सर्जरी , जड़ता और नयी हवा कहां से,,,आए कांग्रेस में ?

-कमलेश भारतीय

कांग्रेस के अपने ही कांग्रेस पर सवाल उठाने लगे हैं । यह शुभ संकेत माने जा सकते हैं । कोई बुराई नहीं यदि किसी संगठन में विचार विमर्श चलता है । कांग्रेस ऐसी पार्टी है जिसमें सदैव विचार-विमर्श की गुंजाइश बनी रही है । हालांकि बड़ा उदाहरण महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस का है जो गांधी जी की इच्छा के विरूद्ध राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिए गये थे और बाद में सुभाष चंद्र बोस ने त्यागपत्र दे दिया था । कांग्रेस में एक समय चंद्रशेखर , मोहन धारिया और कृष्णकांत युवा तुर्क कहे जाते थे जो लौह महिला व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ भी आवाज़ उठाने से संकोच नहीं करते थे । कांग्रेस एक बार राष्ट्रपति के नाम को लेकर अंतरात्मा की आवाज़ तक ही नहीं पहुंची थी बल्कि अलग कांग्रेस भी बन गयी थी । यह कांग्रेस कल्चर है और ऐसा कल्चर अब भी है । इसे आप लोकतंत्र कहिए या सुंदर विद्रोह । अभी जम्मू में इसी वर्ष कांग्रेस के जी 23 समूह ने गुलाबी पगड़ियां पहन कर कांग्रेस हाई कमान को चेताया था और इनमें से एक जितिन प्रसाद ने हाल ही में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा का कमल थाम लिया ।

यह कांग्रेस कल्चर है। पहले इसी जी 23 समूह ने चिट्ठियां लिखीं कांग्रेस के अंदर लोकतंत्र बहाल करने व स्थायी अध्यक्ष चुनने की । कभी इसी सोनिया गांधी के द्वार कांग्रेसी जाकर खड़े हो गये थे कि कांग्रेस की नैया डूब रही है , इसे बचा लो और सोनिया राजनीति में आईं और सचमुच नैया सत्ता के द्वार ले गयी । तब सोनिया को त्याग की मूर्ति कहा गया जब खुद प्रधानमंत्री न बन सकीं और मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवा दिया । बेशक इल्जाम लगा कि मनमोहन सिंह कठपुतली प्रधानमंत्री हैं और कवि मंचों पर चुटकुले सुनाते कि यह सरकार चल गयी तो सोनिया की और न चली तो सरदार की । यानी अगर अच्छा काम है तो सोनिया को श्रेय मिलेगा और यदि सरकार की खराब इमेज है तो उसका ठीकरा मनमोहन सिंह के सिर पर फूटेगा ।।खैर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने से जो सिख समाज सन् 84 के दंगों के बाद से कांग्रेस से नाराज था वह फिर आपका वोट बैंक बना और पंजाब में कांग्रेस के पैर फिर जम गये । दो बार प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को अब के प्रधानमंत्री मौनमोहन सिंह कहते थे लेकिन अब खुद उनकी छप्पन इंच की छाती और मन की बात दोनों के दीवानों का ग्राफ काफी नीचे आ चूका है ।

इधर जी 23 के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल बार बार मांग उठा रहे हैं कि कांग्रेस को एक बड़ी सर्जरी की जरूरत है और आज फिर उन्होंने इसी बात को नये ढंग से कहा कि कांग्रेस की जड़ता तोड़ने की जरूरत है । कभी कभी शशि जरूर भी यह काम करते हैं । कभी यह काम पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भी करते रहे और बाकायदा चाणक्य नाम से अखबारों में लेख लिखते थे । आजकल यह काम कपिल सिब्बल कर रहे हैं । अच्छा है पर कहा जाता है कि जो कहना है पार्टी मंच पर कहो पर फिर जी 23 समूह की गुलाबी पगड़ी किसलिए बांधी ? पूरे मन से कांग्रेस की भद्द पीटो और कांग्रेसी भी बने रहो । अब कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि मैं कभी भाजपा में नहीं जाऊंगा । फिर कांग्रेस के अंदर रह कर इसकी भद्द कैसे पिटेगी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इस समूह के नेता गुलाम नवी आजाद को जो काम सौंप रखा है उस मिशन को कौन पूरा करेगा ? चाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया हो या फिर जितिन प्रसाद या फिर कपिल सिब्बल या सचिन पायलट ये सभी लोग पूर्व मंत्री हैं और गांधी परिवार की आंखों के तारे लेकिन अब सत्ता नहीं तो उसी हाईकमान को आंखें दिखाने लगे हैं । ये क्या माना जाये कि चढ़ते सूरज को सलाम और डूबते जहाज से सबसे पहले छलांग मारना ?

क्या कहना या क्या सोचना ? पहली अपने मन की सर्जरी कीजिए या अपने अंदर की जड़ता तोडिए , फिर कांग्रेस के बारे में जनता के बीच जाइए । क्या कहूं ,,,,
धूल चेहरे पे लगी थी
और हम आइना साफ करते रहे ?

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