अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा ‘साहित्यकार से संवाद’…….

डॉ. योगेश वासिष्ठ (महामन्त्री, हरियाणा प्रान्त)

गुरुग्राम – अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा ‘साहित्यकार से संवाद’ शृंखला में रविवार दिनांक 20.06.21 सायं को परिषद की गुरुग्राम इकाई की सदस्य, व्यास सम्मान से विभूषित, प्रसिद्ध कथाकार श्रीमती चन्द्रकान्ता से साक्षात्कार सम्पन्न हुआ। भोपाल से श्री अरविन्द कुमार ने सरस्वती वन्दना से इसे प्रारम्भ किया व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. सुशील चन्द्र त्रिवेदी ने आयोजन की दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए चन्द्रकान्ता जी का स्वागत किया।

श्रीमती चन्द्रकान्ता ने बतलाया कि कश्मीरी भाषा मेरी माँ है तो हिन्दी नानी है। उनके पिता रामचंद्र पंडित कश्मीर के प्रसिद्ध विद्वान, वैयाकरण व अंग्रेज़ी भाषा के प्रोफ़ेसर थे। उनकी माँ अधिक पढ़ी-लिखी नहीं थी, बीमार रहती थी, पर स्वाभिमानी थी। उनके लिए पति व बच्चे ही उनका घर संसार था। उन्होंने एक प्रसंग सुनाया, जब उनके पिता ने घर के बँटवारे में माँ की न मानने पर बाद में उनसे हार स्वीकार की। पिता का उनसे प्रेम विवाह हुआ था, वे उनका खूब ख़याल रखते थे, पर माँ का लगभग तीस वर्ष की अवस्था में ही निधन हो गया; जब वे मात्र 7-8 साल की थीं।

लेखिका ने बतलाया कि उनका घर के काम-काज में मन नहीं लगता था। वे बचपन से ही पिता के पुस्तकालय में जाकर पढ़ती थीं। उन्होंने कश्मीर में 25 वर्ष बिताए, फिर 13 वर्ष हैदराबाद, 6 वर्ष भुवनेश्वर रही। दिल्ली में भी उनका रहना हुआ और अब पिछले 30 सालों से गुरुग्राम में रह रही हैं।

उन्होंने अपने बचपन को याद कर कहा कि उनके घर के पास बने गणेश मन्दिर में एक बीमार स्त्री आती थी। कोई उसकी मदद करता तो वह ‘स्वस्थ रहो’ का आशीर्वाद देती थी। उस पर ही उन्होंने पहली कहानी लिखी- रोगिणी। उनकी 1967 में ‘खून के रेशे’ कहानी उस वक़्त की प्रसिद्ध पत्रिका ‘कल्पना’ में प्रकाशित हुई। उन्होंने कहा कि कश्मीर में सात बार विस्थापन हुआ है। इस कारण कश्मीरी सब कहीं फैले हैं। वे अपने जीवन काल में ही 1948 के क़बायली आक्रमण व तीस साल पहले सांप्रदायिक आधार पर हुए विस्थापन की साक्षी रही हैं। उन्हें राजनीति की दुधारी चालें समझ नहीं आती पर वे मानती हैं कि आज़ादी के बाद नेहरू जी का कश्मीर के सम्बन्ध में निर्णय ठीक नहीं था। प्रधानमंत्री मोदी के धारा 370 हटाने के साहसिक निर्णय की उन्होंने प्रशंसा की।

सूफ़ी सन्तों ने देवताओं की स्तुति की थी पर सांप्रदायिकता की आग में अब वह आपसी प्रेम झुलस गया है। उन्होंने अपने वृहद् उपन्यास ‘कथा सतीसर’ में 1931 से सत्तर सालों के कश्मीर का चित्रण किया है। उनका एक और उपन्यास ‘समय अश्व बेलगाम’ राजकमल के पास प्रकाशनाधीन है, जिसमें कश्मीर ही नहीं पूरे भारत का चित्रण है क्योंकि वे भारतीय ही हैं।

रूपा, अशोक कुमार, मांडवी सिंह, नीलम जोशी, प्रवीण गुगनानी, आरती पुंडीर ने उनसे प्रश्न किए तो वे बोली कि कश्मीर में जो कुछ पिछले तीस वर्षों में हुआ, वह राष्ट्र के लिए लज्जा का विषय है। शुरुआत में तो अनेक प्रकाशन, पत्र पत्रिकाएँ यह छापना भी नहीं चाहते थे। उनके अनुसार स्त्री देवी नहीं, वह भी हाड़ माँस की पुतली है।

हरियाणा प्रान्तीय उपाध्यक्ष रामधन शर्मा ने एक महान कश्मीरी विदुषी से कश्मीर का यथार्थ जानने पर तो कोषाध्यक्ष हरीन्द्र यादव ने अपने गुरुग्राम से सम्बद्धता के कारण उन्हें सुनकर प्रसन्नता व्यक्त की। महामंत्री डॉ. योगेश वासिष्ठ ने उनके वक्तव्य के लिए केन्द्रीय परिषद का हरियाणा प्रान्तीय परिषद की ओर से आभार प्रकट किया।

इस प्रान्त की ओर से डॉ. पूर्णमल गौड़ (मार्गदर्शक), रमेश चन्द्र शर्मा (का. अध्यक्ष), महेन्द्र सिंगला (पलवल), कृष्ण लता यादव,(गुरुग्राम), दर्शन शर्मा (रेवाड़ी), शशि धमीजा (अम्बाला) आदि ने सहभागिता की।

राष्ट्रीय संगठन मन्त्री श्रीधर पराड़कर, महामंत्री ऋषि कुमार मिश्र सहित प्रवीण आर्य, सर्वेश पाण्डेय, पवनपुत्र बादल, साधना बलवटे, रीता सिंह, नीलम राठी, इन्दु शेखर, नारायण नायक, जनार्दन यादव, चन्द्रिका प्रसाद मिश्र, महेश चन्द्र दिवाकर, प्रवीण देशमुख, केशव शर्मा, कलाधर आर्य, अवधेश झा, अलमेलु कृष्णन, रोचना भारती, विद्या चटको आदि की गूगल मीट पर उपस्थिति रही तो अनेक श्रोता फ़ेसबुक पर भी सहभागी रहे।

डॉ. दिनेश प्रताप सिंह द्वारा संचालित इस कार्यक्रम की समाप्ति पर अरविन्द शाह ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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