जहाँ कमल खिलता है, वहाँ लहू क्यों बहता है? पंडित संदीप क्यों बनाई थी भाजपा? किसे न्याय दिलाने को दिया बुझा कमल खिलाया था? किस स्वराज को पाने के लिए गली-गली भटके थे? क्यों गलियों गलियों में नारा लगाया था “अटल आडवाणी कमल निशान मांग रहा है हिंदुस्तान”? अटल जी अब रहे नहीं अब तो बोलो आडवाणी जी अन्नदाता की छाती पर नेता के काफिले का पहिया गुजर गया। किसान की कनपटी पर गोली मार जान ले ली गई। लहू से लाल हुआ लखीमपुर लाल कृष्ण आडवाणी से पूछता है क्या यही दिन दिखाने के लिए बनाई थी बीजेपी। आपको तो भली भाँति याद ही होगा बीजेपी के पहले राष्ट्रीय अधिवेशन में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपयी ने कहा था “हम सरकार को चेतावनी देना चाहते हैं, दमन के तरीके छोड़ दीजिए।” डराने की कोशिश मत कीजिए, किसान डरने वाला नहीं है। हम किसानों के आंदोलन का दलीय राजनीति के लिए उपयोग नहीं करना चाहते, लेकिन हम किसानों के उचित मांग का समर्थन करते हैं और अगर सरकार दमन करेगी, कानून का दुरुपयोग करेगी, शांतिपूर्ण आंदोलन को दबाने की कोशिश करेगी तो हम किसानों के आंदोलन में कूदने से संकोच नहीं करेंगे। हम उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे।” आज अटल जी होते तो चुप न रहते, सत्य बोलते, मुखर विरोध करते, फिर राजधर्म का सबक सिखाते, लहू से लाल लखीमपुर को देख चित्कार उठते कवि अटल। उनकी महान आत्मा आज जरूर पूछ रही होगी क्या से क्या हो गई भाजपा? किसान के लिए न सही, देश के लिए भी न सही, अटल जी की पुण्य आत्मा के लिए ही सही बोलो क्या इसी भाजपा के रूप, स्वरूप, आकार को गढ़ने के लिए रथ पर चढ़ निकले थे। आपकी यह खामोशी आपको भीष्म की तरह ही शापित करेगी, कलंकित करेगी, युग आपको इसलिए भी याद करेगा कि आप खुली आँखों से अन्याय देखते, सिले होठों के साथ सहमे किसी कोने में बैठे रहे। इन्हीं किसानों के संगठन को जंतर मंतर पर संबोधित करते हुए तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जंतर-मंतर से हुंकार भरी थी और कहा था “आपके बीच आकर खुशी हुई अनुभूति हो रही है, वहीं दूसरी तरफ खुले आसमान के नीचे 3 दिन से आप लोग धरना देने को मजबूर हैं यह बेहद तकलीफ की बात है। सच कहा युद्धवीर सिंह जी ने इतने दिन हो गए बगल में संसद है निश्चित रूप से प्रधानमंत्री जी को खुफिया विभाग से जानकारी प्राप्त हो गई होगी। प्रधानमंत्री जी आपको इस सच्चाई को समझना होगा जिस दिन किसान एकजुट होकर सड़कों पर आ जाएगा तो कोई दुनिया की ताकत उसके हौसले को पस्त नहीं कर सकती, बड़ी से बड़ी ताकतों को घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ेगा।” राजनाथ जी वो सिंह की दहाड़ कहाँ गुम है? क्यों चुप हो? अब बताओ आप किसके साथ हैं? यह ज्ञान जो आप बघार कर किसान मंच से किसानों के बीच आए थे, वो क्यों और कैसे बिसरा दिए? सरकार आपकी है, प्रधानमंत्री आपके हैं, किसान वही हैं, संघर्ष वही है, मांग भी वैसी ही हैं, आंदोलन भी वैसा है, संगठन भी वही है फिर आपके दल की भाषा, बोली, गोली में क्यों बदल गई? अटल जी रहे नहीं, सुषमा जी रही नहीं, आडवाणी जी मौन हैं, राजनाथ जी मंत्री बन गए हैं, बीजेपी सत्ता में है। हरियाणा के बुजुर्ग मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बोल रहे हैं, जवानों को ललकार रहे हैं, उकसा रहे हैं उठा लो डंडे जैसे को तैसा करो फिर जेल जाने से ना डरो लगाओ दो-चार 6 महीने इस पढ़ाई से बड़ी पढ़ाई करके निकलोगे बड़े नेता बन कर आओगे। हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल पहले किसानों को चीनी, पाकिस्तानी एजेंट बताने के बाद बेशर्मी से किसानों की मौत पर ठहाका लगाते हुए बोलते हैं वो घर में भी होते तो मरते ही, क्या फर्क पड़ता है? शहीद किसानों की मौत का मजाक बना हंसते-हंसते कहते हैं मरने वालों के प्रति हार्दिक संवेदना… इतनी संवेदनहीनता बीजेपी में कैसे घर कर गई। मौत पर मातम के बजाय नृत्य हो रहा है। लाश पर डांस, संवेदना पर ठहाका, बोली पर गोली, विरोध पर पहिया चढ़ा दिया जा रहा है। कोई है जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हुई किसानों कई बेरहम मौत पर हंसने का साहस जुटा सके फिर बीजेपी के मंत्रियों में ही यह ताकत कहाँ से आ रही है? कौन दे रहा है? मौत पर ठहाका, सीने पर गोली, छाती पर पहिया ये दर्द का मंजर हिंदुस्तान भुलाए नहीं भूलेगा। आडवाणी जी महात्मा गाँधी ने एक बार कहा था सही समय आ गया है कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए। क्या आप भी ऐसा साहस जुटाकर कह पाएंगे कि सही वक्त आ गया है अब भाजपा को भी समेट देना चाहिए। आप आज भी मौन रह जाओगे तो कभी माफ नहीं किये जाओगे। क्योंकि इस कटीले कमल का बीज आपने ही बोया, सींचा, पाला, पोसा है। चाल, चरित्र, चेहरा का नारा देने वाले आडवाणी जी भाजपा की चाल पर कुछ तो बोलो… इस खूनी चरित्र पर एक सवाल उठाओ… और दागी चेहरों को दागदार बताने के लिए एक बार ही सही जुबान तो खोलो। किसानों की बेरहम निर्मम हत्या पर भी मौन रहे तो यह आपकी भी सहमति मानी ही जाएगी। आप भी इतिहास के कटघरे में खुद को खड़ा ही पाएंगे कि जब सत्ता अहंकार के नशे में डूब धरती पुत्रों की जान ले रही थी, जब मंत्री का कारवां किसानों की छाती रौंद रहा था, जब मजबूर किसानों को गोली से भूना जा रहा था, तब सत्य, न्याय, धर्म की गुहार लगाने वाले लालकृष्ण आडवाणी किसके भय, किसके दबाव, किस स्वार्थ में खुली आँखों से किसानों की मौत का तांडव देखते रहे। क्यों नहीं खुली आपकी जुबान किसानों की विधवाओं की टूटती चूड़ियों की कराह सुन, मांग से मिटते सुहाग के सिंदूर का रुदन सुनकर, चिता में जलते किसानों को देख चीत्कार, क्रंदन, हाहाकार सुनकर। लौह पुरुष क्यों नहीं पिघला आपका हृदय? क्या आपका दिल भी लोहे का हो गया है या आपकी जुबान पर लोहे का ताला पड़ गया है। Post navigation ये राजनीतिक घराने और क्या कहें ,,, नीचे धरती , ऊपर आसमान, बीच में नशा और किसान