उमेश जोशी

हरियाणा में राजनीतिक दलों को जल्दी ही अपनी लोकप्रियता की कड़ी परीक्षा देनी है। ऐलनाबाद में उपचुनाव की घोषणा हो गई है। 30 अक्तूबर को मतदान में साबित हो जाएगा कि किसान आंदोलन के दौरान किस दल ने क्या खोया और क्या पाया!

   कोरोना काल में सभी पार्टियों की राजनीतिक गतिविधियाँ ठप्प होने से रणनीति की धार भोंथरी हो गई थी लेकिन अब सभी पार्टियाँ उपचुनाव की घोषणा के बाद दाँव-पेंच के हथियार फिर से चमकाने लगी हैं। सत्तारूढ़ दल के लिए उपचुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न होता है। एक मायने में उपचुनाव सरकार की नीतियों की कामयाबी का पैमाना माना जाता है। चुनाव हारने का अर्थ है कि जनता सरकार की नीतियों से नाखुश है और यह नाखुशी आम चुनाव में उसे भारी पड़ती है। हालांकि उपचुनाव की एक सीट से न सरकार गिरती है ना सरकार बनती है, बस! साख की लड़ाई होती है।

इनेलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला ने तीन कृषि कानूनों के विरोध में जनवरी के अंतिम सप्ताह में ऐलनाबाद विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। कोरोना की दूसरी लहर के कारण छह महीने के भीतर उपचुनाव नहीं हो पाया था।

जनवरी में सीट खाली होते ही काँग्रेस ने यहाँ अपनी नज़रें गड़ा दी थीं। प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा अप्रैल में दो दिन के दौरे पर ऐलनाबाद हलके में गई थीं। पहले दिन उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ हलके के विभिन्न गांवों का दौरा किया। उन्होंने कहा कि ऐलनाबाद उपचुनाव में काँग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ जीत दर्ज करेगी। कुमारी सैलजा यह भी बताएं कि यह दावा किस आधार पर कर रही हैं। 2019 में यह सीट हारने के बाद काँग्रेस ने ऐसा कौन-सा कारनामा या करिश्मा किया है जो पार्टी की जीत सुनिश्चित करेगा।

नवंबर 2020 से चल रहे किसान आंदोलन में काँग्रेस की क्या भूमिका रही है; किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए काँग्रेस का क्या योगदान है, कुमारी सैलजा ऐलनाबाद की जनता, खासतौर से किसानों को यह जरूर बताएं। काँग्रेस ऐलनाबाद के किसानों से क्या कहेगी, यही ना, कि काले कानूनों से लड़ रहे किसानों के लिए भले ही अभय चौटाला ने अपनी सदस्यता छोड़ी है लेकिन उनके त्याग का फल हमें दे दो। सभी को पूरा यकीन है कि ऐसा कहते हुए काँग्रेस के किसी नेता को लाज नहीं आएगी। नैतिकता तो यह कहती हैं कि किसानों के लिए त्याग करने वाले के लिए, भले ही वो कोई भी हो, काँग्रेस को त्याग करना चाहिए और अपना उम्मीदवार नहीं उतारना चाहिए। एक मायने में काँग्रेस का यह त्याग परोक्ष रूप से किसानों का समर्थन माना जाएगा। लेकिन जन्नत की हकीकत कुछ और है। काँग्रेस के किसी भी नेता में यह नैतिकता नहीं है। काँग्रेस से त्याग की बात करना ही बेमानी है।

इनेलो और काँग्रेस के बीच वोट बंटने से बीजेपी लाभ ले सकती है। इनेलो प्लेट में रख कर यह सीट ना काँग्रेस को दे सकती है और ना ही बीजेपी को। 2019 में इनेलो ने यह सीट जीती थी इसलिए इसे अपनी सीट मानकर उसका चुनावी मैदान में उतरना लाजिमी है। वैसे भी कई वर्षों से इस सीट पर चौटाला परिवार का कब्जा रहा है। जब चौटाला परिवार की बात आती है तो अभय चौटाला और उनके दोनों बेटों को भी चुनावी गणित में शामिल करना जरूरी है। अभय चौटाला और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला चुनाव नहीं लड़ेंगे। ऐसी स्थिति में दिग्विजय चौटाला को मैदान में उतारने की रणनीति हो सकती है। लेकिन अभय चौटाला या उसके बेटे के सामने दिग्विजय को उतार कर अजय चौटाला परिवार अपनी बंद मुट्ठी नहीं खोलना चाहेगा। यदि दिग्विजय चुनाव हार गए तो अभय चौटाला पिछला सारा बदला चुकाने में कामयाब हो जाएँगे। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला शायद दिग्विजय को अभय के सामने उतारने की भूल ना करें।

 अजय चौटाला के सिरसा पहुंचने पर जब उनसे यह पूछा गया कि ऐलनाबाद से कौन चुनाव लड़ेगा, तब उन्होंने गोलमोल जवाब दिया। उन्होंने कहा कि जेजेपी और बीजेपी का साझा उम्मीदवार होगा और अभी तक उम्मीदवार का नाम तय नहीं हुआ है।

बीजेपी के लिए ऐलनाबाद उपचुनाव अंगारों पर चलने जैसा होगा। अभी तक सार्वजनिक स्थानों पर बीजेपी नेताओं को जिस तरह का विरोध झेलना पड़ा है, उससे बीजेपी के नेता निश्चय ही हताश हैं । उनके सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि जनता के बीच बिना रुकावट कैसे पहुंच पाएंगे। वोट मांगने के लिए उन्हीं लोगों के पास जाना पड़ेगा जो हर स्तर पर पार्टी का विरोध करते रहे हैं। बीजेपी किसानों से क्या वायदा करके वोट मांगेगी? इसी तरह के हालात में बीजेपी कुछ समय पहले बरोदा उपचुनाव हार चुकी है।

बरोदा  उपचुनाव भी बीजेपी और जेजेपी ने मिलकर लड़ा था फिर भी करारी शिकस्त मिली थी। बीजेपी और जेजेपी दोनों पार्टियों की मजबूरी यह है कि फजीहत से बचने के लिए दोनों को एक दूसरे की बैसाखी बन कर चुनावी मैदान में उतरना पड़ेगा वरना हमेशा पीठ दिखा कर भागने वाले योद्धा कहलाएंगे। हो सकता है कि बीजेपी अपना उम्मीदवार उतारने से परहेज करे और जेजेपी को उम्मीदवार उतारने को कहे। साथ ही यह भरोसा दिलाए कि साँप के बिल में तुम ऊंगली दो, हम बीजेपी वाले सब मिल कर तुम्हारे लिए मंत्र पढ़ेंगे।

असली परीक्षा किसानों की होगी। क्या किसान उस व्यक्ति का सम्मान बचा पाएंगे जिसने उनके समर्थन में बड़ा त्याग किया है।   

ऐलनाबाद विधानसभा सीट के लिए 8 अक्टूबर को पर्चे भरे जाएंगे, 11 अक्टूबर को पर्चों की जांच होगी, 13 अक्टूबर को नाम वापिस लिए जाएंगे और 30 अक्टूबर को मतदान होगा। दो नवंबर को वोटों की गिनती होगी।