ऋषि प्रकाश कौशिक

किसान मुख्यमंत्री के गृह नगर करनाल में तीन दिन से डटे हुए हैं। अभी कितने दिन धरना और चलेगा, यह कोई नहीं जानता क्योंकि सरकार और किसान दोनों अपने अपने रुख पर अड़े हुए हैं। सरकार किसानों की मांग नहीं मान रही है जबकि किसान मांगें नहीं माने जाने तक करनाल में लघु सचिवालय पर जमे रहने का एलान कर चुके हैं।

किसानों की 11 सदस्यों की कमेटी बुधवार को प्रशासन से बातचीत करने जिला सचिवालय पहुंची थी। मीटिंग में प्रशासन के आला अधिकारी मौजूद थे। किसानों की तीन प्रमुख मांगें हैं। उनमें पहली मांग है कि करनाल में किसानों पर लाठीचार्ज का आदेश देने वाले एसडीएम आयुष सिन्हा और लाठी चलाने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए। लेकिन तीसरी वार्ता विफल रहने के बाद किसानों ने करनाल के लघु सचिवालय पर सिंघु और टीकरी बॉर्डर जैसे आंदोलन का एलान कर दिया है।

  इस बीच हरियाणा की गृहमंत्री अनिल विज में गुरुवार को भरोसा दिया कि राज्य सरकार “पूरे करनाल प्रकरण” की निष्पक्ष जांच के लिए तैयार है, जिसमें एक आईएएस अधिकारी की विवादास्पद टिप्पणी और किसानों पर पुलिस का लाठीचार्ज शामिल है। मंत्री ने स्पष्ट किया कि “किसी को भी बिना जांच के सिर्फ इसलिए फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता कि कोई उसकी मांग कर रहा है। विज के इस बयान के बाद भी किसान नरम नहीं हुए हैं।

 किसान भी बखूबी जानते हैं कि इस मामले में अधिकारी का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। उनके खिलाफ मामला दर्ज हो भी गया तो जांच करने वाले लोग  लीपापोती कर अधिकारियों को बचा लेंगे। ऐसे मामलों में हमेशा यही होता है कि जन आक्रोश शांत करने के सरकार मजबूरी में अधिकारी पर मामला तो दर्ज कर लेती है लेकिन कुछ समय बाद मामला ठंडा पड़ने पर अधिकारी को निर्दोष साबित कर दिया जाता है। ऐसा करना सरकार की मजबूरी है। अधिकारी के खिलाफ कारवाई किए जाने से बाकी अधिकारियों का मनोबल टूटेगा और वे भविष्य में कोई भी कदम उठाने से कराएंगे। इस मजबूरी के कारण सरकार अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं करती है। यह बात किसान भी जानते है। लेकिन अधिकारी पर कार्रवाई की मांग के बहाने किसानों को मुख्यमंत्री के प्रिय नगर करनाल में कुछ दिन डटे रहने का अवसर मिल गया है।

मुख्यमंत्री लगातार कहते रहे हैं कि आंदोलनकारी किसान नहीं हैं, किसान तो खेतों में काम कर रहे हैं। अब तो किसान मुख्यमंत्री के घर के पास ही धरना दे रहे हैं, वे खुद ही जाकर देख लें कि वे कौन हैं, किसान या कोई और। किसानों ने एसडीएम के बहाने मुख्यमंत्री को सुनहरी अवसर दिया है कि हमें अच्छी तरह देख लो, हम कौन हैं।

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