चंडीगढ़, 4 अक्टूबर – हरियाणा सरकार ने प्रदेश के विभिन्न जिलों में ‘डीसी रेट’ में संशोधन करने का निर्णय लिया है। डीसी रेट अकुशल (अनस्किल्ड), अर्धकुशल (सेमिस्किल्ड) और कुशल श्रमिकों (स्किल्ड) की मजदूरी होती है, जो उपायुक्तों की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समिति द्वारा तय की जाती है। राज्य सरकार ने इस मामले की समीक्षा कर न्यूनतम मजदूरी तथा जिला विशेष उपभोक्ता मूल्य के सिद्धांतों पर डीसी रेट तय करने का निर्णय लिया है। हरियाणा के मुख्य सचिव के नेतृत्व में सामान्य प्रशासन विभाग सभी श्रेणियों और जिलों के लिए डीसी रेट तय करेगा। इससे इन दरों को युक्तिसंगत बनाया जा सकेगा और इससे कर्मचारियों को लाभ होगा।

इस संबंध में जानकारी देते हुए सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि डीसी रेट का प्रारंभिक उद्देश्य आसानी से उपलब्ध श्रम दर होना था, जिसका उपयोग, समय की कमी के कारण निविदाओं को आमंत्रित करना संभव न होने की स्थिति में, आपातकालीन स्थिति जैसे बाढ़ नियंत्रण कार्यों के लिए श्रमिकों को लगाना आदि के लिए किया जा सकता है। समय के साथ डीसी रेट को गैर-आपातकालीन समय में भी एडहॉक/अस्थायी श्रमिकों/कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए मानक दर के रूप में मान्यता मिल गई।

इस कार्यप्रणाली में विभिन्न कारक जैसे किराये के आवास का मूल्य, सब्जी की कीमतें, स्कूल शुल्क दर आदि शामिल हैं। प्रवक्ता ने बताया कि जिलों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। श्रेणी-ए में जिला गुरुग्राम, फरीदाबाद, पंचकूला और सोनीपत, श्रेणी-बी में पानीपत, झज्जर, पलवल, करनाल, अंबाला, हिसार, रोहतक, रेवाड़ी, कुरुक्षेत्र, कैथल, यमुनानगर, भिवानी और जींद तथा श्रेणी-सी में महेंद्रगढ़, फतेहाबाद, सिरसा, नूंह और चरखी दादरी शामिल हैं।

प्रवक्ता ने बताया कि मजदूरी समूह के अनुसार अर्थात ग्रुप-बी (स्किल्ड), ग्रुप सी-1 (सेमिस्किल्ड नॉन टेक्निकल), ग्रुप सी-2 (सेमिस्किल्ड II-टेक्निकल) और ग्रुप डी (अनस्किल्ड), लागू की जाएगी। मुद्रास्फीति के साथ तालमेल बनाये रखने के लिए सालाना 5 प्रतिशत की वृद्धि की अनुमति दी जाएगी।

प्रवक्ता ने बताया कि डीसी रेट को युक्तिसंगत बनाने का मामला कुछ समय से राज्य सरकार के विचाराधीन था। उन्होंने बताया कि डीसी रेट का निर्धारण जिला विशेष और मुख्य रूप से प्रचलित न्यूनतम मजदूरी तथा जिला विशेष श्रम दरों पर आधारित हैं। सभी जिलों में मजूदरी की दरों में काफी अंतर है। डीसी दरों में वृद्धि न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि के अनुपात में नहीं होने के कारण या तो बहुत अधिक या बहुत कम है। मुद्रास्फीति आदि जैसे मापदंडों के आधार पर डीसी रेट में संशोधन भी संस्थागत नहीं है।

राज्य सरकार के डीसी रेट में संशोधन के निर्णय से इन दरों को युक्तिसंगत बनाया जा सकेगा और इससे कर्मचारियों को लाभ होगा।

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