हिपा की ट्रेनिंग

हरियाणा सरकार अपने अधिकारियों के चहुंमुखी विकास के लिए भांति भांति के कार्यक्रम करती रहती है। इस महायज्ञ में हिपा,गुड़गांव भी अपना अमूल्य योगदान देती रहती है। जैसे कि हिपा ने अपने अफसरों को अंतरराष्ट्रीय मुददों की जानकारी देने के लिए एक डिप्लोमा कोर्स का आयोजन किया। कोर्स करने वाले एचसीएस अफसर और इन को कोर्स कराने वाले, दोनों ही ये विराट कार्य कर खुद को धन्य महसूस कर रहे हैं। हिपा की मुखिया सुरीना राजन ने इस कोर्स को कराने के लिए अपने बैचमेटस की सेवाएं भी लीं। 1985 बैच की हरियाणा कैडर की रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सुरीना राजन इन दिनों हिपा की निदेशक हैं। उनके बैचमेट मुख्य सचिव विजयवर्धन के अनुभव का लाभ उठाने का एचसीएस अफसरों को भरपूर अवसर मिला।

लैक्चर देने वाले अन्य विशिष्ठ महानुभाओं के अलावा 1985 बैच की ही रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी किया भटटाचार्य ने भी ग्लोबल मुददों पर अपने विचार सांझा किए। कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियों ने अपने विचारों से अधिकारियों का ज्ञानवर्धन करने का प्रयास किया। ग्लोबल मुददों से अफसरों को वाकिफ कराने के लिए हिपा के प्रयास की तो सराहना की ही जानी चाहिए,लेकिन इसके साथ और भी कई ऐसे महत्वपूर्ण मुददे हैं, जिन पर अफसरों, खासकर आईएएस-आईपीएस-एचसीएस-एचपीएस को ट्रेनिंग,ज्ञान देना,उनके आचार-विचार-संस्कार में इंसानियत लाना निहायत ही जरूरी है। ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण मुददों पर बात कर लेते हैं। एक तो ये कि भले ही बहोत से लोग अफसर बन जाते हैं,लेकिन उनको रिटायरमेंट तक ये ज्ञान नहीं हो पाता कि विधायक-सांसद भी इसी सरकारी सिस्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

बहुत दफा मुख्य सचिव के यहां से भी रस्मी तौर पर अफसरों को ऐसी चिठ्ठियां लिखी जाती रहती हैं कि जनप्रतिनिधियों का सम्मान किया जाए। उनको इज्जत से बिठाया जाए। उनकी बात सुनी जाए। उनके फोन सुने जाएं। क्या कभी आज तक ऐसा हुआ है कि किसी एक भी अफसर पर सरकार ने इसलिए कार्रवाई की हो कि उन्होंने फलां एमएलए-एमपी का फोन नहीं सुना? कार्रवाई तो छोड़िए,यहां तक कि अप्रसन्नता-नाखुशी जाहिर करने वाला सरकारी कागज ही किसी अफसर को सरकार की तरफ से प्राप्त-प्रेषित हुआ हो? दरअसल बहुत से अफसरों को ऐसा लगता वो विधायक-सांसदों से बहुत ऊंची चीज हो गए हैं। इनसे बात करना, इनके साथ बैठना, अफसरों को अपने तथाकथित स्टेटस के खिलाफ लगता है। अब इनको कौन ये समझाए कि ये स्टेटस वटेटस सब मन का वहम है। सौदा ऐ कुछ ना है।

हरियाणा के एक तेजतर्रार रिटायर्ड आईएएस अधिकारी कह रहे थे कि वो वर्ष 2000 से एक नियम अपना रहे हैं कि चुनाव होने के तुरंत बाद प्रदेश के सभी 90 विधायकों और 15 सांसदों के फोन नंबर अपने मोबाइल फोन में फीड करवा लेते हैं। आमतौर पर अत्यंत प्रतिष्ठित पदों पर रहने के बावजूद इन अफसर ने शायद ही कभी जानबूझ कर ऐसा किया हो कि किसी विधायक या सांसद के फोन ना सुनें हों। अगर ये अधिकारी कहीं मीटिंग में बिजी हैं तो बाद में वापस फोन कर लेते हैं। बहुत दफा अफसरों को नेताओं से ऐसा महत्वपूर्ण फीडबैक मिल जाता है, जो सरकार-विभाग-जिला चलाने के लिए काफी असरदार-मददगार साबित होता है। बहुत दफा बातों के ये सिलसिले आगे बढते हुए इतने घनिष्ठ हो जाते हैं कि दोनों ही एक दूसरे के लिए काफी काम के साबित हो जाते हैं। दूसरा केस ये है कि नए नए नवेले अफसर-खासतौर पर डायरेक्ट आईएएस अफसरों को छोटी सी-बाली सी उमरिया में डीसी लगने का अवसर प्राप्त हो जाता है। ये तो ठीक है कि ये आईएएस बन गए-डीसी भी लग गए,लेकिन समझ और परिपक्वता तो आते आते आती है। अनुभव से आती है। समय से आती है। यंंू ये सब पर तो लागू नहीं,लेकिन बहुत से ऐसे नए नवेले अफसरों का बर्ताव पब्लिक व अपने अधीनस्थ अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ अत्यंत अपमानजनक रहता है। खास तौर पर जो ये पहली पहली दफा डीसी लगते हैं ना उनका तो बर्ताव तौबा तौबा होता है।

