ऋषि प्रकाश कौशिक

किसान कभी करनाल नहीं भूल पाएंगे। करनाल में किसानों पर जो कहर टूटा है उसकी आशंका तो पहले से ही थी लेकिन यह भी उम्मीद की जा रही थी कि मुख्यमंत्री अब राजकाज चलाने में परिपक्व हो गए हैं इसलिए धैर्य का परिचय देते हुए किसानों को लोकतांत्रिक तरीके से विरोध जताने का अवसर देंगें। नौ महीने के आंदोलन में किसान कहीं भी मर्यादा से बाहर नहीं हुए। मर्यादित किसानों पर अलोकतांत्रिक टिप्पणियाँ भी सत्ता पक्ष के लोगों की ओर से की गईं फिर भी किसानों ने संयम नहीं तोड़ा; मर्यादा के दायरे में ही विरोध किया।

 मुख्यमंत्री बखूबी जानते थे कि किसान उनकी बैठक का विरोध जताने अवश्य आएँगे इसीलिए उन्होंने सुबह से ही करनाल को छावनी में तब्दील कर दिया था। ऐसी रिपोर्ट भी आ रही थी कि चप्पे चप्पे पर पुलिस के जवान तैनात कर दिए गए हैं। इस माहौल में किसानों पर बल प्रयोग कर अप्रिय घटना को टालना सिर्फ मुख्यमंत्री के हाथ में था। मुख्यमंत्री भले ही केंद्र से किसानों की माँग नहीं मनवा पाए। जाहिर है कि यह उनके हाथ में नहीं था लेकिन किसानों के साथ सहानुभूति जताना तो उनके हाथ में है। इतना तो मुख्यमंत्री कर सकते थे कि किसानों पर पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई कर उनका लोकतांत्रिक अधिकार ना छीना जाए। प्रदेश के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री की मुख्य जिम्मेदारी है कि संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की जाये लेकिन वे यह जिम्मेदारी निभाने में भी सफल नहीं रहे।

किसानों के गुस्से का लावा कई दिनों से फूट रहा था। उसे शांत करने के लिए केंद्र सरकार ने उनकी मांगों को ठंडे बस्ते में डाल दिया इसलिए वे हरियाणा में बीजेपी की सरकार का विरोध कर कई महीनों से केंद्र सरकार पर दबाव बना रहे हैं। ऐसा विरोध चुनावों के समय तेज हो जाता है। हरियाणा में पंचायत, परिषद और निगम चुनाव होने वाले हैं। हालांकि हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि नए नियमों से चुनाव नहीं करवा सकते; चाहें तो पुराने नियमों से चुनाव करवा सकते हैं। आज मुख्यमंत्री ने स्थानीय निकाय चुनावों के सिलसिले में विधायकों और सांसदों की बैठक अपने गृह नगर करनाल में बुलाई थी। इस बैठक से यह तो स्पष्ट हो गया कि पुराने नियमों से चुनाव करवाए जाएंगे। मुख्यमंत्री राज्य की जनता को इस सवाल का जवाब अवश्य दें कि पुराने नियमों से इतना ही मोह है तो उन्हें बदला क्यों गया? दो नावों पर सवार होकर कितनी दूर जाएंगे? 

  मुख्यमंत्री से बेहतर यह बात कौन समझ सकता है कि किसानों के विरोध की दीवार खड़ी होने के बाद किसी भी पार्टी का राजनीतिक सफर आगे नहीं बढ़ सकता। बरोदा उपचुनाव में किसान बीजेपी को धोबी पाट लगा कर अपनी ताकत का चमत्कार दिखा चुके हैं। हरियाणा में किसी भी चुनाव में किसानों का यही रुख रहेगा और नतीजे भी बरोदा जैसे ही रहेंगे।

आज की घटना से स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे भी तय हो गए हैं। इन नतीजों से भयभीत बीजेपी अपने सिम्बल पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती। बीजेपी चाहती है कि जो निर्दलीय जीतें उन्हें अपने परिवार में शामिल कर लिया जाए। बीजेपी जानती है कि सिंबल पर चुनाव लड़े तो वोट माँगने के लिए जब भी निकलेंगे, कड़ा विरोध झेलना पड़ेगा। यह भी तय है कि निर्दलीय को खुल कर समर्थन भी नहीं दे पाएंगे। जैसे ही बीजेपी की ओर से समर्थन का एलान होगा, उस उम्मीदवार की हार तय मान ली जाएगी।आज तो बीजेपी ने अपनी सुरक्षा के लिए भारी पुलिस बल तैनात कर दिया लेकिन क्या बीजेपी का कोई नेता अपने उम्मीदवार के लिए पुलिस बल साथ लेकर वोट माँगने जाएगा? यह एक अहम सवाल है।

उधर, एडीजीपी नवदीप सिंह विर्क ने बयान जारी कर कहा है कि किसान उग्र हो गए थे इसलिए पुलिस को हल्का बल प्रयोग करना पड़ा। उनके मुताबिक चार किसान और 10 पुलिस कर्मचारी घायल हुए हैं 

विर्क का कहना है कि 7 जून को टोहाना में हुए समझौते में संयुक्त किसान मोर्चा ने लिखित रूप से यह आश्वासन दिया था कि भविष्य में वह किसी भी प्रदर्शन के दौरान उग्र रूप धारण नहीं करेंगे, लेकिन इसके बाद भी प्रदर्शनों के दौरान कई बार इस समझौते का उल्लंघन  किया गया है। जब ऐसी स्थिति आती है तो पुलिस को लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन करने के लिए कदम उठाना पड़ता है।

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