धमकी, राजद्रोह और कोर्ट कचहरी झेलते पत्रकारिता की यात्रा जारी : अनिल सोनी

कमलेश भारतीय

धमकी, राजद्रोह के केस और कोर्ट कचहरी के चक्करों के बीच मेरी पत्रकारिता यात्रा जारी है । फिर भी आने वाला जमाना जब कंटेंट को महत्त्व देने लगेगा तब पत्रकारिता का स्वर्ण युग लौट आयेगा । यह कहना है हिमाचल के धर्मशाला से प्रकाशित दैनिक दिव्य हिमाचल के संपादक अनिल सोनी का । वे मेरे निजी मित्र भी हैं और देखते देखते दिव्य हिमाचल को एक प्रमुख समाचारपत्र ही नहीं बना दिया बल्कि इसे टीवी और डिजिटल रूप भी प्रदान किये । मूल रूप से धर्मशाला के ही निवासी अनिल सोनी की शिक्षा चंडीगढ़, धर्मशाला और जयपुर में हुई । पंजाब यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एम ए , राजस्थान से जर्नलिज्म , टूरिज्म और होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा । दो साल पहले सपरिवार धर्मशाला गया था तब डाॅ प्रत्यूष गुलेरी के साथ इनको मिला दिव्य हिमाचल के कार्यालय में और तब भी पत्रकारिता पर बातचीत हुई। मेरे अनेक लेख दिव्य हिमाचल में स्थान पा चुके हैं ।

-पत्रकारिता में रूचि कैसे?
-बचपन से ही । पापा ओमप्रकाश सोनी एक शिक्षा अधिकारी थे और खुद लेखक । घर में अनेक पत्र पत्रिकायें आती थीं । पापा इम्प्रिंट में लिखते भी थे । अपनी डायरी भी लिखते। इस तरह लिखने पढ़ने की आदत उन्हीं से मिली ।

-शुरूआत कैसे हुई ?
-संपादक के नाम लिखे पत्रों से । वीरप्रताप , ट्रिब्यून और एक्सप्रेस में पत्र प्रकाशित होते रहे ।

-फिर जाॅब कहां कहां ?
-ओबराॅय व ताज होटल्ज में लेकिन यह काम ज्यादा रूचिकर नहीं लगा । वैसे फ्रीलांस दिल्ली प्रेस , वीर प्रताप और ट्रिब्यून में खूब लिखता रहा । तब हिमाचल में कोई अखबार नहीं था । तीन चार साप्ताहिक ही निकलते थे । टूरिज्म और ट्रैवल पर खूब लिखा ।

फिर सीधे अखबार में कैसे और कब लगे ?
-बरेली का अखबार था विश्व मानव । इसने करनाल से भी इसका प्रकाशन शुरू किया तो ट्रेनी सब एडिटर के रूप में ज्वाइन किया और छह माह बाद बाद ही इसका न्यूज एडिटर बना दिया गया । फिर इसे हरियाणा के मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने ले लिया और इसका नाम रखा जनसंदेश । तब हमें दिल्ली ऑफिस भेजा गया पर एक साथ 37 लोगों ने इससे रिजाइन कर दिया जिनमें मैं भी एक था ।

-फिर आगे कहां ?
-तरूण भारत में जो सीधे आर एस एस का पत्र था । यानी एक विचारधारा का प्रतिबद्ध अखबार । यहां चार साढ़े चार साल तक काम किया । बाबरी मस्जिद के घटनाक्रम के दिनों में उसी में थे । तब हमें एक विशेष समाज की ओर से धमकियां भी मिलीं । पर मैंने अग्रलेख लिखा इस प्रकरण पर और हमारे न्यास मे शामिल मराठवाड़ा के एक प्रोफेसर ने इस पर आपत्ति करने की कोशिश भी की । पर हम स्वतंत्र रहे पत्रकारिता में ।

-इससे आगे ?
-तरूण भारत से रिजाइन और ऑफर मिला औरंगाबाद के लोकमत समाचार से और वहां चार साल तक काम किया । वे टीवी से जुड़ने की प्रक्रिया में थे । इतने में दिव्य हिमाचल शुरू हो गया और ऑफर मिला न्यूज डायरेक्टर का । तब राधेश्याम शर्मा और वी आर जेटली भी इससे जुड़े थे । बाद में सन् 1997 में मुझे संपादक बना दिया गया ।

-इन चौबीस सालों का सफर कैसा रहा?
-इन सालों में आज भी ऐसा लगता है जैसे आज ही सफर शुरू किया हो । पर अखबार के साथ टी वी , वेबसाइट और डिजिटल भी कर दिया और फिल्म निर्माण भी किया ।

-क्या कर पाये आप ?
-हिमाचल प्रदेश की आवाज़ बनने की कोशिश । पत्रकारिता के उच्च मानदंडों को बनाये रखने की कोशिश , कलुषित राजनीति का चेहरा दिखाने और लोगों का विजन बदलने की कोशिश जारी है । हम राज्य का गौरव बनें , सामजिक सांस्कृतिक गतिविधियों की जानकारी दे सकें और पत्रकारिता के मूल्यों को बनाये रखने की निरंतर कोशिश ।

-कोई पुस्तक?
-पुस्तक तो नहीं लिखी लेकिन महाराष्ट्र में रहते एक काॅलम लिखता था -आखिरी तीर । इसमें जिन्ना की कोठी पर लिखे मेरे व्यंग्य को मराठी नाट्य रूपांतरित किया गया जो बहुत पसंद किया गया । इसी तरह महात्मा गांधी की किताब पर मेरे लेखों पर आधारित गुजराती और मराठी में नाटक बनाये गये ।

-आज की पत्रकारिता पर क्या कहेंगे?
-देखिए जब जनसंदेश और तरूण भारत में काम किया तब भी ऐसे प्रतिबंध महसूस नहीं हुए । हिमाचल में अपने राज्य में रहते पांच पांच मुख्यमंत्री देखे और राजद्रोह के केस भी झेले । एक समाज की ओर से धमकियां भी मिलीं और कोर्ट कचहरी भी हुई । इसके बावजूद अब लगता है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया तो पूरी तरह ध्वस्त सो चुका है । डिजिटल युग शुरू हो चुका है । यूट्यूब चैनल का जमाना आ रहा है । इस पर यानी सोशल मीडिया पर भी अंकुश लगाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

-हल क्या ?
-जिस दिन कटेंट की ओर पाठक /दर्शक ध्यान देने लगेंगे स्वर्णिम युग लौट आयेगा।

-पत्नी?
-स्मिता सोनी जो प्रिंसिपल थीं । अब रिटायर ।

-बच्चे ?
-एक बेटा अबीर सोनी जो एमबीए कर रहा है ।

-लक्ष्य?
-जर्नलिज्म में सीखते जाना है। कोविड ने डेढ़ वर्ष तक काफी प्रभावित किया और इन दिनों हमारा डिजिटल नौ करोड़ लोगों तक पहुंचा।
संतोष इस बात का कि इन सालों में पत्रकारिता के परिदृश्य में कुछ बेहतरीन नगीने चुन पाया , जिनमें से कई इस समय संपादक के पद पर सुशोभित हैं, लेकिन मौजूदा दौर में युवा प्रतिभा को खोजना कठिन हो रहा है।

हमारी शुभकामनाएं अनिल सोनी को ।

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