धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़ – लगता है किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली सीमा के बाद हरियाणा में राष्ट्रीय राजमार्ग पर करनाल में भी सरकार के खिलाफ़ शक्ति परीक्षण का एक और मोर्चा बन गया है और अब किसान और उनके नेता एसडीएम सिन्हा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की मांग पर अड़ गए हैं परंतु अभी ऐसा लग रहा है कि सरकार भी इस मूड में है कि अकड़ के मर जाना पर दलिया नहीं खाना ।उसे पता है कि दलिया खाने के बाद आराम तो हो सकता है परंतु इसके साइड इफेक्ट बहुत हो सकते हैं।

करनाल में लाठीचार्ज प्रकरण को लेकर दोनों पक्षों के अलग-अलग विचार और तर्क हैं ।एक तरफ किसान और उनके पक्षधर सवाल उठाते हैं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जानबूझकर अपने विधानसभा क्षेत्र को परस्पर खींचतान अवस्था व्यवस्था का केंद्र बिंदु मतलब अड्डा बनाने का काम किया । कोई समझदार नेता कभी ऐसा नहीं करता। वे कहते हैं कि एक शरारत उनके दिमाग में थी जिसका वे राजनीतिक लाभ भी लेना चाहते थे और किसानों पर दबाव भी बनाना चाहते थे। उनके समर्थकों के मुंह से कहीं न कहीं यह बात निकली भी है कि इस समय सख्ती करना भी जरूरी हो गया था।

वही अब सरकार का पक्ष यह है कि हम कहीं मीटिंग करें कहीं कार्यक्रम करें यह किसानों से पूछ कर थोड़ा किया जाएगा ।सरकार अपनी सुविधा अनुसार कार्यक्रम तय करेगी किसी के कार्यक्रम में दखल देने का किसानों को क्या अधिकार है । क्या करनाल में पहले इस तरह की कोई मीटिंग नहीं हुई है।लोकतंत्र में आंदोलन करने का अधिकार है धरना प्रदर्शन करने का अधिकार है किसी के काम में हस्तक्षेप करना कानून हाथ में लेने का अधिकार थोड़े है।

इसी मामले में किसान नेता यह आरोप भी लगाने लगे हैं कि सरकार दिल्ली में चल रहे आंदोलन को तोड़ने की साजिश के तहत ऐसी तोड़फोड़ की नीति अपना रही है कि किसान दिल्ली से जय उठ जाएं और फिर इधर उधर हो जाए बिखर जाएं। इन सब लोगों का आरोप यह भी है कि मुख्यमंत्री ने राजनीतिक फील्डिंग बिछाने की योजना के तहत ही कैमला गांव में उस समय कार्यक्रम रखा था जब किसान आंदोलन पूरे यौवन पर था ।यह भी आंदोलन में शामिल किसानों का ध्यान भटकाने और समाज में विघटन करने की नियत से किया गया था ।

दूसरा ऐसा ही प्रोग्राम इसी मकसद से हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा एक अस्थाई अस्पताल के उद्घाटन का बनाया गया। अब करनाल में जो कुछ हुआ वह भी एक सोची समझी चाल है। किसानों के नेता यहां तक कहते हैं कि बसताड़ा टोल प्लाजा पर लाठीचार्ज योजना से कराया गया। अधिकारियों को इस तरह के आदेश निर्देश दिए गए कि एक अधिकारी की जुबान पर ही आ गए। कितना अच्छा होता उक्त अधिकारी सिर्फ छोड़ने की बजाय सख्ती से पेश आने की बात करते।

किसान नेता तो यहां तक मानकर चल रहे हैं कि सरकार करनाल में देहाती लोगों के जमावड़े के एक्शन पर शहर के लोगों के रिएक्शन मे भी अपना लाभ देख रही है और उसे फिलहाल इस योजना में कामयाबी भी मिल रही होगी क्योंकि सत्तारूढ़ भाजपा के लोगों को शहर के लोगों को केवल एक ही संदेश तो देना है कि आप जानते हैं कि यह कौन लोग हैं । किस तरह से धींगा मस्ती और जोर जबरदस्ती कर रहे हैं अगर यह राज में आ गए तो सोचिए कि क्या होगा।

