हमारा मोनो भले ही चिड़िया वाला हो, मगर हमारा कलेजा चिड़िया वाला नहीं।ट्विटर का मोनो चिड़िया है तो कू ने भी एक चिड़िया को अपना मोनो बना लिया। अशोक कुमार कौशिक सिर्फ देश में लगभग दो करोड़ लोग ही ट्विटर पर है। कौन सी परेशानी हो गई जो एक मंत्री का ट्विटर एकाउंट बंद हो गया। नोटबंदी में लाखों लोगों को असुविधा हुई। करोना महामारी में लाखों लोगों को तकलीफ हुई, जान से हाथ धोया बिना दवाई, ऑक्सिजन,वैनटिलेटर बिस्तर, इत्यादि साधनों के अभाव को झेला लेकिन अधिकांश मीडिया, भक्तों ने सिर्फ मोदी सरकार की चापलूसी ही की इतनी हाय तौबा नहीं मचाई जितनी एक मंत्री महोदय के ट्विटर एकाउंट को बंद होने पर मची है। सरकार ट्विटर को देश से ही बंद कर दो। कौन यह बहुत जरुरी है मगर सरकार यह आप नहीं कर सकते । एक तरफ तो भारत सरकार की ट्विटर से तनातनी है दूसरी तरफ ट्विटर भी चाहिए। यह इत्तेफाक नहीं हो सकता कि आज ही हाईकोर्ट ने ट्विटर के अधिकारी के पक्ष में आदेश देकर कहा है कि ट्विटर के अधिकारी को सरकार परेशान नहीं कर सकती। जो भी पूछताछ करनी है वो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हो सकती है और उसे सदेह थाने बुलाना कोई ज़रूरी नहीं है और आज ही ट्विटर ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का ट्विटर अकाउंट एक घण्टे के लिए बन्द कर दिया। ज़ाहिर है कि लोगों को थाने तलब करके उन्हें परेशान करने की सरकारी तरकीब की काट ट्वीटर ने अदालत जाकर निकाली है। ट्विटर के खिलाफ कानून मंत्री रविशंकर ही सबसे ज्यादा मुखर रहते हैं और रविशंकर का अकाउंट एक घंटे के लिए बंद करके ट्विटर ने वो ट्विट किया है जिसे पढ़ कर लोग हंस रहे हैं। ट्विटर इस तरह यह कह रहा है कि हमारा मोनो भले ही चिड़िया वाला हो, मगर हमारा कलेजा चिड़िया वाला नहीं है और आप जैसे चिरकुट नेताओं को हम यथास्थान रखते हैं। रविशंकर प्रसाद ने अब तक जितनी प्रेस कॉन्फ्रेंस टीवी कैमरों के सामने आकर की और जितनी बड़ी बड़ी बातें ट्विटर के खिलाफ कीं, उन सबका जवाब ट्विटर ने एक घंटे के लिए उनका अकाउंट बंद करके दे दिया। लोग बस कल्पना कर रहे होंगे कि जब ट्विटर ने रविशंकर प्रसाद का एकाउंट बंद कर दिया तो उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या रही होगी? मन ही मन उन्होंने ट्विटर को गालियां दी होंगी? दांत पीसे होंगे? नथुने फुलाए होंगे और इतने फुलाए होंगे कि नाक के दोनों छेदों में एक एक चिड़िया घुस जाए। इससे पहले ट्विटर आरएसएस और भाजपा के बड़े नेताओं के ट्विटर एकाउंट से नीले टिक हटा चुका है। संबित पात्रा और भाजपा आईटी सेल के अमित मालवीय को झूठा और मक्कार साबित कर चुका है। इससे खफा होकर जब जब भी भाजपा ने ट्विटर पर कोई कार्रवाई करने की कोशिश की है ट्विटर ने जवाब अपने ढंग से दिया है। रविशंकर प्रसाद का एकाउंट एक घंटे बंद करके ट्विटर ने रविशंकर प्रसाद को हास्यास्पद बना दिया है। सबसे बुरा है अपने दुश्मन का मज़ाक उड़ाना, उसे हास्यास्पद कर के दिखाना। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद जाओ तुम्हारा एकाउंट एक घंटे के लिए बंद कर दिया। अब जो कानूनी कार्रवाई करनी हो करो। हो सके तो ट्विटर के खिलाफ नथुने फुला कर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस और कर डालो। कू पर थू है किसी भी प्रोडक्ट की ब्रांडिंग या प्रचार कैसा नहीं होना चाहिए, इसकी एक मिसाल कू है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कू पर जाकर ट्विटर के खिलाफ शिकायतें कीं। कू को सरकार समर्थित एप बताया जा रहा है और उसका प्रचार भी सरकार समर्थक सेलिब्रेटी कर रहे हैं। इससे ज्यादा गलत किसी धंधे के लिए और क्या हो सकता है कि वो एक पार्टी के साथ खड़ा दिखाई दे और दूसरी पार्टी के खिलाफ। सो भी ऐसे समय पर जब सोशल मीडिया पर उस पार्टी की बैंड बजी पड़ी हो? अगर कू इतना ही बेहतर है तो भाजपा और संघ के सभी बड़े लोग ट्विटर से अपना अकाउंट बंद क्यों नहीं कर देते? नहीं करेंगे क्योंकि करोड़ों लोग ट्विटर से जुड़े हैं। ट्विटर ने सरकार से लड़ कर अपनी साख बढ़ा ली है जबकि वाट्सएप और फेसबुक ने सरकार की हां में हां मिलाकर अपनी विश्वसनीयता पर बट्टा लगा लिया है। कू की हालत तो सबसे खराब है। शुरू में ही यह सरकारी भोंपू घोषित हो गया बल्कि इसने खुशी खुशी भोंपू होना कबूल किया, बल्कि खुद सरकारी भोंपू होना चुना। कू को लालच यह था कि देश में उन्मादी तत्वों की सरकार है और देश में इन्हीं का बहुमत है। मगर जैसा कहते हैं चोर भी अपना साथी ईमानदार चाहता है इसी तरह उन्मादी लोग भी निष्पक्ष माध्यम चाहते हैं। अखबारों में स्वदेश नहीं चल पाया, संघ का पांचजन्य लोग नहीं मंगाते और मंगाते हैं तो उसकी बातों पर भरोसा नहीं करते। आर्गेनाइजर और अन्य पार्टियों के मुखपत्र की भी यही दशा है। मुंबई में सामना शिवसेना का मुखपत्र अकेला ऐसा अखबार है जो पार्टी का मुखपत्र होकर भी लोकप्रिय है, क्योंकि उसे लोग शिवसेना का रुख जानने के लिए पढ़ते हैं। कू की दशा यह है कि उसने गलत समय पर सरकार की चाकरी की है। देश के ज्यादातर लोग अब सरकार से नाराज हैं। नेताओं और मंत्रियों के आव्हान के बाद भी ज्यादा लोग कू पर नहीं आए हैं। जो आ भी गए हैं वो ट्विटर ज्यादा देखते हैं कू नहीं। कू में इतनी भी क्रिएटिविटी नहीं कि अपना मोनो ही ट्विटर से कुछ अलग बना लेता। ट्विटर का मोनो चिड़िया है तो इसने भी एक चिड़िया को अपना मोनो बना लिया। इतना तो दिमाग लगाना था की चिड़िया की बजाए तोते को मोनो बना लेते। मगर इरादा ही नकल का था। Post navigation नही भूलना चाहिए कि देश में लोकतांत्रिक सरकार मोदीजी के नेतृत्व में काम कर रही है : विद्रोही काले दिन और अच्छे दिन,,,?