क्या भाजपा में बेबस ‘राव राजा’ की हालत ‘कैद में बुलबुल’ जैसी ?

केंद्रीय मंत्रिमंडल में अहीरराजा का कद न बढ़ने पर मायूस  दरबारी।
मोदी ने एक बार फिर राव राजा को सौंपी गुमनाम से मंत्रालय की जिम्मेदारी ।
मंत्रालय को लेकर पहले भी कटाक्ष करते रहे हैं राव विरोधी ।
मोदी के “राजपथ” का आगाज हरियाणा के रेवाड़ी से ही हुआ था। 
हरियाणा की अनदेखी करना भाजपा के लिए ही नुकसान पहुंचाने का काम करेगा।
संगठन मजबूती को लेकर हो रही बैठक , आगामी चुनाव की तैयारियो में जुटा कमल ?

अशोक कुमार कौशिक 

अहीरवाल में एक सवाल बड़े जोरों से उफान पर है कि क्या 2014 रेवाड़ी की सैनिक रैली जिसने कमल के फूल की महक को चहुओर फैलाया की धमक अब गायब हो गई, या राव राजा के सियासी पांसे ही गलत पड़ गए थे? अक्सर ऐसा बहुत कम होता है जब सरकार में किसी मंत्री का रुतबा बढ़ा दिया जाए, लेकिन मंत्री समर्थक खुशी का इजहार तक नहीं कर पाएं। समर्थकों की यह चुप्पी क्या तूफान के आने की पूर्व की आहट है?

इस बार ऐसा ही हुआ है केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान अहीरवाल के राजा माने जाने वाले राव इंद्रजीत सिंह के साथ। जो न पचते बन रहा है न छूट ते। मंत्रिमंडल में रुतबा बढ़ने के नाम पर मोदी ने राव राजा इंद्रजीत सिंह को एक और विभाग की जिम्मेदारी तो सौंप दी, लेकिन इस गुमनाम से विभाग की जिम्मेदारी मिलने के बावजूद राव इंद्रजीत सिंह समर्थकों का उत्साह पूरी तरह गायब मिला। राव समर्थकों के लिए संतोषजनक बात यह है कि वह न सिर्फ अपना मंत्री पद बचाने में कामयाब रहे हैं, बल्कि रुतबा बढ़ने के नाम पर एक और विभाग की जिम्मेदारी संभालने के लायक बन गए हैं। राव के मंत्रालय को लेकर पहले ही अहीरवाल में उनके विरोधी लगातार कटाक्ष करते रहे हैं। एक और नए विभाग ने विरोधियों को एक बार फिर से राव पर वार करने का मौका प्रदान कर दिया है।

कांग्रेस में रहते हुए सीएम पद की हसरत पाले रखने वाले राव इंद्रजीत सिंह ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को अलविदा कहते हुए भाजपा का दामन थाम लिया था। मोदी लहर के चलते गुरुग्राम लोकसभा सीट से सांसद बनने वाले राव इंद्रजीत सिंह को केंद्र में राज्य मंत्री का पद मिला था। इसके बावजूद राव की नजरें लगातार प्रदेश के सीएम पद पर टिकी रही हैं।भाजपा के पास इस समय राव इंद्रजीत सिंह एक मजबूत अहीर नेता के रूप में मौजूद हैं, पर वह अभी अपने पिता राव बिरेंद्रसिंह की तरह राष्ट्रीय राजनीति और यादवो पर पकड़ नहीं बना पाए। शायद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी इसी वजह से उन्हें ज्यादा भाव देने के मूड में नजर नहीं आ रहा। 

