लोकमान्य तिलक को 6 साल की सजा सुनाने पर पंडित नेकीराम ने अंग्रेज साम्राज्य को जड़ से मिटाने की खाई थी कसम

बंटी शर्मा सुनारिया

पंडित नेकीराम शर्मा

भिवानी – कठोर दिल अंग्रेजों ने पंडित नेकीराम शर्मा को बेटी की शादी में कन्यादान करने जैसी पवित्र रस्म नहीं निभाने दी, वहीं दूसरी बेटी की असमय मौत होने पर अंतिम यात्रा में शामिल नहीं होने दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाया गया ऐसा कोई भी जन आंदोलन नहीं है,जिसमें पंडित नेकीराम शर्मा का योगदान सराहनीय न रहा हो। पंडित नेकीराम शर्मा का जन्म 7 सितम्बर 1887 को केलंगा गांव में पंडित हरि प्रसाद मिश्र के घर माता बरजो देवी की कोख से हुआ। नेकीराम के परिजन संयुक्त परिवार में रहते हुए अपने जीवन निर्वाह के लिए पंडिताई तथा खेतीबाड़ी का धंधा करते थे। बाल नेकीराम ने अपनी आरंभिक शिक्षा परिवार में ही रहकर अपने दादा पृथ्वीराम मिश्र से प्राप्त की। उनके दादा श्री संस्कृत, हिन्दी ग्रंथों के अच्छे ज्ञाता थे और पंडिताई में निपुण थे।

नेकीराम ने अपने बाल्यकाल में ही रामचरितमान्स जैसे महाकाव्य की अनेक चौपाईयां कंठस्थ कर ली थी। नेकीराम ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सीतापुर, बनारस व अयोध्या में सात वर्ष (1900-07 ) रहकर शिक्षा ग्रहण की। अपने विद्यार्थी जीवन में ही नेकीराम को न केवल शिक्षकों तथा सन्यासियों से ही रूबरू होने का अवसर मिला, बल्कि बनारस में रहते हुए देश के श्रेष्ठ नेताओं से मिलने व उन्हें सुनने का सुनहरी मौका मिला। दिसम्बर 1905 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस का सालाना अधिवेशन बनारस में हुआ,जिसमें वे सम्मिलित हुए। सन् 1907 में नेकीराम अपनी शिक्षा दीक्षा समाप्त कर, अयोध्या से अपने पैतृक गांव केलंगा लोट आए। अब नेकीराम 20 वर्ष का युवक हो चुका था। उनका विवाह राणीलावास गांव की नान्ही देवी से कर दिया गया। इस दम्पति के घर तीन बेटे व सात बेटियों का जन्म हुआ,जिनमें से केवल एक बेटा वैद्य मोहनकृष्ण शर्मा तथा चार बेटियां चन्द्रकलां, सोमकला, शान्तिदेवी तथा दुर्गा देवी ही जीवित बची।

अंग्रेजी सरकार द्वारा सन् 1907 में सरदार अजीत ¨सह व लाला लाजपतराय को माण्डले जेल भेजना तथा 1908 में लोकमान्य तिलक पर अभियोग चलाना, नेकीराम को सहन नहीं हुआ और वे अंग्रेजी सरकार के घोर विरोधी बन गए। एक रिपोर्ट के अनुसार, 22 जुलाई 1908 को जब लोकमान्य तिलक को छह वर्ष कठोर कारावास की सजा सुनाई गई तो नेकीराम ने न केवल एक दिन का उपवास रखा, बल्कि यह प्रतिज्ञा भी की कि जब तक अंग्रेजी राज समाप्त नहीं होगा, तब तक चैन से नहीं बैठूंगा।

1896- 1906 के दशक में रोहतक जिला जब भयंकर अकाल की चपेट में पड़ा तो सरकार द्वारा लोगों को किसी प्रकार की सहायता न दिए जाने पर दुखी होकर नेकीरामने अभ्युदय समाचार पत्र में सन् 1907 में विपत्ति पर विपत्ति नामक एक सरकार विरोधी लेख लिखा। इसके बाद तो उनके लेख प्राय:सभी समाचार पत्रों में छपते ही रहते थे। उनकी अनुपस्थिति में पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा और राजद्रोह के आरोप में जेल भेजने की धमकी दी। लेकिन वे डरे नहीं। अगस्त 1918 में बम्बई में हुए कांग्रेस के विशेष अधिवशेन के मंच से बोलते हुए , गोभक्त नेकीराम ने ब्रिटिश सरकार को तुरन्त प्रभाव से अच्छी नस्ल की गायों व बैलों के निर्यात पर पाबंदी लगाने की बात कही। सन् 1915 में नेकीराम की गांधी जी से पहली भेंट बम्बई कांग्रेस में दौरान हुई।

