ममता आगे क्या करेंगी?, क्या ममता बनर्जी 2024 में विपक्ष की धुरी बनेंगी।
शनिवार को पीके की मुंबई में शरद पंवार से भेंट।
ममता बनर्जी अगली प्रधानमंत्री कैंडिडेट?
प्रशांत किशोर के अनुसार राहुल गांधी अचानक 2024 में  पीएम बन जाएंगे।
पीके ने अमित शाह को चेलेंज किया था की भाजपा 100 सीट का आंकड़ा नहीं छुएगी।

अशोक कुमार कौशिक

पश्चिम बंगाल में दीदी मोदी और शाह को बैकफूट पर ला छोड़ा है। मुकुल रॉय की भाजपा छोड़ वापिस टीएमसी में आने के बाद बंगाल में खलबली मची है। विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद अब भाजपा के सामने बड़ी चुनौती यह है कि वह कैसे अपनी जीते हुए विधायकों को टूटने से बचाए। दरअसल भाजपा के विधायकों का दल सुवेंदु अधिकारी के साथ प्रदेश के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से मिलने के लिए पहुंचा। लेकिन इस मुलाकात में कई भाजपा विधायक नदारद नजर आए। जिसके बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि ये विधायक पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं। हालांकि सुवेंदु अधिकारी का कहना है कि मैंने सभी विधायकों को फोन किया है, जिसमे से 30 विधायकों को आना था लेकिन आज हमारे साथ 50 विधायक आए हैं।

 बता दें कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में भाजपा को 74 सीट पर जीत मिली थी, जिसमे से 24 विधायक सुवेंदु अधिकारी के साथ राज्यपाल से मुलाकात के दौरान नहीं पहुंचे। ऐसे में अटकलें शुरू हो गई हैं कि भाजपा के विधायक टीएमसी के खेमे में जा सकते हैं। दरअसल भाजपा की ओर से सुवेंदु को विधानसभा में नेता विपक्ष चुना गया है लेकिन सुवेंदु को पार्टी के कई विधायक अपना नेता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। जिसके बाद अटकलें तेज हो गई हैं कि यह विधायक भाजपा से अलग हो सकते हैं।

 रिपोर्ट के अनुसार कई विधायक पार्टी में खुश नहीं हैं और वह टीएमसी के संपर्क में हैं। माना जा रहा है कि भाजपा के कई विधायक टीएमसी में जा सकते हैं। वहीं टीएमसी का दावा है कि उनके संपर्क में 30 विधायक हैं।

इधर यूपी में 126 विधायक बीजेपी छोड़ने की ताक में बताए जा रहे हैं। दरअसल सांसदों और विधायकों का अपने क्षेत्रों में जाना खतरनाक हो गया है। किसान घुसने नहीं देते। कई जगह तो मार-कुटाई भी कर दी गई। हरियाणा के बाद पश्चिमी यूपी में स्थिति बिगड़ रही है।भविष्य बरबाद लगते देख नेताओं के पेट फूले हैं। मरोड़ हो रहा है, बीजेपी की सांस फूली है। बरबादी नज़र आ रही है। मोदी और योगी में तनाव बरकरार है। मध्यप्रदेश में भी आग सुलग रही है। सिंधिया मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नज़र गडाए हैं। शिवराज सिंह को कमतर करने का प्रयास जारी है। महाराष्ट्र बीजेपी में बेचनी है। सुनने में तो आया है कि दो दर्ज़न से अधिक विधायक शिव सेना के सम्पर्क में हैं।

बंगाल के चुनावी नतीजों के बाद यह सवाल पूछा जाने लगा है कि क्या ममता बनर्जी 2024 में विपक्ष की धुरी बनेंगी? पिछले सात साल पर गौर करें तो ये बात बहुत साफ है कि ममता बनर्जी के अलावा किसी और नेता ने नरेंद्र मोदी से सीधा टकराव मोल लेने का साहस नहीं दिखाया है। 

कांग्रेस नेता राहुल गाँधी बीजेपी और आरएसएस की नीतियों के खिलाफ मुखर ज़रूर रहे हैं, मगर वो अपनी कोशिशों को चुनावी नतीजों में नहीं बदल पाये हैं। राष्ट्रीय नेता बनने के आकांक्षी बाकी क्षत्रपों ने केंद्र सरकार के खिलाफ छिटपुट बयान देने के अलावा और कुछ नहीं किया है। दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने बीजेपी की चुनावी महामशीन (जिसमें गैर-कानूनी ढंग से काम कर रही सरकारी एजेंसियां शामिल हैं) के खिलाफ ना सिर्फ एक बहुत मजबूत लड़ाई लड़ी बल्कि बहुत शानदार जीत भी हासिल की।

