… माजरा गांव की गलियों में दफन हुए हैं भ्रष्टाचार के सबूत

गांव की गलियों में हिलोरे ले रहा है भ्रष्टाचार का गंदा पानी.
केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत ने गोद लिया गया था गांव माजरा.
गोद लिया गांव बना अधिकारियों की गोज भरने का टकसाल

फतह सिंह उजाला

पटौदी । केंद्र में सत्ता परिवर्तन के साथ भारतीय जनता पार्टी की सरकार और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के उपरांत दूरगामी ग्रामीण विकास योजना के तहत सांसदों को अपने अपने संसदीय क्षेत्र के गांव गोद लेने के लिए निर्देश दिए गए थे । इसी कड़ी में राव इंद्रजीत सिंह के द्वारा अपने वोटबैंक और कट्टर समर्थक गांव माजरा को गोद लेने के लिए प्राथमिकता प्रदान की गई । मोदी-वन सरकार के कार्यकाल के दौरान पटौदी विधानसभा क्षेत्र के गांव माजरा को राव इंद्रजीत सिंह के द्वारा गोद लिया गया और यहां विकास की विभिन्न प्रकार की योजनाएं तैयार करते हुए विकास का अमलीजामा भी पहनाना आरंभ कर दिया गया ।

लेकिन जिस प्रकार का विकास हुआ , वह अब गांव की गलियों में गंदे पानी के भ्रष्टाचार के रूप में हिलोरे लेता हुआ दिखाई दे रहा है । दूसरे और सीधे सरल शब्दों में विकास और सुविधा के नाम पर भ्रष्टाचार माजरा गांव की गलियों में दफन है, जिसकी पहचान कर अब इस पूरे मामले में अपनी मनमानी और विकास परियोजनाओं को ठोकर पर रखने वाले संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई किया जाना हरियाणा की गठबंधन सरकार के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। वैसे तो गांव माजरा की गलियों मैं गांव की ही नालियों से गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था सही प्रकार से नहीं होने के कारण गंदा पानी भरने की समस्या एक दशक से भी अधिक पुरानी है । लेकिन ग्रामीणों को उम्मीद बनी थी की जब सांसद और केंद्र में मंत्री राव इंद्रजीत के द्वारा गांव को गोद लिया गया है तो यहां पर भी कम से कम शहर या किसी अच्छे कस्बे के समान सुविधाएं उपलब्ध हो सकेंगी । लेकिन आज हालात बिल्कुल इसके विपरीत बने हुए हैं ।

सूत्रों के मुताबिक माजरा गांव में सीवरेज के लिए करीब एक करोड रुपए से अधिक की धनराशि मंजूर की गई, जिससे कि गांव में गंदे पानी की निकासी की सही प्रकार से व्यवस्था की जा सके। लेकिन ऐसा संभव होता दिखाई ही नहीं दे रहा है ं आज हालात यह बने हुए हैं की गांव के मुख्य रास्ते और गलियों में गांव की ही नालियों का गंदा पानी इस कदर भरा हुआ है कि इंसान तो दूर गंदे पानी में पनपने और जन्म लेने वाले विभिन्न प्रकार की बीमारियों के जनक कीटाणु और जीवाणु भी शायद अब इस गांव में आना ही पसंद नहीं करेंगे , क्योंकि गंदगी और गंदगी के बीच बदबू के साथ दूषित पर्यावरण को सहन करने की भी हर जीव की एक अपनी क्षमता होती है।  यह तो ग्रामीणों की हिम्मत और उनके साहस की दाद देनी होगी कि वह फिर भी जैसे तैसे गांव में डटे हुए हैं । ग्रामीणों की सहनशक्ति जवाब दे गई और यहां विकास के नाम पर किया गया भ्रष्टाचार जब गंदे पानी के रूप में गांव की गलियों में ही हिलोरे लेने लगा तो ग्रामीणों का अपने ही मकानों में कैदी बनना मजबूरी बन गया । यह मामला और यहां की शिकायत जब उच्च अधिकारियों तक पहुंची तो विभाग के अधिकारी भी जब माजरा गांव में मौका मुआयना के लिए पहुंचे कुछ चापलूस विचारधारा और समर्थक कर्मचारियों के द्वारा आनन-फानन में गांव में सफाई का ड्रामा भी रचा गया । लेकिन जिस समय पंचायती राज विभाग के अधिकारी पहुंचे और ग्रामीणों को उसकी भनक लगी इसके बाद में ग्रामीणों के द्वारा संबंधित अधिकारियों को इतनी खरी-खोटी सुना डाली गई कि अधिकारी ग्रामीणों के सामने विशेष रूप से महिला वर्ग के सामने हाथ जोड़-जोड़ कर गिड़गिड़ते हुए दिखाई दिए ।

