अमित नेहरा

-भगतसिंह और चे ग्वेरा में समानताएं
-मोटरसाइकिल की यात्रा ने कैसे बदल दी चे ग्वेरा की जिंदगी
-चे ग्वेरा ने भारत आकर नेहरू से क्या बात की
-चे ग्वेरा को क्यों छोड़ना पड़ा क्यूबा

अविभाजित भारत के पाकिस्तान के लायलपुर ज़िले (अब फैसलाबाद) और अर्जेंटीना के रोज़ारियो कस्बे में दूरी 16,000 किलोमीटर से भी ज्यादा है। दोनों स्थानों के समय में भी 8 घण्टे का फर्क है और जहाँ लायलपुर उत्तरी गोलार्ध में है वहीं रोज़ारियो इसके विपरीत दक्षिण गोलार्ध में है। न दोनों की भाषा मिलती है न रहन-सहन और न ही इनकी संस्कृति में कोई तालमेल है। फिर भी दोनों स्थानों में एक बड़ी समानता है।

वह समानता है इन दोनों स्थानों पर ऐसी विभूतियों का जन्म हुआ है जो लगभग 100 साल बीत जाने के बाद आज भी गरीबी, आर्थिक विषमता, एकाधिकार, पूंजीवाद, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ आवाज उठाने वालों के अधिनायक बने हुए हैं। क्रांतिकारियों के लिए ये दोनों व्यक्तित्व हीरो हैं।

इनमें से एक अधिनायक हैं भगत सिंह, जिनका जन्म 27 सितंबर, 1907 को अविभाजित भारत के लायलपुर ज़िले के बंगा (वर्तमान में पाकिस्तान का फैसलाबाद जिला) में हुआ था और दूसरे अधिनायक हैं अर्नैस्तो चे ग्वेरा, जो दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना के रोज़ारियो कस्बे में आज के दिन यानी 14 जून 1929 को पैदा हुए थे। भगतसिंह की ख्याति भारतीय उपमहाद्वीप में खूब फैली उधर चे ग्वेरा को पूरे विश्व के क्रांतिकारियों में पहचान मिली। दोनों व्यक्तित्वों में बुद्धि और साहस का अनूठा मेल था। दोनों ही समाजवाद के सपनों को पूरा करने के प्रयास में शहीद हुए।

अर्नैस्तो चे ग्वेरा जिन्हें संक्षेप में चे ग्वेरा या सिर्फ चे कहा जाता है, उनके जन्मदिन पर चर्चा होगी कि वे क्रांतिकारियों और युवा वर्ग में इतने लोकप्रिय क्यों हैं ?

आज पूरे विश्व में हर जगह ऐसे अनेक युवा दिखाई दे जाते हैं जिनकी टी-शर्ट पर फौजी वर्दी में बिखरे हुए बालों पर टोपी लगाए और हाथ में बड़ा सा सिगार लिए एक अल्हड़ से नौजवान की फोटो छपी होती है। ये फोटो चे ग्वेरा की है। यही चे ग्वेरा सत्ताविरोधी संघर्ष का वैश्विक प्रतीक हैं। किसान आंदोलन में सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बोर्डरों पर ज्यादातर युवा भगतसिंह की फोटो वाली टी-शर्ट पहने मिलेंगे, इनके साथ ही चे-ग्वेरा वाली टी-शर्ट भी आसानी से दिख जाएगी। भारत में बहुत से युवा चे ग्वेरा की फोटो वाली टी-शर्ट पहने तो दिख जाते हैं मगर चे कौन थे, कहाँ के थे और उनका योगदान क्या था इस बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है।

