-कमलेश भारतीय रेडियो के डिब्बे में आवाज़ ढूंढ़ती ढूंढ़ती मैं खुद आकाशवाणी की उद्घोषिका ही बन गयी । बचपन में पापा रेडियो सुनते तो मैं भी सुनती और सोचती कि कैसे इस डिब्बे में से आवाज़ आती है । बस । बन गयी उद्घोषिका । यह बताया पहले चुरू और आजकल हिसार आकाशवाणी पर उद्घोषिका क्षमा भारद्वाज ने । मूल रूप से चुरू राजस्थान निवासी क्षमा भारद्वाज ने ग्रेजुएशन वहीं के बालिका महाविद्यालय से की और हिंदी एम ए की अजमेर विश्विद्यालय से । -काॅलेज में कौन सी गतिविधियों में भाग लेती थीं ?-हर सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेती थी । कविता पाठ , निबंध लेखन , नृत्य, वाद विवाद सभी प्रतियोगिताओं में भाग लिया । -रेडियो नाटक भी किया ?-जी । आकाशवाणी रोहतक में बदलते रिश्ते में । काॅलेज में भी थियेटर किया । -कैसे आकाशवाणी के प्रति आकर्षण हुआ ?-पापा एम एल भारद्वाज अंग्रेजी के शिक्षक थे और चुरू चेतना पाक्षिक पत्रिका भी निकालते थे और मैं सह संपादक थी । वे रेडियो सुनते तो मैं सोचती कि इस डिब्बे में से आवाज़ कैसे और कहां से आती है ? क्या मैं भी कभी इसमें बोल पाऊंगी? -फिर कैसे जुडीं आप रेडियो से?-मेरा भाई फाॅर्म लेकर आया और कहा रेडियो पर जाना है तो इसे भर दो । इस तरह ऑडिशन का काॅल आया और मैं चुनी गयी। -क्या क्या किया ?-छह साल तक युववाणी और फिर फीचर भी । -आपके प्रेरक कौन ?-मेरे प्रेरक हैं हरिशंकर व्यास जी । इनकी प्रेरणा से मैं इस आवाज़ की दुनिया में आई और आगे बढ़ी । -हिसार आकाशवाणी पर कैसे ?-मेरे पति संजय शर्मा यहां जिंदल कम्पनी में कार्यरत हैं , इसलिए सन् 2004 से हिसार मे हूं और इसी के चलते हिसार आकाशवाणी से भी जुड़ गयी। -परिवार?-पति के बारे में बता ही दिया है और एक बेटा है आर्यन शर्मा जो जमा दो कर चुका है । -कुछ लेखन भी करती हैं ?-जी । कविता लेखन करती हूं क्षमा खामोशी के नाम से । -जो नये लोग आकाशवाणी पर कैजुअल अनाउंसर बनना चाहें , उनमें क्या गुण होने चाहिएं?-पहले तो रेडियो के अच्छे श्रोता बनें । फिर उच्चारण सुधारते चलें लगातार । लिखने की कला हो ताकि प्रस्तुतिकरण बेहतर हो सके । सब ऐसे ही सीखते हैं । हमारी शुभकामनाएं क्षमा भारद्वाज को । Post navigation तिरुपति बालाजी धाम से निकली निशान पद यात्रा अब मुख्यमंत्री का सम्मान कौन बचायेगा?