जानकारी के मुताबिक माजरा गांव में विकास और सुविधा के लिए पंचायती राज विभाग की तरफ से करीब 15 लाख खर्च किए गए और बाकी रकम पंचायत को लौटा दी गई । यह बात मौके पर पहुंचे विभाग के ही अधिकारी के द्वारा ग्रामीणों को बताई गई । वहीं सूत्रों के मुताबिक माजरा गांव से गंदा पानी निकासी के लिए सीवरेज के प्रोजेक्ट में सीवरेज की होदियां बनाने में ही एक लाख से अधिक ईटों को इस्तेमाल करकें इनको खपाने का कारनामा अंजाम दिया जा चुका है ,यह जानकारी आरटीआई के जवाब में दी गई है। छोटे से गांव माजरा में सीवर मेनहोल पर लगाने के लिए 320 ढक्कन खरीदने का भी दावा किया गया है। लेकिन खरीदे गए ठक्कन के मार्केट रेट और विभाग के द्वारा खरीदे गए रेट में जमीन आसमान का अंतर है । हैरानी की बात यह है कि सीवरेज के प्रोजेक्ट को पूरा किया जाने के दौरान मस्टर रोल में फर्जी नाम लिखकर फर्जी लोगों के नाम पर भुगतान तक किया जाने की जानकारी सामने निकल कर आ रही है।इतना ही नहीं मस्टररोल में कई स्थानों पर किस दिन क्या काम हुआ या क्या मैटेरियल्स इस्तेमाल हुआ वह तिथि भी नहीं लिखी गई है ।

इतना सब होने के बाद जब भी ग्रामीणों के द्वारा गंदे पानी की निकासी की शिकायत करते हुए मांग की जाती है तो यहां सफाई के लिए प्रतिदिन 40 हजार के भुगतान पर चमत्कारी मशीन भी विभाग के द्वारा मंगवाई जा रही है और इसकी एवज में अभी तक 3 लाख 20 हजार का भुगतान भी किया जा चुका है। दूसरी ओर कैसी और किस प्रकार की जादुई साफ सफाई करते हुए पानी की निकासी की गई , इस बात को कोई भी व्यक्ति, कोई भी नेता, कोई भी प्रशासन का अधिकारी आज माजरा गांव में गलियों में घूम कर अपनी आंखों से देख भी सकता है । माजरा गांव में पहुंचे अधिकारियों के द्वारा यह बात कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया गया कि यहां किए गए काम की जांच की जाएगी और जो भी कोई अधिकारी दोषी होगा उसके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को लिखा जाएगा ।

सवाल यह है कि ग्रामीणों के द्वारा विभिन्न प्रकार से दिए जा रहे टैक्स के भुगतान के बदले में ही सरकार के द्वारा उपलब्ध करवाई गई धनराशि की बदौलत ग्रामीणों का जीवन स्तर बेहतर बनाने के लिए विकास के कार्य करवाए गए और आज हकीकत यह है कि जो भी कोई विकास के कार्य हुए वह सब माजरा गांव की गलियों में नीचे गहरे में दफन हुए पड़े हैं । जो भ्रष्टाचार हुआ वह आज गांव की गलियों में गंदे पानी के रूप में हिलोरे लेता हुआ दिखाई दे रहा है । इन हालात में जब भी गांव में गंदगी और सीवरेज या फिर गांव में गलियों में भरे गंदे पानी का मुद्दा गरम होता है , गंदगी और सीवरेज के पानी के साथ ही ग्रामीण केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का नाम लेकर यह कहने से नहीं चूकते कि यह गांव माजरा राव इंद्रजीत सिंह के द्वारा गोद लिया हुआ गांव है।

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