हकृवि ने ज्वार, सरसों व मूंग की उन्नत किस्मों को किसानों तक पहुचानें के लिए के लिए किया नामी कंपनियों से समझौता

मुंग की एमएच 1142 व ज्वार की सीएसवी 44 एफ व सरसों की आरएच 725 किस्मों के लिए हुआ समझौता

हिसार : 1 अक्टूबर – चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की उन्नत किस्मों के बीज अब न केवल हरियाणा बल्कि देश के अन्य प्रदेशों में भी किसानों को आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे। इसके लिए विश्वविद्यालय ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत तकनीकी व्यवसायीकरण को बढ़ावा देते हुए देश की दो प्रमुख कंपनियों से समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने कहा कि जब तक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया शोध किसानों तक ज्यादा से ज्यादा पहुंचे ताकि उन्हें उन्नत किस्मों का बीज व तकनीक समय पर उपलब्ध हो सके। इसलिए इस तरह के समझौतों पर हस्ताक्षर कर विश्वविद्यालय का प्रयास है कि यहां से विकसित उन्नत किस्मों व तकनीकों को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाया जा सके। इसके लिए विश्वविद्यालय निरंतर प्रयासरत है। समझौते के तहत विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मुंग की एमएच 1142, ज्वार की सीएसवी 44 एफ व सरसों की आरएच 725 किस्मों के लिए हुआ समझौता है। इन किस्मों का बीज तैयार कर कंपनियां किसानों तक पहुंचाएंगी ताकि किसानों को उन्नत किस्मों का विश्वसनीय बीज मिल सके और उनकी पैदावार में इजाफा हो सके। 

इन कंपनियों के साथ हुआ है समझौता

दक्षिण भारत की महाराष्ट्र के पूणे की कंपनी एग्रो स्टार (यू लिंक एग्री टेक प्राइवेट लिमिटेड, पूणे) के साथ सरसों की किस्म आरएच 725 के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। कंपनी की तरफ से डॉ. देवराज आर्य, वाइस प्रेसीडेंट फार्म सोल्यूशन ने हस्ताक्षर किए। दूसरा मैसर्ज देव एग्रीटेक, गुरूग्राम के साथ समझौता हुआ है जिसमें कंपनी की ओर से डॉ. यशपाल ने हस्ताक्षर किए। इस कंपनी के साथ मुंग की एमएच 1142 व ज्वार की सीएसवी 44 एफ के लिए समझौता हुआ है। इन दोनों के साथ विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर एचएयू की ओर से अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने हस्ताक्षर किए हैं।

विश्वविद्यालय के साथ किसानों को भी होगा फायदा

समझौता ज्ञापन पर हस्तारक्षर होने के बाद अब कंपनी विश्वविद्यालय को लाइसेंस फीस अदा करेगी जिसके तहत उसे बीज का उत्पादन व विपणन करने का अधिकार प्राप्त होगा। इसके बाद किसानों को भी उन्नत किस्मों का बीज मिल सकेगा। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इन किस्मों में अन्य किस्मों की तुलना में अधिक खनिज व पैदावार मिलती है तथा ये रोगरोधी भी हैं।

ये है इन किस्मों की खासियत

ज्वार की किस्म में हरे चारे की मात्रा अधिक होती है, यह स्टीम बोरर बीमारी के प्रति सहनशील है, यह गिरती भी कम है और सूखे चारे की मात्रा भी अन्य किस्मों की तुलना में अधिक होती है। इन्हीं गुणों के चलते अन्य राज्यों में इस किस्म की डिमांड अधिक है। सरसों की किस्म की फलियां अन्य किस्मों की तुलना में लंबी व दानों की मात्रा अधिक होती है। साथ ही दानों का आकार भी बड़ा होता है और तेल की मात्रा भी ज्यादा होती है। इसी प्रकार मूंग की किस्म  पीला मौजेक, पत्ता झूरी, पत्ता मरोड़ जैसे विषाणु रोगों के प्रति रोगरोधीव सफेद चूर्णी एवं एंथ्राक्नोस जैसे फफूंद रोगों के प्रति मध्यम रोगरोधी है।  साथ ही थ्रिप्स, सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीट व अन्य फली छेदक कीटों का प्रभाव भी बहुत कम होता है।

ये रहे मौजूद

समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करते समय विश्वविद्यालय के कुलपति के ओएसडी एवं स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डॉ. अतुल ढींगड़ा, अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत, कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. रामनिवास ढांडा, डॉ. एस.के. पाहुजा, डॉ. अनिल यादव, डॉ. योगेश जिंदल, डॉ. राजेश यादव, डॉ. विनोद कुमार, डॉ. पम्मी कुमारी आदि मौजूद रहे।

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