शरद पवार परिवार को साथ लाने पर भी विचार।मोदी की छवि मुसलमान विरोधी जबकि योगी पर मुसलमानों का विश्वास।सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का मुख्यालय नागपुर के बजाय लखनऊ होगा।मोदी पर निजी निशाना साधने वाले को शिवराज ने बनाया ओएसडी। अशोक कुमार कौशिक भास्कर ने हाल ही में बड़ी मज़ेदार खबर दी है।आरएसएस ने यूपी और 5 अन्य राज्यों के लिए 8 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी को चेहरा न बनाने का फैसला किया है। राजस्थान, कर्नाटक, बिहार और मध्य प्रदेश में अलग से चिंता खड़ी कर रखी है। महाराष्ट्र से शिवसेना, पंजाब से अकाली दल पहले ही भाजपा से नाता तोड़ चुके हैं। पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, केरल सहित देश के आधा दर्जन प्रदेशों में लोकसभा चुनाव में भाजपा को एक भी सीट मिलने की आशा दिखाई नहीं दे रही। आप बंगालियों के शुक्रगुज़ार हो सकते हैं कि उन्होंने मोदी की इमेज को कुछ इस तरह से चार चांद लगा दिए कि आरएसएस खुद उन्हें मैदान में नहीं उतारना चाहता। आरएसएस को बंगाल ने सबक सिखाया है कि मोदी के उतरने पर गालियों की तमाम तोपें मोदी की ओर मुड़ जाती है और वे बदनाम होते हैं। बढ़िया है। लेकिन इस सबके से जुड़े कई सवाल खड़े होते हैं। हरियाणा दिल्ली और बिहार ने पहले ही साहेब की इमेज को गिराया था। मसलन- कोविड की दोनों लहरों के बाद क्या कोई छत्रप अपने दम पर चुनाव जीतने का दावा कर सकता है? अगर यह मान भी लें कि यूपी में आरएसएस पूरा जोर लगा देगी, मगर गुजरात, हरियाणा और पंजाब का क्या होगा? क्या खुद महाराज योगी आदित्यनाथ मोदी से भी बड़े ब्रांड हैं, जिसकी जीत पर कॉर्पोर्टेस पैसा लगाएंगे?बहरहाल, बंगाल हारने के बाद मोदी खुद भी बड़े ब्रांड नहीं रहे। जैसे मनमोहन सिंह से कॉर्पोर्टेस ने किनारा करना शुरू कर दिया था। फिर भी 18-18 घंटे कॉर्पोर्टेस की कमाई के लिए काम करने वाले मोदी अपने तोतों- सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स की बदौलत पैसा तो लाने में अभी भी सक्षम हैं। तो चुनाव अगर केंद्र के पैसे से, यानी बीजेपी पार्टी फण्ड से ही लड़ा जाएगा तो मोदी सरकार का दांव पर कुछ भी नहीं लगा होगा, ये कैसे मुमकिन है? यूपी के सीएम के कॉर्पोर्टेस से रिश्ते कभी ठीक नहीं रहे। उत्तराखंड और गोआ जैसे राज्यों की छोड़ दें। हां, हिमाचल में जयराम ठाकुर ज़रूर अपवाद हैं। गल्फ न्यूज़ ने बीजेपी नेताओं के हवाले से लिखा है कि “महाराज” पार्टी के लिए गले में फंसी हड्डी बन चुके हैं। लेकिन ये रातों-रात तो हुआ नहीं। मोदी-शाह के लिए महाराज लाड़ले थे। संघ के लिए भी। यूपी के पब्लिसिटी बजट से अरबों रुपये महाराज की ब्रांडिंग में खर्च हुए। अब ठाकुर राज यूपी के ब्राह्मणों को खल रहा है। साथ में दलितों को भी, जिन्हें मोदी का चेहरा दिखाकर चूना लगाया गया। वह दिन भी याद कीजिये, जब सूबे के 150 विधायकों ने महाराज के निरंकुश कामकाज पर सवाल उठाए थे। बताया जाता है कि राधा मोहन सिंह ने आनंदी बेन को जो लिफ़ाफ़ा सौंपा था, उसमें भी 250 से ज़्यादा विधायकों के दस्तखत थे। खैर, गंगा में बहती लाशों को यूपी का बेस्ट कोरोना मैनेजमेंट मॉडल बताकर मोदी और बीजेपी खुद फंस चुकी है। गुजरात के मॉडल का मीडिया पहले ही पर्दाफ़ाश कर चुकी है। कोविड की तीसरी लहर