1920 के दशक में गांधी जी ने ज्यों ही हरिजन आंदोलन का आह्वान किया, नेकीराम ने उसमें अपना पूरा सहयोग दिया। वे होमरूल आंदोलन के हीरो रहे। नेकीराम को अदालत ने अगस्त 1918 में अपराध मुक्त कर दिया था, पर दिल्ली के चीफ कमिश्नर मि.हेली ने उन पर सार्वजनिक रूप से भाषण करने पर प्रतिबंध अगस्त 1919 तक लगाये रखा। उनको 18 जनवरी 1932 को पिक¨टग आíडनेंस के तहत भिवानी में गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार उनको 3 वर्ष एक मास के कारावास की सजा सुनाकर मुलतान की न्यू सेंट्रल जेल भेज दिया गया। हालांकि उन्हें 30 अप्रैल 1932 को रिहा कर दिया गया। इसके कुछ दिन बाद ही 27 मई को दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया। नेकीराम तीन बार गिरफ्तार होकर 23 मास तक जेल में रहे। जेल में उनको कई बीमारियों का शिकार भी होना पड़ा। अंग्रेजी शासन ने उनको खूब यातनाएं दी। सन् 1943 के अप्रैल माह में जेल में रहते हुए उनको तेज बुखार हो गया,जिसका सही ढंग से जेल प्रशासन ने उनका इलाज नहीं करवाया,जिससे वे लकवे जैसी बीमारी से पीड़ित हो गए।

इसी वर्ष उनकी पुत्री सोमकला का विवाह हुआ,जिसमें वे शरीक नहीं हो सके। इसी वर्ष पंडित नेकीराम शर्मा की बेटी दुर्गादेवी की असामयिक मृत्यु हो गई,लेकिन वे उसके अन्तिम संस्कार में भी उपस्थित नहीं हो सके। नेकीराम को जुलाई 1944 में अंबाला की सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया, पर इसके साथ ही उनपर कई प्रतिबंध लगा दिये गये,जिनको पूर्ण रूप से पालन करने से उन्होंने इंकार कर दिया। फलस्वरूप नेकीराम को एक बार फिर भिवानी से गिरफ्तार कर लिया गया। हरियाणा के इतिहास में नेकीराम प्रथम व्यक्ति थे,जिन्होंने किसानों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर उनको न्याय दिलाने के लिए एक लंबा संघर्ष किया। कर्नल स्टानली स्किनर के साथ चल रहे संघर्ष का फैसला हो जाने पर 24 दिसम्बर 1929 से जब किसान बहुत खुश हुए। इसी खुशी में मिलकपुर गांव के भाईयों ने 30 तोले की एक सोने की माला बनवाई और भेंट करने के लिए भिवानी गये।

गांधी जी को भिवानी पंडित नेकीराम शर्मा लेकर आए थे

पूर्व विधायक डॉ. शिवशंकर भारद्वाज ने बताया कि 22-24 अक्तूबर 1920 को भिवानी में नेकीराम द्वारा अंबाला डिविजनल पोलिटिकल कान्फ्रेेस का आयोजन किया गया,जिसको संबोधित करने के लिए गांधी जी भी पधारे। यहां के कुर्सी रहित पंडाल की व्यवस्था को देखकर गांधी जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कांग्रेस द्वारा इसे अपनाने की इच्छा प्रकट की। इसके बाद कांग्रेस के जितने भी अधिवेशन आयोजित किए गए, उनमें किसी भी वक्ता एवं श्रोता द्वारा कुर्सी पर बैठने की परम्परा को समाप्त किया गया

गांव केलंगा पहुंचकर राष्ट्रपति डॉ.कलाम भी दे चुके हैं पंडित जी को श्रद्धांजलि

25 मई 2007 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम आजाद भी गांव केलंगा में पंडित नेकीराम को अपनी श्रद्धांजलि दे चुके है। राष्ट्रपति डा.कलाम ने नेकीराम शर्मा को एक महान देशभक्त बताया तथा उनके दिखाए मार्ग पर चलने का आह्वान किया। इसके अलावा प्रदेश सरकार ने भी उनके पैतृक गांव केलंगा को आदर्श गांव घोषित कर रखा है और भिवानी के तत्कालीन विधायक तथा पण्डित नेकीराम शर्मा विचार मंच के अध्यक्ष डा.शिवशंकर भारद्वाज के प्रयासों से भिवानी के दिनोद गेट स्थित उनके आवास को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था।

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