धनखड़ की कोशिश

कुछ काम जब हो रहे होते हैं,उनका सृजन हो रहा होता है तो तब ये अहसास नहीं होता कि इनका असर कितना विराट और कितना व्यापक हो सकता है। जैसे कि हरियाणा भाजपा की कार्यकारिणी। प्रदेश भाजपा में 306 मंडल हैं। हर मंडल में करीब 100 पदाधिकारी हैं। इस लिहाज से पदाधिकारियों की संख्या बन गई 30 हजार,600। इन सारे पदाधिकारियों की एक मीटिंग कर ली जाए तो ये मीटिंग, मीटिंग न होकर रैली में तबदील हो जाएगी। और अगर इन सिर्फ पदाधिकारियों को ये ही कह दिया जाए कि हर एक को अपने साथ कम से कम 10 लोग लेकर आने हैं तो आने वालों की संख्या हो जाएगी तीन लाख, छह हजार। इतने सारे लोग एक साथ अगर कहीं जुट जाएं तो ये हरियाणा की अब तक की बड़ी रैलियों में से एक होगी।

कुल मिला कर ये कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने पार्टी के समर्पित कार्यकर्त्ताओं को किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं एडजैस्ट करने की सफल कोशिश की है। उनको पार्टी संगठन में ओहदा देकर उनको फीत लगवा दी है। धनखड़ मानते हैं कि उनकी असली चुनौती अब ये है कि वो इन सब पदाधिकारियों की इच्छा और सुविधा के अनुसार इनसे संगठन का काम ले पाएं। पार्टी को मजबूती दे पाएं। अगर वो ऐसा करने में सफल हो गए तो ही उनका अध्यक्ष बनना सार्थक सिद्ध होगा।

विदाई समारोह

कुछ लोग एक जगह से दूसरी जगह चले तो जाते हैं,लेकिन हर जगह-हर स्थान पर अपने कदमों के निशां छोड़ जाते हैं। 1987 बैच के हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी त्रिलोकचंद गुप्ता के सचिवालय में आयोजित विदाई समारोह में एक साथ ऐसी ही कई भूली बिसरी यादें ताजा हो गई। उनके साथ काम कर चुके अफसरों ने उनके बारे में-उनके जोशीले अंदाज-उनके जूनूनी स्वभाव के बारे में कई तरह के किस्से बयान किए। यंू तो ये काम उनकी रिटायरमेंट से कई दिन पहले ही शुरू हो गया था। आईएएस अफसरों के व्हाटसअप ग्रुप पर इसकी शुरूआत हुई जिसमें गुप्ता के बारे में भांति भांति के विचार पेश किए गए।

इसकी शुरूआत मोहम्मद शाइन से हुर्ई, जिन्होंने कई पन्ने लिख कर गुप्ता के साथ काम करने के अपने मिश्रित अनुभवों को सांझा किया। गुप्ता के साथ छत्तीस का आकंड़ा रखने वाले एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने भी अपने चिरपरिचित अंदाज में अपनी राय का इजहार किया। अपने विदाई समारोह में गुप्ता ने कई अफसरों को याद किया। इनमें सुशील कुमार,दीपेंद्र सिंह ढेसी, के.के. खंडेलवाल, धनपत सिंह आदि आईएएस अधिकारियों का उनके कैरियर को परवान चढाने में दिए गए योगदान के प्रति उनका आभार प्रकट किया गया।

एक अन्य अधिकारी जिनको विशेष तौर पर गुप्ता ने याद किया वो थे मुख्यमंत्री मनोहरलाल के अभूतपूर्व प्रधान सचिव राजेश खुल्लर। खुल्लर इन दिनों वर्ल्ड बैंक में अपनी सेवाएं देने के लिए अमेरिका में हैं। गुप्ता ने कहा कि जब उनकी गाड़ी पटरी से उतरी हुई थी तो खुल्लर ने इसे पटरी पर चढाने में विशेष भूमिका निभाई। ये वास्तव में खुल्लर ही थे जिन्होंने मुख्यमंत्री को बताया कि ये काम करने वाले अधिकारी हैं और इनसे काम लिया जाना चाहिए। ये ठीक है कि बाद में मुख्यमंत्री भी गुप्ता की कार्यशैली के कायल हो गए। ये भी उतना ही सच है कि अगर खुल्लर पहलकदमी ना करते तो शायद गुप्ता को सरकार में उचित मान सम्मान ना मिलता। जब खुल्लर को ये पता लगा कि गुप्ता ने अपनी विदाई पार्टी में खास तौर पर उनका जिक्र किया है तो उन्होंने अमेरिका से फोन करके उनका आभार जताया।

