कमलेश भारतीय क्या अपने देश में आपातकाल है ? कौन कम्बख्त यह कहता है ? कौन इस पर विश्वास करेगा ? कोई आपातकाल नहीं । सभी चैनल तो मज़े में हैं और उनके तो अच्छे दिन कब के आ चुके हैं । ज्यादातर चैनल मोदी और योगी के गुणगान में मस्त हैं और पूरे आनंद की स्थिति में हैं । फिर यह भास्कर के दफ्तर में आयकर का छापा क्यों ? किसलिए खफा हो गयी सरकार और हमारे साहब भास्कर से ? क्या नदियो के किनारे कोरोना के मारे उन लोगों के शव दिखाने से जो किसी गिनती में ही नहीं रखे गये थे ? क्या सच कहने पर ही छापा पड़ा? क्या आपातकाल की याद आई ? नहीं भाई नहीं । ऐसे बढ़ा चढ़ा कर बात न कहो । यह देशद्रोह बन जायेगी । सच बोलो कि कोई आपातकाल नहीं लगा है और मीडिया पूरी तरह गद्गद् है । कोई समस्या नहीं। है तो बताओ , सम्मानित कर देंगे यार । बताओ कौन सा पुरस्कार चाहिए ? रजनीकांत को पुरस्कार दिया कि नहीं? दादा फाल्के से कम क्या देते ? फिर देखो वे राजनीति में आए ही नहीं । कोई पार्टी नहीं । जो संगठन बनाया था उसका भी तर्पण कर दिया । फुल्ल स्टाॅप यानी पूर्ण विराम राजनीति में नहीं जाएंगे रजनीकांत । कितने पत्रकार टी वी चैनलों से गायब हो चुके हैं । आपको अजीत अंजुम याद हैं ? आपको पुण्य प्रसून वाजपेयी का कुछ ध्यान है ? अभिसार कहां गये ? कितने और पत्रकार स्क्रीन से गायब हो चुके क्योंकि साहब को पसंद नहीं थे । खुलकर बोलते हैं क्या लोकतंत्र में ? इतना खुल कर बोलने की इजाजत नहीं । अपनी हद में रहो और अपनी हद पहचान लो । कितने और पत्रकार छोटी जगहों पर प्रताड़ित किये जा रहे होंगे लेकिन उनकी तो कोई खबर भी नहीं मिलती । भास्कर ने मुहिम चलाई और लगातार कवरेज भी दिखाई सच पर छापों की । अब इसे आप जो भी कहिए पर आपातकाल इससे ज्यादा बुरा न होगा । यह तो वही बात हो गयी-सामने आते भी नहीं और सब कुछ कर जाते हो , साहब । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमेशा खतरे मंडराते रहते हैं । चाहे स्वतंत्रता पूर्व की बात हो या फिर आज की बात हो । ये खतरे उठाने ही होंगे । उठाने ही होंगे अभिव्यक्ति के खतरे । तभी तो आज़ादी के दिनों में यह बात सामने आती थी कि पत्रकार चाहिए लेकिन वो जो जेल जाने को तैयार हो । पत्रकारिता एक जुनून हो और कुछ कर गुजरने का इरादा हो । वहीं ज्ज्बा आज गायब है पत्रकारिता से । अगर अब भी एकजुट न हुए पत्रकार तो यह खतरा बढ़ता सी जायेगा और शब्दों की धार अपना असल कब खो जाए , कह नहीं सकते । शब्द ब्रह्म है , शब्द बेदी बाण की तरह किसी के सीने को छलनी कर देते हैं । एक समय शहीद भगत सिंह भी कानपुर के अखबार में बलवंत के नाम से पत्रकार बने थे और खूब अच्छे लेख लिखे जो आज भी पढ़े जाते हैं । आइए इस अघोषित आपातकाल का सामना करें । Post navigation पंजाब में बदलाव या बगावत की हवा ,,,? यदि आज कैप्टन लक्ष्मी होतीं तो गाजीपुर बार्डर पर धरना दे रही होतीं : सुभाषिनी अली