चुनाव नतीजों के बाद ममता ने इस बात का साफ संकेत दिया कि वो राष्ट्रीय राजनीति में पांव पसारने की तैयारी कर रही हैं। उन्होंने नतीजों के फौरन बाद कहा कि कोबिड वैक्सीन देश के तमाम नागरिकों को निशुल्क लगाया जाना चाहिए और वो इसके लिए मुहिम शुरू करेंगी।
कुछ लोग कह रहे हैं कि ममता ममता का नाम मोदी के राजनीतिक प्रतिद्वंदी के तौर पर सामने आता है तो यह बीजेपी के लिए अनुकूल स्थिति होगी। इसकी वजह ममता के विरोधियों की नज़र में उनकी मुस्लिम परस्त छवि का होना है। मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ।

सिर्फ ममता ही नहीं बीजेपी अपने तमाम राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को हिंदू विरोधी और मुसलमानों का पैरोकार साबित करने की कोशिश करती है। दिल्ली में बीजेपी के लिए केजरीवाल केजरुद्दीन हैं, बिहार और यूपी में लालू और मुलायम के परिवार मुस्लिम परस्त हैं। बीजेपी के स्टार प्रचारकों के लिए पूरा गाँधी परिवार ही मुसलमान है। यह मानकर चलना चाहिए कि बीजेपी की चुनावी केमेंट्री कभी हिंदू-मुसलमान से आगे नहीं बढ़ पाएगी।

सांप्रादायिक राजनीति के लिए पर्याप्त खाद-पानी होने के बावजूद बंगाल की जनता ने बीजेपी को नकार दिया। इसलिए ममता के राष्ट्रीय विकल्प बनने में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन ममता अगर सचमुच इस बात को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें तत्काल कुछ काम करने चाहिए।
जब बंगाल में सबकुछ सामान्य होने लगे तो ममता को फौरन दिल्ली आकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के खिलाफ उनसी तरह का आंदोलन शुरू करना चाहिए जैसा उन्होंने सिंगूर में किसानों की ज़मीन छीनकर टाटा को दिये जाने के विरोध में किया था। 

सेंट्रल विस्टा जैसा अव्यवहारिक, अमानुषिक और अश्लील कोई और प्रोजेक्ट नहीं हो सकता। जिस देश में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं और मदद के लिए उसे दुनिया का मोहताज होना पड़ रहा है, उस देश में एक सनकी शासक 20 हज़ार करोड़ रुपये फूंक देना चाहता है। यह एक अक्षम्य अपराध है। ममता अगर सेंट्रल विस्टा के खिलाफ आंदोलन करती हैं तो उन्हें पर्याप्त जनसमर्थन भी मिलेगा।

अब दो राजनैतिक कयास सुनिए। एक ममता बनर्जी अगली प्रधानमंत्री कैंडिडेट हैं, और उनके चांस भी बनेंगे। इसका सूत्रधार होगा पीके। थ्योरी का बेस ये है की शनिवार को पीके मुंबई में थे और शरद पंवार से मिले हैं । शरद और उद्धव ठाकरे रिश्तेदार हैं तो वो उनकी निजी तौर पर सुनेंगे। दूसरी तरफ शरद पहले नेता थे जिन्होंने मोदी का विजय रथ बहुत उलट फेर करके न सिर्फ रोका बल्कि अमित शाह को एकदम बेवकूफ बना के अपने परिवार के केस भी ख़त्म करवा लिए और मुख्यमंत्री भी अपना बनवा लिया था। इसलिए राजनीती का असली चाणक्य हैं शरद पंवार उनके बिना गैर कांग्रेस-भाजपा प्रधानमंत्री संभव नहीं है।

आज़ादी के बाद से ही जब भी तीसरे मोर्चे की बात आती है तो प्रधानमंत्री पद के लिए एक नेता पर सहमति नहीं बन पाती है, एक तो ममता बनर्जी की उम्र और ओहदा ऐसा है की लोग उनकी इज्जत करते हैं, दूसरी तरफ देश की सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य यूपी की बड़ी पार्टी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के ममता बनर्जी से अच्छे सम्बन्ध हैं। शरद पंवार की बात बादल परिवार, चौटाला परिवार, अखिलेश यादव के अलावा, चंद्रबाबू नायडू, जगनमोहन , तेजस्वी, उद्धव ठाकरे से लेकर दक्षिण के ज्यादातर नेता सुनते हैं।

दूसरा कयास ये है कि प्रशांत किशोर कहते हैं, “आपको सुन कर आश्चर्य हो सकता है, पर राहुल गांधी 2024 में आश्चर्यचकित रूप से प्रधानमंत्री बन जाएंगे”। यह हवा में कही हुई बात नहीं है और इसके कुछ कारण है। कुछ दिनों पूर्व प्रशांत किशोर, शरद पंवार से क्या मिले लोगों ने तरह तरह के कयास लगाने शुरू कर दिए। 