गत लोकसभा चुनाव में एक बार फिर राव इंद्रजीत सिंह ने गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र से जीत तो हासिल कर ली, लेकिन केंद्र में वह मजबूत रुतबा हासिल करने में पूरी तरह फेल साबित हुए हैं। इन चुनावों के बाद ही उनके समर्थकों को इस बात की उम्मीद थी कि कम से कम उन्हें इस बार कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलेगा, लेकिन भाजपा हाईकमान ने उन्हें नाम मात्र का राज्यमंत्री ही बनाए रखा है। अभी तक राव को सांख्यिकीय और योजना क्रियान्वयन विभाग दिए गए थे, जिन्हें खास नहीं माना जाता। इन विभागों के बारे में आम लोगों को विशेष जानकारी तक नहीं है। यही कारण है कि राव विरोधी बार-बार उनके मंत्रालय को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। इस बार हुए मंत्रिमंडल विस्तार में राव को इसी तरह का एक और विभाग सौंपा गया है। कहने को तो इससे राव का बढ़ा हुआ रुतबा करार दिया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि इससे राव समर्थक काफी निराश नजर आ रहे हैं। उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि कम से राव को इस बार कैबिनेट मंत्री जरूर बनाया जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ।

सूत्र बताते हैं कि राव की काट तैयार करने के साथ साथ यूपी में चुनावो के मद्देनजर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान से राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव को ज्यादा तवज्जो देना शुरू कर दिया है। उन्हें हाल ही में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। भूपेंद्र यादव मूल रूप से अहीरवाल के ही गुरुग्राम जिले से संबंध रखते हैं। हालांकि जनाधार के मामले में अहीरवाल क्षेत्र में भूपेंद्र यादव के हाथ लगभग खाली हैं, पर राजस्थान में उनका काम अनुकरणीय है। कहने को भूपेंद्र यादव को राजस्थान के लिए तैयार किया जा रहा है। परंतु इसके बावजूद भाजपा ने राव को हाशिए पर लाने के लिए भूपेंद्र को आगे बढ़ाने की चर्चा भी जोरो पर है। पर भूपेंद्र यादव को मंत्री बनकर उन्होंने यादव समाज को जो मजबूती दी है कि अभी एकाध महीना खाना न मिले तब भी चलेगा।

वैसे उत्तर प्रदेश से सटे हरियाणा , राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश के यादव ज़्यादातर भाजपा के वोटर हैं। मध्य प्रदेश में अरुण यादव की वजह से यादवों का बड़ा वोट कांग्रेस को मिला था जिसका पिछले चुनाव में कांग्रेस को फ़ायदा भी हुआ था। वैसे कभी दक्षिणी हरियाणा के अहीर राजा राव बिरेंदर सिंह, राम नरेश यादव आदि कांग्रेस के बड़े नेता थे जो यादवों में प्रभावशाली माने जाते थे।

बिहार में नित्यानंद राय समेत कई मज़बूत यादव नेता भाजपा में है, इसलिए बिहार में भी यादवों की एक बड़ी तादाद भाजपा को वोट करती है। लेकिन फिर भी बिहार में यादवों के सबसे बड़े नेता लालू यादव ही है। इसलिए बिहार में भाजपा के मुक़ाबले राजद को ही यादवों के ज़्यादा वोट मिलते हैं । 

उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास कोई भी यादव नेता नहीं है इसलिए उत्तर प्रदेश का यादव वोटर समाजवादी के साथ ही जुड़ा हुआ है । कुछ ( जिनकी तादाद काफ़ी कम है ) यादव हिंदुत्व के कारण या फिर प्रत्याशी के कारण समाजवादी छोड़कर भाजपा , बसपा और कांग्रेस को वोट करते हैं । भाजपा अहीरवाल के राव राजा इंदरजीत सिंह को लेकर दिल्ली और उत्तर प्रदेश में यादवों को लुभा सकती थी पर अब यह भविष्य के गर्त में है।

सोशल मीडिया पर हंगामा काटने वाले लोग एक अजेंडा के तहत ज़बर्दस्ती उत्तर प्रदेश के यादवों को संघी बनाने पर तुले हैं जबकि हक़ीक़त यह है कि भाजपा उत्तर प्रदेश में यादवों के ख़िलाफ़ दूसरी पिछड़ी जातियों को गोलबंद करके चुनाव लड़ती है । 2017 के चुनाव में अलीगढ़ में अमित शाह मंच से बोल चुके है कि लैप्टॉप एक विशेष जाति और एक विशेष धर्म के छात्रों को बाँटे गए हैं । 

