हिन्दी-व्यवहार या शिष्टाचार

राजकुमार अरोड़ा गाइड

पिछले वर्ष इन्हीं दिनों की बात है कि हरियाणा पुलिस वाले सितंबर के शुरू में राज्य स्तर पर शिष्टाचार सप्ताह मना रहे थे। इस बात से अनजान मुझे किसी के साथ अपने शहर के पुलिस स्टेशन जाना पड़ा तो गेट पर खड़े गार्ड ने अभिवादन किया,अंदर जाने पर सिपाही महोदय बोले-आइये बैठिये क्या काम है, थानेदार साहब आते ही होंगे। पानी लीजिये, चाय मंगवाए आपके लिये। एफ़ आई आर भी जल्द ही दर्ज हो गई।

7 दिन बाद भी कोई कार्यवाही न होने पर जब हम दोबारा गये तो गेट पर गार्ड ने ही झिड़क दिया,फिर अंदर से वही पुलिस महोदय बोले- कहाँ घुसे जा रहे हो, साहब नहीं हैं, बाद में आना,जाओ अब यहाँ से।

मैंने हैरानी से कहा- पिछले सप्ताह तो प्यार से अभिवादन था,पानी चाय पूछा, काम कराया पर अब ये कैसा व्यवहार! इस पर सिपाही जी बोले-“‘तब हमारा शिष्टाचार सप्ताह चल रहा था।”

वापसी में आता हुआ मैं तब भी सोच रहा था, ऐसा कुछ ही तो हिंदी के साथ है, आज 14 सितम्बर है-हिंदी दिवस, हम हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा, हिंदी माह मनाते हैं और फिर वही ढर्रा पहले की तरह चलता रहता है ।सारा वातावरण अंग्रेजी मय हो जाता है।आखिर ये हिंदी का
शिष्टाचार पर्व कब तक चलेगा, कब हिंदी भाषा आडम्बर से मुक्त होगी।कब रोजमर्रा के व्यवहार में आएगी। राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनेगी,जन जन की भाषा घर घर तक कब घर करेगी?

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