Haryana Chief Minister Mr. Manohar Lal addressing Digital Press Conference regarding preparedness to tackle Covid-19 in the State at Chandigarh on March 23, 2020.

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। अभी दीवाली पर सरकार के कार्यकाल के दो वर्ष पूर्ण होंगे। तात्पर्य यह कि चुनावों में बहुत लंबा समय है परंतु सरकार की कार्यशैली ऐसी लगती है जैसे शीघ्र ही चुनाव होने वाले हों।किसान आंदोलन और कोरोना दोनों सरकार के लिए घातक सिद्ध होते नजर आ रहे हैं। न तो सरकार किसान आंदोलन को संभाल पा रही है। आज भी सिरसा में किसानों का जमावड़ा लगा रहा। प्रशासन, शासन बैकफुट पर नजर आया। मामला था कि पांच किसानों पर देशद्रोह का केस दर्ज करने का और अब किसानों ने ऐलान कर दिया कि यहां भी स्थाई धरना रहेगा।

इसी प्रकार कोरोना के लिए सरकार बुरी तरह आलोचनाएं झेल रही है। सरकार के पास कोरोना से निपटने के लिए फंड की कमी थी, यह सरकार ने भी माना और वह सीएसआर पर निर्भर रही। सीएसआर से धन भी खूब मिला लेकिन उसका सही प्रकार से प्रयोग न करने पर सवाल उठ रहे हैं। वर्तमान में भी कोरोना वर्कर्स, आंगनवाड़ी, आशा, आयुष आदि वर्कर्स वेतन और सुविधाएं न मिलने से असंतुष्ट नजर आते हैं। 

हरियाणा सरकार की ओर से महामारी अलर्ट-सुरक्षित हरियाणा हर सप्ताह बढ़ा दिया जाता है। आज ही गृहमंत्री अनिल विज ने कहा किसानों के मामले में कि कानून उनके लिए या सबके लिए बराबर है। साथ ही उन्होंने कोरोना की तीसरी लहर से बचने का आह्वान भी किया। 

विज साहब हरियाणा की जनता आपसे पूछना चाहती है कि सुरक्षित हरियाणा के प्रोटोकॉल या एसओपी केवल जनता के लिए है, सरकार और राजनैतिक दलों के लिए नहीं। मुख्यमंत्री के कार्यक्रम भी प्रोटोकॉल टूटता नजर आता है। उपमुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में भी प्रोटोकॉल कहीं नजर ही नहीं आता और इसका असर मंत्रियों और भाजपा संगठन पर भी पूरा दिखाई दे रहा है। वे भी कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे। जब कानून सबके लिए बराबर है तो आपने उन पर कोई कार्यवाही की? कार्यवाही की तो बात छोड़ो कोई नोटिस दिया? यह भी छोड़ो तो कोई निर्देश दिया कि मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मंत्री, पार्टी पदाधिकारी ये सभी जनता के लिए रोल मॉडल हैं, जनता इनका अनुकरण करती है और जब इन्हें प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते देखती है तो उनके दिमाग में क्या-क्या सवाल आएंगे, आप समझदार है स्वयं समझ सकते हैं।

लगता है सरकार ने हथियार डाल दिए हैं कि वह किसान आंदोलन और कोरोना के प्रभावों से निपट नहीं पा रही और इसीलिए वह जिस प्रकार चुनाव पूर्व लोक-लुभावन योजनाएं बनाई जाती हैं, वादे किए जाते हैं, अखबारों में विज्ञापन दिए जाते हैं, यही सब कुछ कर रही है। 

मुख्यमंत्री के भी बार-बार दिल्ली दौरे हो रहे हैं। साइबर युग में दो बात करने के लिए इस समय जब हरियाणा पूर्णतया: अव्यवस्थित है, ऐसे में मुख्यमंत्री के दौरे सवाल तो खड़े करते हैं। समझने की बात है कि जब वह प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलते हैं तो मेरा पानी-मेरी विरासत, बिजली या मुफ्त वैक्सीन अर्थात अपनी योजनाओं की तो बात करते नहीं होंगे, क्योंकि यह तो वह स्वयं करने में सक्षम हैं। बात करते होंगे तो अनुमान है कि किसान आंदोलन और पार्टी की स्थिति की करते होंगे, क्योंकि  कई स्थानों के भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार किसानों के साथ बोलने लगे हैं और पार्टी के वरिष्ठ नेता आदि चर्चा करने लगे हैं कि वोट तो जनता ने ही देना है और इस समय जनता प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार से कुपित नजर आ रही है। अत: अगला चुनाव हम कैसे जीत पाएंगे?

इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के आजाद होने के बाद ही हरियाणा की राजनीति में कुछ हलचल बढ़ी है और भाजपा के ही दिग्गज नेता चौ. बीरेंद्र सिंह ने किसान आंदोलन के आरंभ में ही कहा था कि यूपी और पंजाब चुनाव के समय किसान आंदोलन से राजनैतिक पार्टी निकलेगी, उनकी बात सत्य होती नजर आ रही है।

दुष्यंत चौटाला इस समय सरकार पर भारी नजर आ रहे हैं। उनके विभागों में घोटाले नजर आ रहे हैं लेकिन उनकी गंभीरता से जांच नहीं हो रही। शायद यह सरकार बचाने के लिए है। वास्तविकता क्या है यह तो मुख्यमंत्री अधिक भली प्रकार जानते हैं और शायद उन्हें यह लगता है कि हरियाणा में किसी समय भी सरकार पर संकट आ सकता है। अत: उसी की तैयारियों में वह लगातार लोक-लुभावन घोषणाएं और योजनाएं प्रस्तुत कर रहे हैं। अब आप स्वयं सोचिए कि क्या हरियाणा में मध्यवर्ती चुनाव संभव हैं?

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