ऐसे ही एक नए नवेले डीसी की आए दिन की बिना बात की बकवास से तंग आकर एक क्लास वन अधिकारी ने तो वीआरएस के लिए आवेदन भी कर दिया है। एक और उदाहरण पेश है। पंचकूला में तैनात एक महिला एचसीएस अफसर ने अपने अधीन एक अस्थाई कर्मचारी को इतना परेशान कर दिया कि वो नौकरी से इस्तीफा ही लिख बैठा। उस कर्मचारी को सांत्वना देकर बड़ी मुश्किल से समझाया गया कि नौकरी तो छोड़ जाओगे,लेकिन फिर आप अपने परिवार का लालन पालन कैसे करोगे? मामला ये है कि डाटा एंट्री ओपरेटर के पद पर तैनात इन अस्थाई कर्मचारी के भाई को बीमारी के कारण हस्पताल में दाखिल होना पड़ा। भाई की सेवा में लगे ये अस्थाई कर्मचारी एक दो दफा आफिस में आधा धंटा-एक घंटे देरी से आया। हालांकि ये उनका ये सेवा भाव किसी काम न आया और भाई का निधन हो गया।

अब ये मैडम इन अस्थाई कर्मचारी पर रोज ही बोसगिरी करने पर उतारू है। आए दिन उसको बुला कर अपने आफिस के बाहर सजा के तौर पर खड़ा रखती है। देर शाम तक ये कार्यक्रम रचती है। ऐसा कार्यक्रम ये मैडम इस अदने से कर्मचारी के साथ कई दफा कर चुकी है। हम तो सोच रहे थे कि महिला अफसर ज्यादा संजीदा होती हैं,लेकिन इस केस में तो मैडम एचसीएस ने क्रूरता की हद कर रखी है। कोई इनको बताए-सिखाए कि अफसर से पहले इंसान बनना जरूरी है। सो हिपा वालों को सोचना चाहिए कि ग्लोबल इश्यू तो ठीक हैं,जरूरी भी हैं,लेकिन इस से जरूरी कुछ और, निहायत ही जरूरी मुददे भी हैं, जिन पर अफसरों को सिखाने-बताने-जताने की जरूरत है। इस हालात पर कहा जा सकता है:

हाथ से नापता हंू दर्द की गहराई को
ये नया खेल मिला है मेरी तन्हाई को
दिल-ए-अफसुर्दा (दुखी हृदय) किसी तरह बहलता ही नहीं
क्या करें आप की इस हौसला अफजाई को
खैर बदनाम तो पहले भी बहुत थे लेकिन
तुझ से मिलना था कि पर लग गए रूसवाई को

सरकारी योजना

जरूरी नहीं कि सरकारों की हर योजना में ही खेल हो। कई योजनाएं विशुद्ध तौर पर जनता के कल्याण को ध्यान में रख कर भी बनाई जाती हैं। वो अलग बात है कि इस पुण्य लक्ष्य को हासिल करते करते बहुत से अधिकारी-कर्मचारी जरूर मालामाल हो जाते हैं। जैसे कि एक सीनियर अधिकारी बता रहे थे कि हरियाणा सरकार ने नगर निकायों के तहत आने वाली प्रोपटी की आईडी बनाने की योजना शुरू कर रखी। इसके कई फायदे हैं।

अब विभाग वालों ने इस में से अपना फायदा ये कर लिया कि प्रोपर्टी आईडी बनाने के काम में-आड़ मेंं अपना धंधा खोल कर बैठ गए। अपनी दुकान चलाने लग गए। एक साफ नीयत और नेक मकसद से चलाई गई योजना में भी बाबू लोग पानी और सांप की तरह अपना रास्ता बना ही लेते हैं। सरकार के पास है कोई इसका इलाज?

समस्या का समाधान

दिल्ली से सटे एक अत्ति महत्वपूर्ण जिले में सरकारी आवास को लेकर अफसरों-कर्मचारियों में काफी मारामारी रहती है। इसी सिलसिले में इनकी नजर डीसी के घर पर पड़ती रहती है। ऐसा भी सरकार के संज्ञान में लाया जाता रहा है कि कई एकड़ में फैले इस विशाल डीसी आवास के अगर कुछ पर कतर दिए जाएं, तो सरकारी आवास की समस्या का काफी हद तक समाधान हो सकता है। इस डीसी आवास के कुछ हिस्से में अफसरों के लिए सरकारी मकान बनाए जा सकते हैं।

अब डीसी तो डीसी होते हैं। उनका रूतबा-जलवा-शान ओ शौकत बढाने वाले कारणों में उनका आवास भी शामिल होता है। इन मौजूदा डीसी को लगा कि सरकार में इस तरह के प्रपोजल तो चलते रहते हैं। हो भी सकता है कि किसी दिन ये सिरे भी चढ जाएं। लिहाजा उन्होंने इस समस्या का समाधान करने की ठानी। बागवानी विभाग वालों को बुला कर कहा कि इस डीसी आवास में इतने पेड़ लगा दो कि ये घने जंगल में तबदील हो जाए। जब यहां चारों और इतनी हरियाली हो जाएगी-पेड़ लग जाएंगे, तो फिर यहां डीसी आवास को क्रंकीट का जंगल में तबदील करने की योजना को खुद ब खुद पलीता लग जाएगा।

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