चे ग्वेरा मूलतः एक डॉक्टर थे। उन्होंने अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान अपने दोस्त अल्बेर्तो ग्रेनादो के साथ लेटिन अमेरिका को जानने के लिए दस हज़ार किलोमीटर से ज्यादा मोटरसाइकिल पर यात्रा की। इस यात्रा ने चे ग्वेरा को हमेशा के लिए बदल दिया। यात्रा में उन्होंने देखा कि कैसे पूंजीवाद ने लोगों को अपने अस्तित्व से अलग कर दिया था। कैसे लोग गरीबी में रहने को अभिशप्त हैं और नारकीय जिंदगी बिता रहे हैं। अमीरी और गरीबी की लड़ाई ने उनको झकझोर दिया। चे ग्वेरा ने इस सारी यात्रा को ‘मोटरसाइकिल डायरीज’ के नाम से पुस्तक के रूप में छापा। इसके साथ ही चे ने गरीबों और समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों के लिए जीवनभर लड़ने की कसम खा ली। चे ग्वेरा जल्द ही डॉक्टर होने के साथ ही लेखक, कवि, गुरिल्ला नेता, सामरिक रणनीतिकार, कूटनीतिज्ञ, समाजवादी नेता के रूप में स्थापित हो गए।

चे ग्वेरा 1953 में पड़ोसी देश ग्वाटेमाला में डॉक्टरी करने लगे। उन्होंने ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान के द्वारा किए जा रहे सुधारों में भाग लिया। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका ने ग्वाटेमाला में तख्तापलट करवा दिया। चे ग्वेरा पकड़े और मारे जाने के डर से मैक्सिको पहुँच गए। लेकिन इस तख्तापलट ने ग्वेरा के मन में क्रांति की आग और अमेरिका विरोध को भड़का दिया। मेक्सिको में उनकी मुलाकात फिदेल कास्त्रो के साथ हुई। दोनों ने मिलकर जनवरी 1959 में 500 से भी कम विद्रोहियों को साथ लेकर क्यूबा में सत्तारूढ़ बतिस्ता सरकार का तख्तापलट कर दिया। फिदेल कास्त्रो क्यूबा के राष्ट्रपति बने और उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में चे ग्वेरा को उद्योग मंत्री बनाया।

इसी साल चे ग्वेरा भारत में आये और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलकर क्यूबा की चीनी खरीदकर समाजवाद के लिए मदद करने का अनुरोध किया। बैठक के बाद चे ग्वेरा ने बताया कि नेहरू ने हमें बेशक़ीमती मशवरे दिए हैं कि किसी देश का आर्थिक विकास उसके तकनीकी विकास पर निर्भर होता है। इसके लिए मुख्य रूप से दवाइयों, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान और कृषि के क्षेत्र में वैज्ञानिक शोध संस्थानों का निर्माण जरूरी है।

चे ग्वेरा पहले रूस की तरफ झुकाव रखते थे लेकिन बाद में उनका लगाव चीन के साथ हो गया। इससे पेंच फँस गया क्योंकि फिदेल कास्त्रो को रूस पसन्द था। वैचारिक मतभेद के चलते चे ग्वेरा ने क्यूबा छोड़ दिया और उन्होंने कांगो में क्रांति लाने की कोशिश की जो नाकाम हो गई।

कांगो में तख्तापलट में विफल होने पर चे ग्वेरा ने बोलीविया में सरकार का तख्ता पलट करने की योजना बनाई। इसके चलते 9 अक्टूबर 1967 को वे बोलीवियाई सेना और सीआईए के के संयुक्त ऑपरेशन में शहीद गए। लगभग उसी तरह भगतसिंह भी साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा 23 मार्च 1931 को फाँसी पर पर चढ़ा दिए गए थे।

चे का सपना तो पूरी हकीकत में नही बदल पाया लेकिन उनके द्वारा किये गये संघर्ष से आज भी करोड़ो लोग प्रेरणा लेते हैं। हालांकि उनसे घृणा करने वालों की भी कमी नहीं है क्योंकि वे पूंजीवाद के कट्टर विरोधी थे। कुछ भी हो उन्होंने युवावर्ग पर संघर्ष करने की अनूठी छाप छोड़ी है।

error: Content is protected !!