गुप्ता की रिटायरमेंट की पार्टी की यंू भी खास रही कि इसमें उनकी पत्नी डा.उषा गुप्ता को भी मुख्य सचिव विजय वर्धन ने आमंत्रित किया था। इस से पहले ऐसी परंपरा नहीं थी। ये भी तय किया गया कि भविष्य में आईएएस अफसरों की रिटायरमेंट पर होने वाले इस तरह के विदाई समारोह में उनके पति या पत्नी और बच्चों को भी आमंत्रित किया जाया करेगा। सरकार ने विदाई के बाद भी गुप्ता को विदा नहीं किया है। रिटायर होकर भी वो एक तरह से रिटायर नहीं हुए हैं। उनको राइट टू सर्विस कमीशन का मुखिया बना दिया गया है। इस कमीशन में आते ही उन्होंने फरीदाबाद,पंचकूला,गुड़गांव-वन और गुड़गांव-टू के एचएसवीपी के संपदा अधिकारियों को तलब कर लिया है। उनको बिल्डिंग प्लान की पासिंग में हो रही अनावश्यक देरी पर जवाब देने को कहा गया है। एचएसवीपी के बाद गुप्ता के निशाने पर अगला विभाग पावर हो सकता है। गुप्ता के फिर से पावर में आने से कईयों को करंट लग सकता है। शायद इसी तरह के ही विदाई समारोहों के लिए हसन कमाल ने बहुत ही उम्दा लिखा है:

अभी अलविदा मत कहो दोस्तों
न जाने कहां फिर मुलाकात होगी
क्योंकि.. बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी
ख्वाबों ही में हो चाहे मुलाकात तो होगी
ये प्यार में डूबी हुई रंगीन फजाएं
ये चेहरे,ये नजरें,ये जवां रूत, ये हवायें
हम जाएं कहीं इनकी महक साथ तो होगी
फूलों की तरह दिल में बसाये हुए रखना
यादों के चरागों को जलाये हुए रखना
लंबा है सफर इसमें कहीं रात तो होगी
ये साथ गुजारे हुए लम्हात की दौलत
जज्बात की दौलत,ये ख्यालात की दौलत
कुछ पास ना हो पास ये सौगात तो होगी

दे दनादन

कई राज्यों में विधानसभा चुनाव निपटने के बाद तेल कंपनियां फिर से जनता का तेल निकालने के अपने परंपरागत धंधे में जुट गई हैं। यंू तो इन तेल कंपनियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण नहीं बताया जाता,लेकिन इनको चलाने वाले लोग इतने होशियार हैं कि उनको पता है कि चुनाव के दौरान तेल के दाम बढाने से सत्तारूढ पक्ष को नुकसान हो सकता है,लिहाजा वो इस दौरान दाम नहीं बढाते। ये जरूर है कि वोटिंग होने के बाद से ही वो अपनी अगली-पिछली सारी कसर पूरी करने के लिए खुद को झौंके हुए हैं। इन कंपनियों को ये भी पता है कि यूपी,पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में अगले बरस की शुरूआत में चुनाव होने हैं। इन पांच राज्यों में पंजाब के अलावा सब में भाजपा की सरकारें हैं। ऐसे में इन तेल कंपनियों के पास समय बहुत कम और काम बहोत ज्यादा है। इसलिए ये बिना समय गंवाए दनादन कमाई में लगी हुई हैं। खैर इन कंपनियों को तो क्या ही कहें अब?

इन पर तो किसी का नियंत्रण नहीं,पर ये जो अपनी सरकार है ये क्या कर रही है? इसने भी आपदा को अवसर के तौर पर लिया है। जब कोरोना की दूसरी लहर करीब करीब लुप्त होने की कगार पर है तब जाकर सरकार ने कोरोना के इलाज में काम आने वाली दवाईयों और उपकरणों पर टैक्स कम करने की औपचारिकता निभाई है। अब जब निजी हस्पतालों को लगा कि सरकार खुद ही खुल कर लूटने में लगी हुई है-खून चूसने में लगी हुई है तो उन्होंने भी कोरोना में जम कर माल बनाया। मरीजों के इलाज के नाम पर जमकर चूना लगाया। आए दिन अखबारों में ये खबरें आम हैं कि फलां हस्पताल वाले ने मरीज से इतने लाख का ज्यादा बिल वसूला। सरकार खुद तो चलो जो कर रही है करती रहे,उस से हमें रहम की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए, लेकिन कम से कम वो ये तो व्यवस्था बना ही सकती है कि निजी हस्पताल वाले डाक्टर कसाई न बन सकें। वो मरीजों से ज्यादा बिल न वसूल सकें। बहोत से मरीजों और उनके तीमरदारों को तो ये जानकारी ही नहीं हो पाती कि इन हस्पतालों में किस तरह से इलाज के नाम पर उनसे ठगी की जाती है। उनकी जेब काटी जाती है। क्या इन हस्पतालों पर शिंकजा नहीं कसा जाना चाहिए? किसी एक ही हस्पताल का अगर सरकार ठीक से इलाज करने की जहमत उठा ले तो इलाज के नाम पर मरीजों की लूट एक झटके में बंद हो जाएगी। बाकियों की अक्ल ठिकाने आ जाएगी।

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