सचिन पायलट खुद ही सीएम की कुर्सी से दूर जा रहे है।
 कैबिनेट में 9 वैकेंसी-6 चाहते हैं पायलट, एडजस्टमेंट पर आलाकमान का मंथन।
चतूर गहलोत फिर से पायलट पर हावी, सचिन समझ नही पा रहे करे तो क्या ?
सचिन का महासचिव पद लेने से इंकार, लेकिन कांग्रेस चाहती है कि वे केंद्र की राजनीति में सक्रिय हों ।

अशोक कुमार कौशिक 

अशोक गहलोत के मंत्रिमंडल में 9 पद खाली हैं. इन पदों पर सचिन खेमे के अलावा 18 निर्दलीय और बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों की भी नजर है। कांग्रेस पार्टी किसी को भी नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती।

राजस्थान कांग्रेस के संकट को निपटाना चाहता है नेतृत्व पायलट को कांग्रेस में बड़ा पद देने की पेशकश हो सकती है। राजस्थान में खाली पड़े मंत्री पदों पर पायलट की नजर सचिन पायलट पिछले 2 दिन से दिल्ली में हैं। कांग्रेस पार्टी उनकी मांगों को लेकर अभी मंथन मोड में नजर आ रही है। जितिन प्रसाद के जाने के बाद पार्टी हाईकमान पर राजस्थान की रार को सुलझाने की चुनौती आ खड़ी हुई है।

अशोक गहलोत के मंत्रिमंडल में 9 पद खाली हैं. इन पदों पर सचिन खेमे के अलावा 18 निर्दलीय और बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों की भी नजर है। कांग्रेस पार्टी किसी को भी नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती।

सूत्रों के मुताबिक सभी गुटों को संतुष्ट करना आसान नहीं और उसके लिए फार्मूला तलाशा जा रहा है। कई ऐसे विधायक भी हैं जो 6-7 बार जीत चुके हैं उनकी भावनाओं को ठेस ना पहुंचे इस पर भी विचार विमर्श हो रहा है।

सचिन-पायलट और अशोक गहलोत के बीच चल रहे वर्चस्व के विवाद को सुलझाने की कमान अब खुद सोनिया गांधी ने अपने हाथ में ले ली है। सचिन पायलट जल्द ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से भी मुलाकात करने वाले हैं।

सूत्रों के मुताबिक सचिन पायलट 9 में से लगभग 6-7 मंत्री पद चाहते हैं। सचिन चाहते हैं कि उनके विधायकों की अनदेखी ना हो और उनको राजस्थान सरकार में एडजस्ट किया जाए।

सचिन को कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन में कोई बड़ा पद मिल सकता है, उनको महासचिव भी बनाया जा सकता है। हालांकि सचिन ने यह साफ कह दिया है कि सबसे पहले उनके खेमे के विधायकों के साथ हो रहा बुरा बर्ताव और अनदेखी खत्म हो।

ऐसा भी बताया जा रहा है कि पायलट ने संगठन में महासचिव पद लेने से इंकार कर दिया है। लेकिन कांग्रेस चाहती है कि वे दिल्ली आकर केंद्र की राजनीति में सक्रिय हों ताकि राजस्थान सरकार का संकट टल सके।

पायलट डाल-डाल गहलोत पात-पात

राजस्थान की राजनीति इस बार फिर से एक बार उफान पर है । पिछले एक साल से शांत बैठा पायलट गुट मौके की नजाकत देखकर आलाकमान पर दबाव बना रहा है | पायलट गुट का मानना की उनको भी सरकार मे भागीदारी मिलें और सियासी नियुक्तियाँ व मंत्रीमंडल में उनको भी जगह मिले ।

अभी राजस्थान 30 मे से 9 मंत्रीपद खाली है । पायलट गुट 7-8 पद लेने का दबाव बना रहा लेकिन गहलोत 3-4 से ज्यादा देने को तैयार नही है । उनका मानना है की पिछले बार संकट के समय साथ देने वाले निर्देलीय व बीएसपी से आये विधायको को मौका मिले, ना की उनको ज्यादा जिन्होने सरकार को संकट मे डाला था ।

इधर पायलट गुट मुखुर होकर लगातार बयानबाजी कर रहा है और अपनी सरकार के खिलाफ मौर्चा खोल रखा है। तो इधर सियासत के जादूगर गहलोत ने निर्देलीय व बीएसपी से आये विधायको को आगे कर दिया। वो चुपचाप बैठकर सारा खेल देख रहे है । इधर पायलट गुट सवाल करते इधर इनका जवाब यह विधायक देते ।

पायलट के पिछले बार 19 विधायक साथ थे इस बार आधे ही रह गयें। चतूर गहलोत इस बार फिर से पायलट पर हावी होते दिख रहें। सचिन अब बिल्कूल समझ नही पा रहे करे तो क्या ?

सचिन पायलट खुद ही सीएम कुर्सी से दूर जा रहे है।

जिस गति से कोरोनो की दूसरी लहर ढलान पर है ठीक उसी गति से राजस्थान की सियासत उफान पर है। एकाध नहीं वर्तमान में अनेकों ऐसे उदाहरण है जो वंशवाद की राजनीति की नाबालिग उपज के कारण कांग्रेस को बुरे देखने पड़े है। 

मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उत्तर प्रदेश में जतिन प्रसाद की राह पर सचिन पायलट भी है। यह अलग बात है कि सचिन पायलट अपने 19 सदस्यीय बिखरते कुनबे और अशोक गहलोत के राजनीतिक चातुर्य के आगे सचिन पायलट बेबस नजर आ रहे हैं।
सचिन पायलट को इस बात का भी आभास है कि यदि वह सिंधिया और जितिन प्रसाद की राह पर चलते हुए भाजपा में चले भी गए तो भी उनकी मुख्यमंत्री बनने की मुराद कभी पूरी नहीं हो सकती क्योंकि वसुंधरा राजे सिंधिया के बाद भी भारतीय जनता पार्टी में ऐसे अनेकों नेता है जो अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।

इस कार्यकाल के बाद संभवतः सचिन पायलट कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री की रेस में अकेले रेसर होते परंतु विधानसभा चुनाव परिणाम आने के दिन से ही सचिन पायलट अशोक गहलोत को अपना बॉस मानने को तैयार नहीं थे। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने सत्ता और संगठन को दो अलग-अलग धुरियों के रूप में स्थापित करना चाहा।

आखिरकार अशोक गहलोत ने उन्हें वही लाकर पटक दिया जहां से सचिन पायलट चले थे। यकीनन रोज-रोज नए-नए संकट पैदा करके सचिन पायलट खुद अपनी राह में रोड़े अटका रहे है।

सचिन पायलट यदि काले नाग से पंगा लिया होता तो तंत्र मंत्र या डॉक्टरी इलाज से फायदा मिल सकता था लेकिन आपने अशोक गहलोत से पंगा लिया है धैर्य से काम नहीं लिया तो वह आपको आडवाणी बनाकर छोड़ेंगे।

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