भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। 28 तारीख को करनाल में हुए लाठी चार्ज के परिणामस्वरूप कल करनाल में किसान महापंचायत हुई। कल भी किसान प्रतिनिधियों और सरकार के बीच तीन दौर की वार्ता हुई लेकिन परिणाम शून्य रहा। सरकार की ओर से किसानों को रोकने के लिए व्यापक प्रबंध किए गए थे। पुलिस फोर्स बाहर से भी बुलाई गई थी लेकिन सब धरे के धरे रह गए और किसान सचिवालय पहुंच गए। रात सचिवालय के आंगन में ही गुजारी। गुरुद्वारों से भोजन आ गया, दरियां और गद्दे भी आ गए।

किसान नेताओं की ओर से कहा गया कि जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जाएंगी, तब तक हम यहीं डटे रहेंगे। किसानों की मुख्य मांग एसडीएम आइएएस आयुष सिन्हा को सस्पेंड किया जाए और उस पर 302, 307 का मुकदमा चलाया जाए। अन्य मांगों में जिस किसान की मृत्यु हुई थी, उसके परिवार को नौकरी। मामला अटका यहीं कि सरकार तो एसडीएम को सस्पेंड करने को तैयार नहीं, जबकि किसान संगठन 302 और 307 का मुकदमा दर्ज करने की बात कर रहे हैं। अर्थात समझौते की संभावना नहीं।

आज सारा दिन किसान सचिवालय पर डटे रहे। प्रशासन डरा-घबराया रहा। बातचीत के लिए किसान नेताओं को बुलाया। बातचीत हुई लेकिन मामला एसडीएम पर ही अटका। इधर किसान नेताओं ने जनता और सरकार का ख्याल करते हुए निर्णय लिया है कि वह अपना धरना पार्किंग में लगा लेंगे, जिससे आम जनता भी परेशान न हो और सरकारी कामकाज में भी रुकावट न आए। अर्थात स्थिति अब भी वहीं की वहीं है। नहीं पता धरना कितने समय चलेगा।

इन बातों के व्यापक असर हो रहे हैं। आज साइबर युग में समाचार पलक झपकते ही सारी दुनिया में पहुंचते हैं तो मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में स्थिति यह है कि किसानों ने सचिवालय पर सरकार के विरोध करने के बावजूद धरना लगा रखा है। इस बात से हरियाणा की छवि पूरे देश ही नहीं अपितु विश्व में खराब हो रही है। यहां की सरकार और कानून व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं तथा यह समाचार भी मिल रहे हैं कि जनता किसानों के समर्थन में है। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि अब मुख्यमंत्री ही नहीं अपितु प्रधानमंत्री की लोकप्रियता भी नहीं दिखाई दे रही।हरियाणा के विपक्षी दल अपने-अपने तरीके से सरकार पर चुटकियां ले रहे हैं। सरकार के पास उनकी बातों का कोई जवाब नहीं है। विपक्षी दलों की बात क्यों करें, सरकार के अंदर से भी सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यह माना जा रहा है कि कुछ लोग इस पक्ष में हैं कि एसडीएम को सस्पेंड तो कर ही देना चाहिए।

इधर, भाजपा संगठन और कार्यकर्ता जो सोशल मीडिया पर पूर्णत: मुखर रहता था, उसकी चुप्पी भी यह दर्शा रही है कि भाजपा सरकार या तो अपना जन समर्थन खो चुकी है या फिर निर्णय नहीं कर पा रही कि किस प्रकार वर्तमान परिस्थितियों से निपटा जाए और किस बात के प्रचार के लिए आइटी सेल को निर्देश दिए थे।

इस धरने में संयुक्त किसान मोर्चा के सबसे चर्चित चेहरे राकेश टिकैत भी हैं और अपने ब्यानों तथा कार्यशैली से चर्चित गुरनाम सिंह चढूणी भी हैं और योगेंद्र यादव भी हैं। राकेश टिकैत का कहना है कि जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जाएंगी, हम यहीं धरना जारी रखेंगे और चढूणी के जोश में भी कोई कमी नजर नहीं आती। माना जाता है कि इस क्षेत्र में गुरनाम सिंह चढूणी का बहुत अच्छा प्रभाव है। उनका कहना है कि सरकार के अहंकार की हद है। हम अपनी मांग मनवाकर ही उठेंगे। वहीं योगेंद्र यादव का कहना है कि अफसोस है कि दूसरे दिन भी बातचीत असफल रही। सरकार की असंवेदनशीलता में कोई भी परिवर्तन नहीं आया है। एसडीएम का बचाव यह दर्शाता है कि इसके पीछे मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का हाथ था।

अब यह तो समय ही बताएगा कि सरकार कैसे इन परिस्थितियों से निपटेगी? कब तक इंटरनेट बंद रहेंगे? कुछ राजनैतिक चर्चाकारों का कहना है कि दिल्ली हाइकमान में भी इस घटना का गहन मंथन हो रहा है, रास्ता निकालने की चेष्टाएं की जा रही हैं। दिखाई देता है कि इस समय किसान संगठन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को ही इन परिस्थितियों का जिम्मेदार मानते हैं तो अब देखना है कि हाइकमान मुख्यमंत्री को क्या निर्देश देते हैं।

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