किसानों में कुछ प्रबुद्ध लोग एक उदाहरण देते हुए कहते हैं कि इससे पूर्व सरकार ने अंबेडकर जयंती के उपलक्ष में एक कार्यक्रम सोनीपत जिले में राई विधानसभा क्षेत्र के गांव बडौली में रख दिया था। यह गांव भाजपा के राई के विधायक मोहनलाल बडोली का है ।उस समय संयुक्त किसान मोर्चा ने कार्यक्रम से पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर साफ शब्दों में कह दिया था कि जहां मुख्यमंत्री आने की योजना बना रहे हैं वह आंदोलन धरना स्थल से 10 किलोमीटर भी दूर नहीं है। मुख्यमंत्री के आगमन की सूचना से किसान भड़क सकते हैं उनका घेराव कर सकते हैं। बडोली गांव के कुछ लोगों ने भी विधायक श्री बडोली पर यह दबाव बनाया था कि वे कार्यक्रम को रद्द करा दें। बाद में यह कार्यक्रम रद्द भी कर दिया गया था।

वही लोग कहते हैं कि यदि बडौली में उपरोक्त कार्यक्रम हो जाता तो वहां भी ऐसे ही हालात बन सकते थे जैसे बसताड़ा टोल प्लाजा पर बने। उन लोगों का तर्क है कि मुख्यमंत्री को ऐसे कार्यक्रम चंडीगढ़ या गुड़गांव में करने चाहिए थे जहां अमूमन ऐसे कार्यक्रम होते रहते हैं। वे यह सवाल भी उठाते हैं कि सरकार का कहना है कि करनाल का कार्यक्रम पंचायती राज चुनाव में रणनीति बनाने के लिए किया गया था जबकि उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला कह रहे हैं कि पंचायती राज व्यवस्था के चुनाव कब होंगे कैसे होंगे इसका फैसला कोर्ट में होना है।

अब आम राय यह है कि किसान नेता तो एसडीएम श्री सिन्हा के खिलाफ पर्चा दर्ज करने की मांग कर रहे हैं और सरकार इस पर विचार करने को तैयार नहीं । सरकार की तरफ से तो इस सारे मामले की जांच कराने और उसके बाद दोषी चाहे भी किसान हैं चाहे अधिकारी कर्मचारी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की बात कही गई है। लेकिन किसानों की पहली मांग निवर्तमान एसडीएम के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की है। किसान नेता राकेश टिकैत ने एक बयान में कह ही दिया कि शर्तें ऊपर नीचे हो सकती हैं परंतु एसडीएम के विरुद्ध कार्रवाई तो करनी ही पड़ेगी।

अब सरकार इस दबाव में जरूर होगी कि एसडीएम के खिलाफ कार्रवाई से नौकरशाही में गलत संदेश जाएगा क्योंकि अधिकारी अमूमन सरकार की मंशा के अनुरूप की कार्रवाई करते हैं, फैसले लेते हैं। ऐसे में अधिकारियों को बेवजह बलि का बकरा बनाने की हीन भावना पुलिस और प्रशासनिक दोनों अधिकारियोंं मन मस्तिष्क में जरूर घर करेगी। जहां करनाल के एक तरफ पानीपत में तीन तीन ऐतिहासिक लड़ाइयां हुई है वही इसके दूसरी तरफ कुरुक्षेत्र में जो महाभारत हुआ उसका तो आर्यवर्त में कोई दूसरा उदाहरण ही नहीं है तो कुंती पुत्र के इस करनाल शहर में जिस तरह से किसान और सरकार आमने-सामने हो गए हैं वह भी तो एक लड़ाई ही है। यहां किसान इसी तरह 10 दिन भी जमा रह गए तो फिर सरकार के ,मुख्यमंत्री के, प्रशासन के और पुलिस की नाक में ऐसा दम आ जाएगा कि उसका असर दूर-दूर तक देखने को मिलेगा।

करनाल की लोकेशन इस तरह की है कि 4 किलोमीटर पर यूपी शुरू हो जाती है ।ऐसे में सरकार को करनाल दिल्ली नहीं बल्कि कृषि कानूनों को लेकर बन रहे गतिरोध को समाप्त करने की पहल करनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जहां उनके समर्थक राजनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से वैश्विक महापुरुष के तौर पर पेश करते आ रहे हैं तो तो क्या उसी नरेंद्र मोदी के पास किसानों की समस्या का समाधान नहीं है। किसान तो अब यह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वास्तव में राजनीति के इतने ही कुशल खिलाड़ी हैं तो हम यह बात तब मानेंगे जब वह किसान आंदोलन का कोई समुचित हल निकाल देंगे।

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