के बीच 6 राज्यों में फरवरी तक छत्रपों की इमेज सुधारना आरएसएस के भी बस में नहीं है। उत्तरप्रदेश में भाजपा के भविष्य की राजनीति का खाका दिल्ली में करीब-करीब तय कर लिया गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दिल्ली की बैठक में साल 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लड़ने का फैसला लिया गया है। इससे भी महत्वपूर्ण निर्णय यह माना जा सकता है कि यूपी और दूसरे पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चेहरा नहीं होंगे। संघ का मानना है कि क्षेत्रीय नेताओं के मुकाबले प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को सामने रखने से उनकी छवि को नुकसान हुआ है। विरोधी बेवजह उन्हें निशाना बनाते हैं। संघ किसी भी नेता को अलग करने या नाराजगी के साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। अब इस पर योगी को खरा उतरना है। महाराष्ट्र में शरद पवार परिवार को साथ लाने पर भी विचार हो रहा है। आरएसएस की दिल्ली में हुई बैठक में सरसंघचालक मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की मौजूदगी में ये निर्णय लिए गए हैं। सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में पश्चिम बंगाल के चुनावों को लेकर गंभीर चिंतन और समीक्षा की गई। संघ नेताओं का मानना है कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में ममता बनाम मोदी की रणनीति से नुकसान हुआ। इसमें चुनाव हारने से ज्यादा अहम यह है कि राजनीतिक विरोधियों को प्रधानमंत्री मोदी पर बार-बार हमला करने का मौका मिला। इससे उनकी इमेज को नुकसान होता है। इससे पहले भी बिहार में 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के खिलाफ और फिर दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भी इस रणनीति से कोई फायदा नहीं हुआ। इसके साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस ने मोदी की इमेज मुसलमान विरोधी बनाने की रणनीति अपनाई। इससे मुसलमान वोटर एकजुट हो गए और 70% से ज्यादा मुसलमानों ने तृणमूल कांग्रेस को वोट देकर चुनाव नतीजों को एकतरफा कर दिया। पश्चिम बंगाल के बाद उत्तरप्रदेश में भी मुसलमान आबादी काफी है और करीब 75 सीटों पर वे चुनावी नतीजों पर असर डाल सकते हैं। यूपी में भी मोदी को चेहरा बनाने पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस फिर से मुसलमानों को एकजुट करने में कामयाब हो सकती हैं। सूत्रों की बात मानी जाए तो बैठक में कहा गया कि खासतौर से पूर्वी उत्तरप्रदेश में योगी की इमेज मुसलमान विरोधी नहीं है और गोरखपुर के साथ जुड़े इलाकों में मुसलमानों और पिछड़ों में गोरखनाथ मंदिर पर भरोसा है। मुख्यमंत्री बनने से पहले तक योगी आदित्यनाथ मंदिर के महंत के तौर पर स्थानीय मुसलमानों के विवाद मंदिर में बैठकर सुलझाते और उनकी मदद भी करते रहे हैं। मकर सक्रांति पर मंदिर में लगने वाले खिचड़ी मेला में ज्यादातर दुकानें मुस्लिम व्यवसायियों की ही होती है। सूत्रों के मुताबिक एक और अहम बात पर गंभीरता से विचार किया गया है कि इस बार यूपी विधानसभा चुनावों में भाजपा मुस्लिम उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारे। इससे उसकी मुस्लिम विरोधी छवि बनाने का मौका विरोधियों को नहीं मिलेगा। इस पर अंतिम फैसला पार्टी को करना