खैर, पॉलिटिक्स में पीएम पद की दौड़ पूरी करनी हो तो, तैयारियों पर काम होना अमूमन ढाई तीन साल पहले शुरू हो जाता है। ऐसी बेस्वादी का ज़ायका पिछले कुछ वर्षों से भारत लेे ही रहा है, जिसे हमें परोसने का ज़िम्मा प्रशांत किशोर ने ही 2013-14 में निभाया था। इन्हीं की मार्केटिंग स्ट्रेटजी के तहत मोदी को महान बता कर, शानदार पैकेजिंग के साथ लॉन्च किया गया था। उन्हें सफलता भी मिली। पर मेरी नजर में, इतने वर्षों में मोदी जी बेहतरीन अवसर को भुना ना सके। ख़ुद के एवं मित्रों के लिए क्या कर गए वैसे नहीं, पब्लिक के लिए क्या कर पाए, उस दृष्टि से।

मुख्य बात यह है कि इस दौरान प्रशांत किशोर की कुछ निजी मांगें रहीं थीं, जिन्हें वो पूरा करने के लिए मोदी को चुनाव जीतने उपरांत कहते रह गए, पर उनकी सुनी नहीं गई। भारत के तंत्र में प्रोफेशनल्स एवं रिसर्चर्स की लेट्रल एंट्री और रिसोर्सेज का डीसेंट्रलाइज करने को लेकर, उन्होंने जबरदस्त वकालत की। जिस पर मोदी का उन्हें सपोर्ट नहीं मिला।

प्रशांत किशोर के अनुसार राहुल गांधी अचानक 2024 में  प्रधानमंत्री बन जाएंगे, इसे आज मज़ाक में लिया जा सकता है। पर अगले तीन वर्षों में उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुंचाने की तयारी प्रशांत किशोर कर चुके हैं, जिसमें ममता, केजरी, पंवार, उद्धव, अखिलेश, स्टालिन आदि, जैसे इंग्रेडिएंट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वे समझते हैं कि उनके ये रेवोल्यूशनरी आइडियास को इम्प्लीमेंट करने की क्षमता राहुल जैसे विज़नरी नेता में ही है।

प्रशांत किशोर की सियासी बुद्धिमता कहती है कि रीजनल पार्टीज या इनका नेता पीएम पद के लिए पब्लिकली एक्सेप्ट हो पाना कठिन है, पर राष्ट्रीय पार्टी का वो नेता जो विगत कई वर्षों से राष्ट्र निर्माण की गलत नीतियों पर सवाल उठा रहा हो, उसके सोलूशन्स बता रहा हो, सरकार को समय पूर्व सचेत कर रहा हो, तमाम नीतियों पर काम कर रहा हो और पार्टी के लिए ज़मीन पर धूप धूल छान रहा हो, उसका पीएम पद के लिए एक्सेप्टेन्स पब्लिक में निश्चित ही होगा।

मैं जितना करीब से फिलहाल कांग्रेस पार्टी की एक्टिविटीज को देख पा रहा हूँ, मेरा अनुमान भी यही है की राहुल को रोक पाना अब नामुमकिन होगा।

आखिरी बात, पीके ने कई चुनावों में अच्छा काम किया है। कई चुनाव जिताये या सही एनालाइज किये हैं। बंगाल चुनाव में अमित शाह ने जब 200 सीटों की बात की तो पीके ने एक तरह से सीधे अमित शाह को चेलेंज किया था की भाजपा 100 सीट का आंकड़ा नहीं छुएगी और जो खुद को चाणक्य समझते हों वो चाहें तो शर्त लगा लें की वो राजनीती छोड़ दें या मैं अपना काम छोड़ दूंगा। पीके जैसा व्यक्ति जो चुनावों की इतनी समझ रखता है, वो कभी भी राष्ट्रिय पार्टी छोड़ के तृणमूल जैसी एक क्षेत्रीय पार्टी ज्वाइन नहीं करेगा। जब तक उस पार्टी के मुखिया का अगला प्रधानमंत्री बनने के पूरे चांस न हों।

इसका एक उदाहरण इस बात से समझ लीजिये जैसे मनमोहन के भाषण के बाद तुरंत मोदी भाषण देने आ जाते थे उसी तरह हाल में मोदी के भाषण के बाद ममता बनर्जी उनकी मिट्टी पलीत करने आ जाती हैं। ध्यान रहे 2014 चुनाव से पहले मनमोहन के लाल क़िला भाषण के ठीक बाद मोदी गुजरात से लाल किला जैसा ही सेट बनवा के टीवी पे छाये थे ताकि पब्लिक के दिमाग में अभी से उनकी प्रधानमंत्री वाली इमेज जाने लगे।

error: Content is protected !!