-कमलेश भारतीय

राजनीति में विरोधी नेताओं को उलझाने के लिए सत्ता पक्ष ऐसे ऐसे और कैसे कैसे केस चलाते हैं तो दो उदाहरण काफी होंगे ? पहला आठ मार्च का है जब महिला दिवस के दिन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमतों के विरूद्ध ट्रैक्टर को बिना चलाये दूसरे विधायकों से रस्से से खिंचवाया था और विधानसभा तक पहुंचे थे । सबसे अधिक ज़ोर से इसे खींचने वालों में कलानौर की विधायक व बाइक वाली खटक के रूप में मशहूर शकुंतला खटक खींच रही थी । इस फोटो के आधार पर तब महिला आयोग वे संज्ञान लिया था और महिला दिवस पर एक महिला द्वारा इस तरह ट्रैक्टर खिंचवाने पर केस दर्ज किया था । उस केस का क्या हुआ ? यह तो पता नहीं लेकिन शकुंतला खटक ने पलट कर जवाब दिया था कि मैं इतनी कमज़ोर नहीं कि ट्रेक्टर न खींच सकूं और हुड्डा जी मेरे नेता ही नहीं बल्कि पिता समान हैं । उनके लिए मैंने जो किया वह कम है । इस तरह सरकार ने यह जरूर साबित कर दिया कि किस तरह हास्यास्पद स्तर तक जाकर केस दर्ज किये जाते हैं ।

अब दूसरा उदाहरण लीजिए ।हरियाणा विधानसभा का मानसून सत्र चल रहा है । इस बार पैदल मार्च करते भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने विधायकों के साथ विधानसभा तक पहुंचे और रिक्शा पर बिठा कर एक ग्यारह साल के बच्चे का हाथ में स्लोगन थमा रखे थे । अब फिर सरकार तेज़ हुई और इस बार बाल अधिकार संरक्षण आयोग को आगे किया जिसने रोहतक के डीसी को खत लिखा है कि इस तरह एक बच्चे पर दवाब बनाने व मानसिक तौर पर परेशान करने का केस दर्ज किया जाये -इनमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा , शकुंतला खटक और कुलदीप वत्स के नाम लिए गये हैं । यह भी आयोग का कहना है कि बच्चा वीडियो में कुछ भी बता नहीं पाया । खैर । जबकि उसकी रिक्शा के पास भूपेंद्र सिंह हुड्डा , शकुंतला खटक और कुलदीपक वत्स दिखाई दे रहे हैं ।इसका संज्ञान लिया जाये और कार्यवाही की जाये ।

यह याद दिला दूं कि यदि आप स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्ने खोले जाएं तो कितने बच्चों ने इसमें अपना योगदान दिया और अंग्रेजी सरकार ने और तरह की सजायें जरूर दीं लेकिन उनको उकसाने का आरोप लगाकर किसी दूसरे पर केस दर्ज नहीं किया । सज़ा दी तो सीधे बच्चे को ही दी । क्या बच्चे को वीडियो का हवाला देकर मासूम साबित किया जा रहा है ? जरूरी नहीं कि हर बच्चा तुरंत वीडियो पर बोल सकता हो । जरूरी नहीं कि अपनी भावनाएं कुशलता से व्यक्त कर सकता हो पर आप तो उसके सहारे तीन तीन नेताओं को फंसाने के लिए तैयार हो गये ? कल इस पर केस दर्ज होता है या नहीं लेकिन यह बात थोड़ी हंसी का कारण जरूर बनेगी , इसमें संदेह नहीं ।

जहां तक विरोध प्रदर्शन की बात है यह विपक्ष का अधिकार है और स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है । यदि आप विपक्ष से विरोध करने का अधिकार इस तरह केस दर्ज करके छीन लेने की फिराक में हो तो यह बहुत दुखद है और यह तानाशाही के निकट का कदम माना जायेगा । इस पर पुनर्विचार कीजिए । मानसून सत्र में संसद में भी यही नीति अपनाई गयी और विपक्ष को जरूरी मुद्दों पर विचार करने का समय नहीं दिया गया । यह एक प्रकार से ऊपर से नीचे तक नीति है कि विपक्ष को दबाओ । जैसे यूपी में सम्पत्ति नष्ट करने पर उसी से वसूल किये जाने का कानून बनाया गया । ये सारे कदम विपक्ष को चुप करवाने की दिशा में उठाये जा रहे हैं । कभी कोरोना को बहाना बना कर तीन कृषि कानून बिना चर्चा के ही पारित करवा लिये गये और ये आज तक केंद्र सरकार के लिए मुसीबत बने हुए हैं । ज़रा इन कदमों पर विचार कीजिए साहब ,,,ये कदम वापस ले लीजिए ।

-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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