है। पिछले चुनाव में भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था। आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक भले ही आप ना मानें, लेकिन यह सच है कि मोदी-योगी के बीच कोई विवाद नहीं है और यूपी भाजपा के ट्विटर अकाउंट या पोस्टर से मोदी की फोटो हटाने की वजह विधानसभा चुनाव योगी के चेहरे के साथ लड़ने का निर्णय ही है। दोनों नेताओं को साथ काम करने और इस छवि को मजबूत करने के लिए कहा गया है। इसलिए अब यूपी के पोस्टर पर योगी आदित्यनाथ के अलावा यूपी भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा दिखाई देंगे। दो दिन चली बैठक में सरसंघचालक सिर्फ एक दिन के लिए ही रहे और वे नागपुर से दिल्ली आकर फिर नागपुर लौट गए। संघ की इस बैठक में क्षेत्रीय मुख्यालयों के प्रभारी और अन्य जिम्मेदारियों पर भी निर्णय किए गए हैं। इसमें सबसे अहम है सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले को मुख्यालय नागपुर के बजाय लखनऊ होगा। पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी प्रधानमंत्री मोदी और सरसंघचालक भागवत के बीच समन्वय का काम देखेंगे और बहुत संभव है कि वे दिल्ली में रहें। सरसंघचालक नागपुर में ही रहेंगे। सहसरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य को भोपाल मुख्यालय दिया गया है। एक बात बता दें अगर सपा,भासपा और कांग्रेस मिल गए एवं अपना दल भाजपा से संभावित गद्दारी कर गई तो योगी के लिए यूपी बचाना नितांत असम्भब होगा। ब्राह्मणों को अगर अच्छा नेतृत्व और सत्ता में भागीदारी का वादा मिला तो अब तक भक्ति में टॉप पर चल रहा यह वर्ग पक्का बीजेपी को दगा दे देगा। मुस्लिम और यादव पहले से ही मर्माहत हैं। मुस्लिम जीतने वाले को ही वोट देगा। यूपी की बनिया बिरादरी पिछले दो साल के लॉकडाउन में बहुत दुखी हुई है। अगर प्रवचन सुनने वालों को छोड़ दे तो बनिया वोट बीजेपी से पक्का कटेगा। अब सवाल बचता है दलित का । यह जिम्मेदारी प्रियंका ,अखिलेश, ओमप्रकाश राजभर की है कि दलितों को विश्वास दिलाएं और उनको अपने तक ले आएं। मोदी पर निजी निशाना साधने वाले को शिवराज ने बनाया ओएसडी मोदी के गिरते असर का एक और उदाहरण मध्य प्रदेश से सामने आया है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुंबई के तुषार पांचाल को अपना ओएसडी बनाया है। उन्हें कम्युनिकेशन एडवाइजर की ज़िम्मेदारी दी गई है। हैरानी की बात ये है कि जिन तुषार को शिवराज ने ये अहम ओहदा दिया है वे ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निजी निशाना साधते रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने लाला रामदेव,श्रीश्री रविशंकर और जग्गी वासुदेव हिन्दू धर्म का भक्षक भी कहा है। अब कांग्रेस के अलावा बीजेपी के भीतर से भी इस पर सवाल उठ रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सूचना सलाहकार के तौर पर मुम्बई के तुषार पांचाल की नियुक्त से राजनैतिक हलकों में सवाल उठाने लगे हैं। तुषार के मोदी पर कटाक्ष वाले पिछले ट्वीट सामने आने पर ख़ुद बीजेपी के अंदर हैरानी है। ★ कौन हैं तुषार पांचाल… सोमवार को जैसे ही मप्र शासन की ओर से तुषार की बतौर ओएसडी नियुक्ति का आदेश जारी हुआ वैसे ही उनके बारे में रस्साकशी शुरू हुई।