जाता है, विजयदशमी का भी यही संदेश है : कंवर साहेब जी महाराजविजयदशमी केवल लौकिक रूप से न मनाओ बल्कि इसे अपने अंतर में स्थापित करो : कंवर साहेब जी महाराज नजफगढ़ जयवीर फोगाट 14 अक्टूबर,जिस संकल्प में आपका स्वार्थ ना हो और जो औरों की भलाई और परोपकार में किया गया हो वो संकल्प अवश्य पूरा होता है। अगर संकल्प सत्संग से सम्बंधित है तो परमात्मा स्वयं उसे पूरा करते हैं क्योंकि सत्संग ना सिर्फ आपके आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है अपितु यह आपकी सामाजिक व मानसिक सम्बलता का भी कार्य करता है। सत्संग बुरे से अच्छे की और लेकर जाता है। विजयदशमी का भी यही संदेश है। विजयदशमी केवल लौकिक रूप से न मनाओ बल्कि इसे अपने अंतर में स्थापित करो। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दशहरे से एक दिन पूर्व नजफगढ़ के निलवाल गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। उल्लेखनीय है कि हर वर्ष दशहरे के अवसर पर सत्संग का आयोजन नजफगढ़ में होता है। हुजूर महाराज जी इस अवसर पर आश्रम के नवनिर्माण की नींव भी रखी। हुजूर कंवर साहेब जी ने कहा कि दशहरे का महत्व हम सबको पता है। रामायण हमें जीवन का हर मर्म समझाती है लेकिन मुख्यत ये भक्ति और सेवा को बल देती है। श्री राम की यह कथा हमें बताती है कि भक्ति करने वालो के कारज कैसे आसानी से संवरते हैं। गुरु महारज जी ने कहा कि साधु होना और साधु बनने में भी बहुत फर्क है। रावण साधु बना तो था लेकिन साधु हो ना सका। साधु ना हो सकने के कारण ही आज युग पलट गए लेकिन रावण का दहन आज भी होता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि दुष्ट विचार और सोच युगों बाद भी घृणा ही पाते हैं। उन्होंने कहा कर्म युग बीत जाने पर भी पीछा नहीं छोड़ते। जो किया है उसका परिणाम आप को मिलेगा ही मिलेगा। इसलिए इंसानी चोले में आकर इस अवसर को वृथा मत खोवो। उन्होंने कहा कि जिसे भक्ति की ललक लग जाती है उसे दुनिया की कोई ताकत भक्ति से रोक नहीं सकती। महात्मा बुद्ध, राजा भर्तृहरि जैसे कितने नाम हैं जिन्होंने सारी सुख सुविधाएं भक्ति के रस के लिये त्याग दिए। रामायण में जिस भीलनी का जिक्र आप सुनते हो उसके साथ भी यही हुआ था। उसका राम के दर्शन का संकल्प था। उस का यह संकल्प ही श्री राम को उसकी कुटिया पर ले आया। गुरु महाराज जी ने कहा कि कोरी भक्ति भी इंसान को नहीं रास आती। भक्ति दिखावे की वस्तु नहीं है। भक्ति तो नेकी में छिपी है। भीलनी के साथ भी यही हुआ था। शबरी भीलनी भील सामुदाय से सम्बन्ध रखती थीं। उनके पिता भीलों के राजा थे। उनका विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले सैकड़ों बकरे-भैंसे बलि के लिए लाये गए जिन्हें देख शबरी को बहुत बुरा लगा कि यह कैसा विवाह जिसके लिए इतने पशुओं की हत्या की जाएगी। शबरी विवाह के एक दिन पहले उन पशुओं को आजाद कर के घर से भाग गई। पशुओं ने भीलनी को दुआ दी थी कि जैसे आज तुमने हमारा कल्याण किया है एक दिन तुम्हारा भी कल्याण होगा। उसी भीलनी को मतंग ऋषि के मार्गदर्शन से श्री राम के दर्शन हुए। गुरु महाराज जी ने कहा कि आप के द्वारा की गई अच्छाई आपको दुगुने चौगुने रूप में वापिस मिलेगी। हुजूर महाराज जी ने कहा कि महापुरुषो की संगत करने से, उनके वचन सुनने से आपके कर्म सुधरते हैं लेकिन होगा तभी जब आपका विश्वास दृढ़ होगा। उन्हीने कहा कि हम शरीर के रोगों से विचलित हो जाते हैं क्योंकि हम भूल जाते हैं कि शरीर का रोग तो काया का भोग है। उन्होंने सन्तमत को सहज मत बताते हुए कहा कि यह तीन चीजो पर आधारित है। “सुमरन, ध्यान और भजन” गुरु महाराज जी ने कहा कि भक्ति के बिना रूप, धन, बल सब बेकार है। बिना भक्ति तो इंसान ऐसा है जैसे सुंदर स्त्री की नाक कटी हो। बिना भक्ति के इंसान बिना बादल की बारिश जैसा है। इंसान वही भला है जो किसी का हित करता है। उन्होंने कहा कि आज विजयदशमी का शुभ दिन है इसलिए आज आप ये संकल्प लेकर जाओ कि आज आप अपने मन से सभी बुराइयों का दहन करके जाओ। संकल्प लेकर जाओ की राम की भांति अच्छे पुत्र बनोगे। लक्ष्मण और भरत जैसे भाई बनोगे। विभीषण जैसे सत के साथी बनोगे। माता सीता जैसे सती बनोगे। उन्होंने कहा कि कामना रहित हो जाओ क्योंकि जब तक कामना रहेगी तब तक भटकोगे। जो आपके लिए कांटा बोता है उसके लिए भी आप फूल ही बोवो क्योंकि वो लेखाकार सबका लेखा रखता है। Post navigation बालाघाट में 60 वर्षों से पानीपत का दशहरा दशहरा पर्व………अधर्म पर धर्म की जीत, अन्याय पर न्याय की विजय,