सच्चाई यही है , बाक़ी आप जो चाहे वो समझने के लिए आज़ाद है । समाज इस मजबूती के लिए मोदी का आभारी रहेगा और आने वाले यूपी चुनाव में वोट देकर मोदी को भी मजबूत फील कराएगा।

समूचे अहीरवाल क्षेत्र में अपने मजबूत जनाधार के दम पर राव गत दोनों विधानसभा चुनावों के दौरान टिकटों का निर्धारण करने में अग्रणी भूमिका में रहे थे। राव की जिद के कारण गत विधानसभा चुनाव में भाजपा के कुछ सीटिंग एमएलए भी पार्टी की टिकट से वंचित रह गए थे। इस समय भाजपा हाईकमान की ओर से राव को एक तरह से दरकिनार किए जाने के प्रयास लगातार जारी हैं।

मंत्रिमंडल विस्तार के बाद जहां कुछ नेताओं को अपने पद से हाथ धोना पड़ा तो कई छुपे हुए चेहरे मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सामने आए तो वहीं दक्षिण हरियाणा की राजनीति में भूचाल आ गया | दक्षिण हरियाणा में बड़ा प्रभुत्व रखने वाले बड़े नेताओं को झुनझुना दे अब पार्टी ने अपने दिव्यास्त्रों का  प्रयोग शुरु कर दिया है। पहली बार भाजपा सत्ता में आई उस समय संपूर्ण बहुमत था, सरकार अच्छे से चली। लेकिन दूसरी बात गठबंधन की सरकार बनाने के साथ साथ ही बीजेपी ने पार्टी को हरियाणा में मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी हैं । संगठन में राव राजा के विरोधियों को ज्यादा तवज्जो दी गई और उनके समर्थकों को मायूसी हाथ लगी। हरियाणा को मजबूत रखकर ही भाजपा केंद्र में मजबूत हो सकती है। मोदी के “राजपथ” का आगाज हरियाणा के रेवाड़ी से ही हुआ था। ऐसे में हरियाणा की अनदेखी करना भाजपा और मोदी दोनों के लिए ही नुकसान पहुंचाने का काम करेगा।

किसान आंदोलन को लेकर जैसे ही हरियाणा में बीजेपी की किरकिरी शुरू हुई बीजेपी ने भी अपना संगठन मजबूती कार्यक्रम शुरु किया। पर अभी भी जाट मतदाता भाजपा के साथ जूता दिखाई नहीं दे रहा उल्टा अहिरवाल के राव राजा की उपेक्षा यादवों को भी नाराज न कर दे।  राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार यह भी गर्म है कि बीजेपी चाहती है कि वह हर जिले में अपना एक विकल्प रखें ताकि समय आने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। मंत्रिमंडल में किया गया एक बड़ा बदलाव अहम नजर आ रहा है वहीं मुख्यमंत्री भी जिला महेंद्रगढ़ में विकास पुरुष विधायक को तवज्जो दे रहे है। जिसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि केंद्र व प्रदेश के नेताओं को साथ ले बीजेपी दक्षिणी हरियाणा में कुछ बड़ा करने जा रही है। भाजपा की यह रणनीति कितनी कारगर रहेगी भविष्य ही तय करेंगा।

भाजपा में राव की हालत ‘कैद में बुलबुल’ की तरह नजर आने लगी है। वह अब भाजपा के खिलाफ विद्रोह की स्थिति में भी नहीं हैं। तमाम हालातों को देखते हुए राव फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं। यह बात जरूर है कि अगर भाजपा हाईकमान की ओर से राव के प्रति इसी तरह का रवैया अपनाया जाता रहा, तो आने वाले चुनावों से पहले वह अहीरवाल क्षेत्र में भाजपा को बड़ा झटका देने में संकोच नहीं करेंगे। अगर वह भाजपा को झटक देते हैं तो जाटों के बाद यादव वोट भी भाजपा से छिटक जाएगा।

 देखना यह होगा कि आने वाले समय में अहीरवाल के राजा की अगली रणनीति क्या होगी।

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