तुषार के ट्विटर हैंडिल पर बायो में लिखा है कि वे राजनैतिक रणनीतिकार हैं। सोमवार शाम तक ट्विटर पर उनके फॉलोअर्स की संख्या मात्र तीन हज़ार नौ सौ पैंतालीस थी। नियुक्ति की सूचना के बाद यह संख्या बढ़ी है।ख़बर लिखे जाने तक चार हज़ार चार सौ हो गई है। अब उनके बायो में ‘कम्युनिकेशन एडवाइज़र टू एमपी सीएम’ जुड़ गया है। ० मोदी पर निशाने साधने वाले ट्वीट्स तुषार पांचाल के ट्विटर हैंडिल पर बीते वर्षों में नरेंद्र मोदी से लेकर हाल की आपदा में बड़े बड़े बाबाओं तक पर तीखे ट्वीट्स हैं। नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद तुषार ने 13 जुलाई 2015 को ट्वीट करके कटाक्ष किया था- किस्मत हो तो मोदी जैसी हो। सवाल पूछने को ऑफिस में विपक्ष का नेता नहीं,घर पर बीबी नहीं। एक अन्य ट्वीट में तुषार ने न्यूज़ चैनलों द्वारा मोदी का गुजरात कहने पर भी कड़ी आपत्ति की थी। लिखा था कि गुजरात मोदी का नहीं है,मोदी गुजरात के हैं। अभी कोरोना काल में एक मई 2021 को शमशान में जगह की कमी वाली एक ख़बर साझा करते हुए लिखा था -कब जागोगे तुम सब हिन्दू धर्म के भक्षक?इस ट्वीट में रामदेव, श्रीश्री रविशंकर और सद्गुरु जग्गी वासुदेव को टैग किया गया था। रामदेव पर गौमूत्र और आयुर्वेद के नाम पर भी तुषार तीखे ट्वीट करते रहे हैं। सिर्फ़ सात दिन पहले 30 मई के ट्वीट में तुषार ने रामदेव के भक्तों से सीने पर हाथ रखकर क़सम खाने को कहा कि कोरोना या हड्डी टूटने पर एलोपैथी डॉक्टर के पास नहीं जाओगे। इसमें कहा गया है कि आप लोग सिर्फ़ रामदेव की दवा और गाय के घी से ही अपना इलाज़ करवाना। देश की तरक़्क़ी के लिये जय जय श्रीराम के नारे पर भी सवाल उठाने वाले ट्वीट तुषार ने किए हैं। ० ओएसडी बनाने पर बीजेपी में ही बवाल मोदी आदि पर तुषार के पिछले ट्वीट सामने आने के बाद ख़ुद बीजेपी में ही सवाल उठ रहे हैं। मोदी के कट्टर समर्थक और दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने तुषार के पिछले ट्वीट्स के स्क्रीन शॉट लगा कर शिवराज सिंह को टैग करके पूछा है- क्या अब ऐसे लोग आपको चाहिये? भोपाल में भी पार्टी हलकों में चर्चा है कि जो व्यक्ति पार्टी लाइन से इतर मोदी जी तक पर निशाना साधता रहा है उसे ये ओहदा कैसे मिल गया? जानकार यह भी कह रहे हैं कि ख़ुद जिस व्यक्ति के कल तक मात्र साढ़े तीन हज़ार फॉलोअर थे और गिनते के लाइक,रीट्वीट मिलते थे वो कैसा कम्युनिकेशन एडवाइज़र होगा? गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पत्रकारों के पूछने पर सिर्फ़ इतना कहा है कि वे इस बारे में मुख्यमंत्री से बात करेंगे। शिवराज सिंह ने यह निर्णय अपने स्तर पर लिया हो यह संभव नहीं बिना आर एस एस की अनुमति की यह कार्य सिरे चढ़ नहीं सकता। मोदी के पराभव का इससे बेहतरीन दूसरा उदाहरण नहीं मिल सकता। विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी मौका देखकर कूद पड़ी है। उसके प्रवक्ताओं ने भी तुषार के पिछले ट्वीट्स लगा कर सवाल खड़े किए हैं। देश को 80 सांसद देने वाले यूपी का चुनाव 2024 का सेमीफाइनल है। इस मुकाबले में कप्तान बाहर है। जीत का दारोमदार कमज़ोर लोकल कप्तान पर है। निश्चित रूप से खेला मज़ेदार होगा। Post navigation विद्या की एक्टिंग से क्लीन बोल्ड हो गए निर्माता पूर्व आईएएस अधिकारी अनूप चंद्र बने चुनाव आयुक्त, चुनाव आयोग का तीन सदस्यीय पैनल पूरा