भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। 19 जुलाई गुरुग्राम के लिए काला दिन सिद्ध हुई। कोई रात को ही उठ गया, कोई सुबह उठा तो सारे गुरुग्राम को पानी से लबालब पाया। कुछ लोगों ने तो यह भी बताया कि जब वे सो रहे थे तो उनके घरों में पानी भर गया और जब पानी बैड पर पहुंचा तो नींद खुली। तात्पर्य यह कि निगम और जीएमडीए के सभी दावे धरातल पर पूर्णतया: फेल हो गए। 

दो आइएएस और 11 एचसीएस अधिकारी गुरुग्राम में जल निकासी के प्रबंध में जुटे थे और भारत सारथी ने गत 11 जुलाई को लिखा था कि मीटिंगों ही मीटिंगों से क्या मानसून से बच पाएगा गुरुग्राम। साथ ही लिखा था कि मीटिंगों के अतिरिक्त धरातल पर काम दिखाई नहीं दे रहा। जगह-जगह टेलिकॉम कंपनियों ने गड्ढ़े खोदे हुए हैं। जो सीवर सफाई के टेंडर दिए हैं, उन पर काम हुआ नहीं है और वही हुआ, सब सामने आ गया और गुरुग्राम का नाम संपूर्ण विश्व में खराब हुआ।

आज निगम की मेयर मधु आजाद ने फिर अधिकारियों की मीटिंग ली यानी मीटिंग-मीटिंग का खेल फिर आरंभ हुआ। उस मीटिंग में मेयर ने अधिकारियों से कहा कि काम में जुट जाएं, नहीं तो कार्यवाही होगी, सीएम को शिकायत भेजी जाएगी। तो मेयर साहिबा से पूछा जाए कि आपको मेयर बने साढ़े तीन साल पूर्ण हो चुके हैं और तभी से आप यही बात कहती रही हैं कि कार्यवाही होगी पर क्या अब आप बता पाएंगी कि किस पर कार्यवाही हुई इतने समय में।

मेयर मधु आजाद का चौथा वर्ष चल रहा है। अत: उन्हें अनुभवहीन तो कहा नहीं जा सकता, तीन बरसात पहले भी जा चुकी हैं, तब भी स्थिति ऐसी नहीं तो कुछ कमोवेश खराब ही रही और तब भी इसी प्रकार की बातें कही गईं। गुरुग्राम की जनता जानना चाहे कि अब तक आपने किस अधिकारी की शिकायत ऊपर की? निगम में बिना काम हुए करोड़ों रूपए की पेमेंट हो गई, आपने तब भी क्या किसी की कोई शिकायत की? निगम में अधिकारियों ने पार्षदों के झूठे दस्तखत कर पेमेंट निकलवा ली, तब आपने कोई कार्यवाही की? अब इस प्रकार की बातों से क्या आप समझती हैं कि जनता आपकी बात पर विश्वास करेगी? 

मीटिंग में मेयर का कहना है कि निगम अधिकारी जब पार्षदों के क्षेत्र में आएं तो पार्षदों को साथ बुलाएं, क्योंकि पार्षदों को अपने क्षेत्र की भौगोलिक जानकारी अधिक होती है। मेयर साहिबा आपकी बात उचित है परंतु आप यह बताए पाएंगी कि किस पार्षद को यह नहीं पता था कि मानसून आने वाला है और यदि पता था तो उसे उस क्षेत्र की भौगोलिक जानकारी थी तो वहां की नालियां, सीवर, जल निकासी के प्रबंधों के बारे में किसी ने क्यों नहीं आपको लिखा या अधिकारियों को लिखा? अब जब गुरुग्राम निवासियों के हजारों घरों में पानी भर गया, उनकी खून-पसीने की कमाई के करोड़ों रूपए बर्बाद हो गए तो उसकी जिम्मेदारी क्षेत्र का पार्षद लेगा, मेयर लेंगी या अधिकारी लेंगे? इस बात का जवाब क्षेत्र की जनता चाहती है।

जैसा कि पूर्व वर्षों में भी होता रहा है कि पहली बरसात में क्षेत्र में खूब पानी भर जाता है लेकिन दूसरी बरसात में उतना नहीं भरता और जिससे आप स्वयं ही अपनी पीठ ठोक लेते हैं कि देखिए हमारे प्रयासों से जलभराव कम हुआ। उसका कारण यही होता है कि जब पहली बरसात आती है, जिस काम की आपके ठेकेदार पेमेंट ले चुके होते हैं अर्थात सीवर साफ करने की, वह काम पहली बरसात का इतने वेग से आया पानी कर देता है और सीवर स्वयं कुछ खुल जाते हैं। जब सीवर कुछ खुल जाते हैं तो अगली बार पानी की निकासी कुछ जल्दी होने लगती है और आप अपनी पीठ थपथपा लेते हैं। इस मीटिंग का अर्थ भी कहीं वही तो नहीं कि इतने वेग से जो पानी सीवरों के रास्ते निकला, उससे सीवर कुछ तो साफ हो गए। अत: अगली बरसात में निकासी जल्दी होगी और आप उसका श्रेय अपनी इस मीटिंग को दे देंगी।

आज की मीटिंग में मेयर ने यह भी कहा कि हम चाहेंगे कि जो अधिकारी उस क्षेत्र में लगाए जाएं, वे क्षेत्र के पार्षद से पूछकर लगाए जाएं। इसके पीछे क्या कारण है? क्या सभी अधिकारी सक्षम नहीं हैं? या विशेष पार्षद से विशेष अधिकारी का तालमेल होने से ठेकेदारों से भी अच्छा तालमेल हो जाता है और मेलजोल से काम अच्छा चल जाता है।आज ही एक व्यक्ति कह रहा था कि निगम में तो यह चर्चित है कि सच्चाई छुप भी सकती है यदि आपस में मेल हो और खुशबू आ भी सकती है यदि कागज में तेल हो। तो यही सिद्धांत चल रहा है। कागज में तेल की तरह काम किए जाते हैं और मिल-जुलकर वह बातें बाहर नहीं आतीं। आगे फिर….।

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