तालिबान और अफगानिस्तान

कमलेश भारतीय

तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति को देश छोड़ कर भागना पड़ा । इसे तख्ता पलट भी कह सकते हैं । तालिबान से अफगानिस्तान लम्बी लड़ाई लड़ता आ रहा है । तालिबान से सीधा सीधा यह मानिये कि इस्लामिक राज्य । पुरातनपंथी को सलाम और नारियों को पर्दे में रखना, आज़ादी न देना । पुराने विचारों में , पुराने ख्यालों में रहना । यह एक प्रकार का तालिबान का नज़रिया है , विचार है , संस्कार है और सपना है जिसे तख्ता पलट कर पूरा करने की कोशिश की जा रही है । हवाई अड्डों पर कब्जा , सरकार पर कब्जा और पूरे देश पर कब्जा । विश्व परेशान । मुश्किल से बच कर आए भारतीय दूतावास के लोग । बमवारी और बंदूकधारियों से बचते बचाते । खुशकिस्मत रहे कि सुरक्षित देश पहुंच गये ।

क्या तालिबानी विचार या संस्कार से क्या किसी का भला हो सकता है ? बिल्कुल नहीं । इन पुराने विचारों से किसी का भला नहीं होने वाला। मुश्किल से नारी परदे से बाहर निकली और तालिबान फिर उसे परदे के पीछे धकेल रहे हैं । कोई बहुत बड़ा देश नहीं फिर भी इसे आर्थिक संकट में धकेल रहे हैं । बरसों पीछे ले जा रहे हैं देश को । सारा विकास खत्म हो जायेगा । हालांकि बताया जा रहा है कि काबुल में शांति लौट आई है और महिलाओं को भी राहत दी गयी है व काम पर आने के लिए कहा गया है । नया राष्ट्रपति बनने को तैयार हो रहे हैं । नये तौर तरीके लागू किये जायेगे ।

पर क्या किसी भी देश में इस तरह के विचार लम्बे समय तक चल पायेंगे या स्वीकार किये जायेंगे? तख्ता पलट फिर हो सकता है । जैसे नक्सलवाद बंदूक की नोक पर अपनी बात मनवाना या लादना जानते हैं , कुछ कुछ वैसे ही तालिबानी भी अफगानिस्तान में करते आ रहे थे और अब वे सत्ता पर कब्जा करने में भी फिलहाल सफल हैं लेकिन कब तक ? इंसान आजाद सोच व आजाद ख्याल से जीना चाहता है न कि इतने दकियानूसी ख्यालों से । चाहे तालिबानी राज कुछ समय रहे या कुछ साल अफगानिस्तान को बहुत पीछे ले जायेगा । लोकतंत्र की चाह भर रह जायेगी जैसे पाकिस्तान में आज तक लोकतंत्र एक सपना है आवाम के लिए और बीट बीच में वहां फौज तख्ता पलट ही देती है और अब भी इमरान खान जैसे कमज़ोर प्रधानमंत्री के चलते ये खतरा बढ़ता जा रहा है । खुदा खैर करे ,,,,

-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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