अनिल कुमार पाण्डेय , लेखक मीडिया प्राध्यापक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं कोरोना संक्रमितों की घटती संख्या को कोरोना की दूसरी लहर का अंत माना जा रहा है। अंत की घोषणा भले ही ना हुई हो, लेकिन देश के कई राज्यों में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। कई राज्यों में लॉकडाउन की सख्तियों में ढ़ील दे दी गई है। बाजारों के साथ ही धार्मिक स्थानों को भी खोल दिया गया है। समाचार चैनलों, समाचार पत्रों और सोशल मीडिया के विभिन्न ठिहों और अड्डों में हम सभी घनघोर लापरवाही के समाचार देखते-पढ़ते हैं। लेकिन मज़ाल है कि हम खुद को सुधारें! हम सब कमाल के और निराले प्रकृति के लोग हैं। दिनभर में सैकड़ों बार अपने जेब से नोटबुक के आकार के स्मार्टफोन निकालकर उसके चमचमाते डिस्पले में सोशल मीडिया के ठिकाने ढूँढकर कोरोना प्रोटोकाल की धज्जियाँ उड़ाने वाले वायरल वीडियो देखकर लोगों की मूर्खता और मूढ़ता पर ठहाका लगाकर हँसते हैं। वहीं समाचार पत्रों के भौतिक और ई-संस्करणों को भी स्मार्टफोन में निहारकर कोरोना संक्रमितों और मरने वालों का आंकड़ा जानने की जुगत भिड़ाते हैं। दिन-रात टेलीविजन में समाचार चैनलों में एलौपैथ बनाम आर्युवेद की बहसें देखकर मजा लूटते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद कोरोना जागरूकता के नाम पर हमारे कान में जूँ तक नहीं रेंगती। अगर थोड़ा बहुत जूँ रेंगता भी है तो कोरोना से लड़ने के नाम पर मास्क लगा लेते हैं। कभी ठुड्डी पर तो कभी उसके नीचे गले पर। आज हालात ये हैं कि मास्क नाक से नीचे से उतरते हुआ घरों की खूंटियों में टंग गए हैं। कोरोना की पहली लहर में मास्क और पीपीई किट से जूझने वाले आज फेस शील्ड, डिस्पोजेबल दस्ताने और मास्क की बहुतायत से घिरे पड़े हैं। कपड़ों के साथ मैचिंगदार मास्क भी मिलने लगे हैं। लेकिन हम सब तक तो मगरमच्छ हैं मास्क से नाक-मुँह ढंकता ही नहीं है। कोरोना की पहली लहर में देश में तकरीबन सौ दिनों की पूर्णबंदी रही। जिस कारण से कोरोना के मामले उस तेज़ी से नहीं बढ़े, जितना की दूसरी लहर में भयावह तरीके से बढ़े हैं। पहली पूर्णबंदी के बाद जब देश धीरे-धीरे अनलॉक हुआ तो लोग पहले की तरह ही घरों से बेरोक-टोक निकल करके अपनी नागरिक जिम्मेदारी को भूलकर एक बार फिर से सामाजिक दूरी के वांछित कोविड उपयुक्त व्यवहार की जमकर धज्जियाँ उड़ाने लगे। मेले-महफिलें सजने लगीं, बाजार लोगों की आमद से गुलजार हो गए। कोरोना विरोधी टीकों की आमद और बढ़ती आर्थिक गतिविधियों के कारण अर्थव्यवस्था के पहिए भी एक बार फिर से सरपट भागने लगे। वहीं लोग भी कोरोना के खिलाफ जंग जीत लेने की खुमारी में पहले से कहीं ज्यादा बेपरवाह और लापरवाह हो गए, लेकिन जिसका अंदेशा था, वही हुआ। कोरोना इस बार अपनी दूसरी लहर पर सवार होकर हिंसक आततायी की तरह लोगों पर टूटकर राहू की तरह उन्हें ग्रसने लगा। क्या युवा और क्या बुजुर्ग? लाखों लोगों को कोरोना ने असमय ही लील लिया। सैकड़ों घर-परिवार उजड़ गए। बच्चे अनाथ और असहाय हो गए। किसी का सिंदूर उज़ड़ गया तो किसी के घर का कमाऊ पूत घर को विदा कर गया। स्थिति ऐसी बनी कि लोग सन् 1920 में फैली इटैलियन फ्लेग की महामारी से इस महामारी को जोड़कर देखने लगे। देश कोरोना की प्रलयंकारी मार के चलते एक बार फिर से लॉकडाउन के आगोश में चला गया। राज्यों ने अपनी स्थिति- परिस्थिति के अनुसार लॉकडाउन लगाए। अब जब कोरोना के मामले समुद्र के आए ज्वार-भाटे की तरह उफान मारने के बाद अपने पैर समेट रहा है तो हम सभी को पहली लहर के बाद अनलॉक होने पर बरती गई लापरवाही से सबक सीखकर अपने पैरों में जिम्मेदारी के बंधन डालकर घर-दफ्तर और केवल जरूरी कामों तक ही सीमित रहने की जरूरत है। वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने कोरोना के तीसरी लहर के आने की आशंका जाहिर की है। ऐसे में बतौर नागरिक हम सब की जिम्मेदारी पहले की तुलना में कहीं ज्यादा है। निकलना ज़रूरी हो तो घर से बाहर सुरक्षित सामाजिक दूरी बनाकर रखें। मास्क का उपयोग करें और हर संभव तरीके से समय-समय पर अपने हाथों को धुलते या सैनीटाइज़ करते रहें। कोरोना से लड़ाई टीकों के आ जाने के बाद पहले के मुकाबले अब ज्यादा आसान हो गई है। लिहाजा मौका आने पर टीका लगवाएँ, सतर्क रहें और लोगों को भी जागरूक करें। कोरोना के साथ इस लड़ाई में टीके के साथ मास्क और सामाजिक-देह दूरी वह अमोघ अस्त्र हैं जो कोरोना रूपी रावण के उर में संचित अमृत के कुंड को सुखाकर संपूर्ण मानवता को उससे मुक्ति दिला सकते हैं। Post navigation जो औषधि हमारे शरीर की रक्षा करती हो वह हमारे लिए लाभदायक है : महंत बंसी पुरी “लापरवाही से बचें क्योंकि खतरा अभी टला नहीं है”: डॉ. नितिका शर्मा