उमेश जोशी किसान आंदोलन के इतिहास में 11 सितंबर का दिन हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन किसानों को अभूतपूर्व विजय मिली है। 7 सितंबर से धरना पर बैठे किसानों के सामने खट्टर सरकार झुक गई और किसानों की माँगें मान ली। खट्टर सरकार का रुख 10 सितंबर शाम तक बहुत कड़ा था। किसानों का धरना खत्म करने के लिए सरकार की ओर से सारे जतन किए जा रहे थे। गृहमंत्री अनिल विज के निष्पक्ष जाँच का भरोसा भी दिया लेकिन उस भरोसे में भी किसानों को धमकी का स्वर मिला हुआ था। विज ने कहा था कि अधिकारियों की जाँच के साथ किसानों की भी जाँच होगी; इशारा यह था कि जाँच होगी तो उन पर आँच भी आएगी। सरकार के रुख से बहुत जल्द समझौते के आसार नहीं दिखाई दे रहे थे। अचानक सरकार किसानों पर मेहरबान हुई और उनकी मांगें मानते हुए करनाल में किसानों पर लाठीचार्ज प्रकरण की हाई कोर्ट के रिटायर्ड ज़ से जांच करवाने के आदेश किए। करनाल एसडीएम आयुष सिन्हा को एक महीने के लिए जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया है। ऐसे मामलों में जांच पूरी होने तक अधिकारी को सस्पेंड किया जाता है लेकिन आयुष सिन्हा को जबरन छुट्टी पर भेजा गया है। जबरन छुट्टी पर भेजे जाने की करवाई एक तरह से सस्पेंड किए जाने के बराबर ही माना जा रही है। सरकार आयुष सिन्हा को सस्पेंड करती तो पूरी आईएएस लॉबी नाराज हो जाती। सरकार को साँप भी मारना था और लाठी भी बचानी थी इसलिए सस्पेंड करने के बजाय जबरन छुट्टी पर भेजा जा रहा है। आयुष सिन्हा पर नई एफआईआर भी दर्ज करवाई गई है। इसमें तकनीकी पेंच है।किसानों के खिलाफ मामला वापस लिए जाने पर पुरानी एफआईआर रद्द हो सकती थी जिससे आयुष सिन्हा के बच कर निकल जाने के आसार थे। जिस किसान की लाठीचार्ज से मृत्यु हुई थी उसके परिवार के दो सदस्यों को नौकरी देने का भरोसा दिया गया है, नौकरी भी पक्की। किसानों को 9 सितंबर को जींद में दूसरी विजय मिली है। बीजेपी के विधायक महिपाल ढांडा पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी का जायजा लेने जींद पहुंचे थे। वहाँ किसानों ने बीजेपी कार्यालय में महिपाल ढांडा को पाँच घंटे बंधक बनाए रखा। किसानों ने कहा कि किसी सूरत में बाहर नहीं निकलने देंगे। यदि बाहर निकलेंगे तो माफ़ी मांगनी पड़ेगी। विधायक महिपाल ढांडा माफी मांगने को तैयार हो गए लेकिन मीडिया के सामने। किसान अपनी मांग पर अडिग थे कि बाहर निकल कर सब के सामने माफी मांगें। इस बीच, पुलिस ने महिपाल ढांडा को अपनी गाड़ी में बैठा कर बाहर निकाला और पानीपत के लिए रवाना कर दिया। ऐसा कहा जा रहा है कि महिपाल ढांडा अपनी पहचान छुपा कर वहाँ से निकल पाए। 9 सितंबर की यह घटना भी बीजेपी की बड़ी जीत मानी जा रही है। करनाल में किसानों से समझौता करने के लिए आखिर खट्टर सरकार इतनी आसानी से क्यों राजी हो गई, यह बड़ा सवाल है। विश्लेषकों का मानना है कि 12 सितंबर को एचसीएस की परीक्षा है जो बेहद महत्वपूर्ण है। सरकार को डर था कि किसान आंदोलन के कारण रास्ते रोके जा सकते हैं और बच्चे परीक्षा केंद्र तक नहीं पहुंच पाए तो सरकार की बहुत किरकिरी होगी। इससे पहले कई परीक्षाओं के 18 बार पर्चे लीक होने से उन्हें रद्द करना पड़ा था और सरकार की भारी फजीहत हो चुकी है। परीक्षाओं के मामले में 18 बार अपने हाथ जला चुकी सरकार इस बार किसान आंदोलन के कारण एचसीएस जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा पर कोई आंच नहीं आने देना चाह रही थी। शायद इसी वजह से समय रहते समझौता कर लिया। Post navigation ओमप्रकाश धनखड़ के नेतृत्व में राज्यभर के सैंकड़ों किसानों ने मुख्यमंत्री का सम्मान किया कैबिनेट मंत्री मूलचंद शर्मा ने टोक्यो पैरालंपिक में मेडल विजेताओं का उनके घरों पर पहुंचकर किया अभिनन्दन