भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आज निगम से विज्ञप्ति आई कि निगमायुक्त निगम की मेयर से शिष्टाचार भेंट करने उनके निवास पर गए। दिमाग में कौंधा कि आज एक सप्ताह हो गया नए निगमायुक्त को कार्यभार संभाले और वह ताबड़तोड़ निगम के हर विभाग की मीटिंगें ले रहे हैं निगम की पूर्व कार्यशैली जांचने और नई कार्यशैली तय करने के लिए। बड़ा अजीब सा लगा कि एक सप्ताह नवनियुक्त निगमायुक्त को कार्य करते हो गया और निगम मेयर की उनसे मुलाकात भी नहीं हुई, जबकि मेयर का अलग से कार्यालय नगर निगम में भी है और वहां अकसर उनके दोनों पुत्र भी देखें जाते हैं तथा इतनी महत्वपूर्ण सभी विभागों की मीटिंग में मेयर की अनुपस्थिति सवाल तो खड़ी करती है।

याद आती है दिवंगत पार्षद आरएस राठी की, जो लगातार निगम की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते रहते थे जनता के हितार्थ। उनकी एक अहम मांग यह भी रही कि निगम की फाइनेंस कमेटी गठित की जाए। मेयर के कार्यकाल के लगभग साढ़े तीन वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और अब तक फाइनेंस कमेटी का गठित न होना सवाल तो खड़े करता है। फाइनेंस कमेटी को अभी केवल तीनों मेयर ही चला रहे हैं, जबकि नियमानुसार पांच व्यक्ति होने चाहिएं।

गत दिनों से निगम की कार्यशैली सदा ही विवादों में रही है। चाहे किसी भी विंग की बात करें। वर्तमान में सैनीटेशन विंग तो बहुत चर्चा में है। भीमसिंह राठी तो सीधे-सीधे पूर्व निगमायुक्त विनय प्रताप सिंह पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने गलत तरीके से सफाई के ठेकेदारों को टेंडर दिए हैं, जिसमें उन्होंने मोटा लेन-देन किया है। सफाई के टेंडर आरंभ से ही विवादों में रहे हैं टेंडर देने का, उनका कार्यकाल बढ़ाने का और उनके कार्य करने के तरीकों का। 

चर्चा तो यहां तक है कि जितने व्यक्तियों की पेमेंट ली जाती है, कार्यस्थल पर लगभग उसके आधे ही होते हैं और यह जानकारी सभी पार्षदों और मेयर को भी होगी, ऐसा माना जा सकता है, क्योंकि पार्षद और मेयर अपने-अपने क्षेत्र से चुनकर आए हैं और उन्होंने अपने क्षेत्रवासियों से वादे भी कर रखे हैं कि वे अपने क्षेत्र की हर गली की परेशानियों का पूरा ध्यान रख उन्हें हल कराएंगे लेकिन मजेदारी यह है कि कभी किसी पार्षद या मेयर की तरफ से इस प्रकार की शिकायत नहीं आई।

इसके बारे में भी चर्चा है कि बंदरबांट का खेल है, जब बंदरबांट हो जाती है तो शिकायत कैसी।इस प्रकार हर विभाग इसी प्रकार के विवादों में घिरा हुआ है। वर्तमान में जिस प्रकार एक सप्ताह में दिखाई दे रहा है कि नवनियुक्त निगमायुक्त पूरा समय लगाकर हर विभाग का संपूर्ण अध्ययन कर रहे हैं और हमें उनके अनुभव, योग्यता और कर्तव्यनिष्ठा पर विश्वास करना चाहिए कि वह स्वयं जहां-जहां भ्रष्टाचार है, उसे अवश्य पकड़ लेंगे। वर्तमान में मानसून आ रहा है और देखने में आ रहा है कि वह पूर्ण प्रयास कर रहे हैं कि मानसून में क्षेत्र में जलभराव न हो। क्या इतने अल्प समय में उनका प्रयास फलीभूत हो पाएगा?

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