मनोहर लाल का विरोध के बावजूद आईएएस अफसरों की जगह आईपीएस को जिम्मेदारी देने का अभियान जारी

धर्मपाल वर्मा 

चंडीगढ़ । सरकार ने कहो या मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपने शासन में कई नए परीक्षण किए। इनमें कर्मचारियों के ऑनलाइन ट्रांसफर ,मैरिट पर नौकरी देना ,पंचायती राज व्यवस्था में शिक्षा की अनिवार्यता को लागू करना भी शामिल हैं ।इन्हीं परीक्षणों में एक यह भी रहा कि प्रदेश  में जहां आईएएस अधिकारी काम करते हैं वहां कुछ गैर आईएएस या आईपीएस अधिकारियों को तैनात करके कुछ नए परिणाम प्राप्त करने की कोशिश की गई ।इनमें शत्रुजीत कपूर आईपीएस और अमिताभ ढिल्लो को अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारी दी गई और अब एक और आईपीएस अधिकारी कला रामचंद्रन को ट्रांसपोर्ट विभाग का प्रिंसिपल सेक्रेटरी लगाया गया । इस संबंध में मुख्य सचिव ने आदेश जारी किए हैं। रामचंद्रन इस समय एडीजीपी क्राइम अगेंस्ट वूमन के पद पर तैनात हैं और वह अपनी इस जिम्मेदारी का भी साथ साथ निर्वहन करेंगी।

आईपीएस अधिकारी को ट्रांसपोर्ट विभाग की जिम्मेदारी देने पर गृह मंत्री अनिल विज ने आपत्ति जताई थी । इससे पहले भी इस पद पर आईपीएस शत्रुजीत कपूर तैनात किए गए थे। विज ने फ़ाइल पर लिख कर अपनी आपत्ति जताई थी।

उस समय कथित तौर पर मुख्य सचिव ने भी इस फैसले का विरोध किया था। उन्होंने इस संदर्भ में सरकार को लिखा था कि ऐसा करने से पहले भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से मंजूरी ली जानी चाहिए।

वैसे यह बात स्वाभाविक है कि इस तरह के फैसले से आईएएस लॉबी में संदेश तो गलत जाएगा ही क्योंकि उनकी जगह आईपीएस अफसर बैठने लगेंगे तो इससे उनमें कहीं ना कहीं हीन भावना का संचार भी हो सकता है। व्यवहार में हम देखते हैं कि हर मामले में आईएएस अधिकारी का रुतबा और अधिकार आईपीएस से अधिक होते हैं। जिलों में भी सारा प्रशासन आईएएस अधिकारी डिप्टी कमिश्नर के तौर पर चलाते हैं एक तरह से एसपी अर्थात आईपीएस उनके मातहत ही काम करते हैं। चौधरी बंसीलाल के मुख्यमंत्री होते आईपीएस मतलब पुलिस अधीक्षक की ए सीआर तक आईएएस डिप्टी कमिश्नर ही लिखते थे। अब भी आईपीएस अधिकारियों को कई मामलों में नीति निर्धारण के लिए डिप्टी कमिश्नर की मंजूरी की जरूरत होती है।

हरियाणा की बात करें तो हम इसे भी सरकार का परीक्षण ही कह सकते हैं कि इस समय फील्ड में भी प्रशासनिक अधिकारियों पर पुलिस अधिकारियों को व्यवहारिक तरजीह दी जा रही है।

हरियाणा में 6 आरटीओ ऑफिस हैं ।इन सब में हरियाणा सिविल सर्विसेज के अधिकारियों की नियुक्ति होती थी परंतु अब सभी छह आरटीओ एचपीएस मतलब पुलिस अधिकारी लगाए गए हैं। इस समय एक और परीक्षण देखा जा रहा है वह यह कि काफी जिलों में डायरेक्ट आईएएस की बजाए एचसीएच से आईएएस बने अधिकारियों को जिला उपायुक्त के तौर पर तैनात कर रखा है। यह व्यवस्था उस समय शुरू हुई थी जब श्री राजेश खुल्लर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव होते थे।

हरियाणा सरकार में कई गैर आईएएस अफसर आईएएस वाली पोस्टों पर तैनात हैं। इनमें आईएफएस सिन्हा पर्यटन विभाग के प्रबंध निदेशक हैं ।इसी तरह मुख्यमंत्री कार्यालय में आईआरएस योगेंद्र चौधरी भी आईएएस की पोस्ट पर विराजमान है। हरियाणा सरकार ने तो करनाल में एच पी एस अधिकारी सुरेंद्र भौरिया को जिले की बागडोर पुलिस अधीक्षक के रूप में देकर रखी वह भी लगभग 3 साल। यद्यपि इस नियुक्ति के दौरान कानून व्यवस्था चुस्त दुरुस्त भी रही लेकिन यह एक अलग तरह का फैसला था।

आपको बता दें कि एक समय जब शांता कुमार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हर विभाग में आईएएस अफसरों के ऊपर अपने एक एक निजी ओएसडी नियुक्त कर दिए थे। इसके बाद आईएएस अधिकारी हड़ताल पर चले गए और सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था। अब देखते हैं हरियाणा में आईएएस वाली पोस्ट पर आईपीएस को नियुक्त करने की व्यवस्था आईएएस लॉबी कैसे लेती है। परंतु यह भी सत्य है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने मजबूत इच्छाशक्ति के व्यक्ति हैं एक बार जो फैसला ले लेते हैं उस पर पुनर्विचार बहुत ही कम होता है।जहां तक नियमों का सवाल है सत्ता का केंद्र बिंदु मुख्यमंत्री ही रहते हैं और मुख्यमंत्री को लगभग सारे अधिकार प्राप्त हैं

यदि कहीं नियमों या नीतियों का सवाल आता है तो मुख्यमंत्री की ओर से नियमों में ढील देकर आदेश लागू करने की परंपरा और व्यवस्था शुरू से है ।आज भी है और कल भी जरूर रहेगी। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हरियाणा में मुख्यमंत्री में आईएएस की लोबी और अपने एक मंत्री के विरोध के बावजूद आईएएस अफसरों की जगह आईपीएस को जिम्मेदारी देने का अपना अभियान जारी रखा है।

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