-कमलेश भारतीय फिल्मों में भी घराने हैं । पहले कपूर खानदान का घराना सारी फिल्म इंडस्ट्री पर राज करता था । राजकपूर सबसे बड़े शो मैन थे । फिर खान बादशाह यानी खान ने फिल्म इंडस्ट्रीज पर पूरा कब्ज़ा आ लिया । खान ही खान । चाहे फिरोज खान , संजय खान हों और अमजद खान और आजकल सलमान खान, शाहरुख खान और आमिर खान । इरफान भी आए और नवाजुद्दीन भी । वैसे बीच बीच में जितेंद्र कुमार, धर्मेंद्र और मनोज कुमार भी आए और आजकल अक्षय कुमार भी टक्कर दे रहे हैं । वैसे धर्मेंद्र ने भी पूरी फैमिली फिल्म इंडस्ट्री को दे दी । बेटियां तक आईं । जैसे कपूर खानदान की आईं । फिर संगीत की दुनिया में घराने ही घराने हैं । किसी घराने से लता मंगेशकर आती हैं तो किसी से गुलाम अली खां या फिर मेहंदी हसन या जगजीत सिंह । संगीत और फिल्म के घरानों की तरह देश में राजनीतिक घराने भी हैं जो बरसों से राज कर रहे हैं या करते आए हैं । सबसे बड़ा घराना गांधी घराना । सबसे पुराना और देखा छाये तो सबसे पहला घराना । नेहरु गांधी की जोड़ी ने देश के लिए बहुत कुछ किया और अब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह मान कर चलते हैं कि बहुत कुछ लिया इस परिवार ने और इसीलिए कई मामलों में जांच चला रखी हैं । यह अलग बहस का विषय है । भाजपा में सिंधिया घराना है तो हरियाणा में आओ तो चौ भजनलाल , चौ बंसीलाल और चौ रणबीर सिंह घराने हैं तो चौटाला घराना भी खूब परम्परा घराना है । बिहार में लालू यादव को किसी बाहरी नेता की जरूरत ही नहीं पड़ी। घर की टीम ही काफी है । तजप्रताप , तेजस्वी और मीसा और इन सबकी मां राबड़ी देवी । अब संकट यह है कि इन घरानों में से कुछ घरानों में दरारें आ रही हैं या फूट पड़ती जा रही है । जैसे बिहार में पासवान घराने में । चाचा पारसनाथ और भतीजे चिराग पासवान में टन गयी है । इतनी ठन गयी है कि चुनाव निशान तक की लड़ाई चली और निर्वाचन आयोग ने चुनाव चिन्ह ही प्लीज कर दिया । अब न चिराग न पारस । सब पत्थर बन गये रिश्ते । बिहार की ही बात करें तो एक बेटा आरोप लगा रहा है कि दूसरे बेटे ने पापा लालू यादव को अपने बस में कर रखा है यानी अपहरण ही कर रखा है । लालू यादव इतने बैबस कब से हो गये ? वैसे अःक समय बसपा सुप्रीमो मायावती पर भी आरोप लगता रहा कि उन्होंने कांशीराम का अपहरण कर रखा है और परिवार तक के लोगों को मिलने की इजाजत नहीं थी । अब बिहार में यह बात आई है । महाराष्ट्र में ठाकरे घराना आजकल सत्ता सुख ले रहा है । बाल ठाकरे तक एक रहे और फिर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ न रहे । अब तो जमाना आदित्य ठाकरे तक आ गया । हरियाणा का उदाहरण लीजिए चौटाला घराना में फूट पड़ी और इनेलो से जजपा बनी । संयोग ऐसा बैठे कि सत्ता की चाबी का संतुलन पौत्र के हाथ लग गया । अब वह उप-मुख्यमंत्री है । ऐलनाबाद की लड़ाई आई तो पौत्र ने सीट भाजपा के खाते में दे दी ताकि ज्यादा घराने की लड़ाई सामने ने आए । अभय चौटाला ललकार रहे हैं । यह घराना ऐसा जहां दादी ने क्या नहीं कहा कि क्या ऐसी संतान चाहिए ? नयी पीढ़ी भी आ चुकी है मैदान में । दिग्विजय से लेकर कर्ण अर्जुन चौटाला तक सबके नाम आ गये लोगों के बीच । इस तरह वैसे चौ भजन लाल के घराने में भी इल्जाम लगा था कि कुलदीप बिश्नोई ने चौ साहब को बस में कर रखा है और अपहरण कल लिया है । चंद्रमा को निकट नहीं लगने दिया । अब दोनों भाइयों ने कुछ ऐसा खेल खेला कि यह घराना मुर्झाया सा रखने लगा है । घराने भी बहुत हैं और घरानों की बातें भी बहुत । जितनी सुनाता जाऊंगा उतनी कम पड़ती जायेंगी कहानियां ,,,,फिर भी रहेंगी कहानियां ,, ,,,-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation शिक्षित किंतु कमजोर होता समाज अब तो बोलो आडवाणी जी