यूपी बीजेपी के सोशल मीडिया एकाउंट पर मोदी की फ़ोटो गायब होने का मामला पुराना है।
आप 56 इंच की तो हम 58 की छाती रखते है।
गोरक्षपीठ, गोरखनाथ मठ और नाथ सम्प्रदाय का अपना महत्व है।
सरकार में परिवर्तन की खबरें मीडियाजनित-योगी
मेरी कोई राष्ट्रीय महत्वकांक्षा नहीं-योगी  

अशोक कुमार कौशिक

 देश की राजनीति में यह सर्वविदित है की दिल्ली की कुर्सी लखनऊ से होती हुई जाती है। 80 लोकसभा सीट वाली यूपी दिल्ली के कुर्सी का एक अहम पथ है। भाजपा बंगाल, केरल, तमिलनाडु में साफ हो गई। कर्नाटक में स्थिति उसके अनुकूल नहीं है। राजस्थान में भाजपा के अनेक गुट बने हुए हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना उससे अलग हो गई इसी प्रकार पंजाब में अकाली दल ने उसका साथ छोड़ दिया। मध्यप्रदेश में भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं वही बिहार की सियासत में बदलाव की बात जोरों पर है। हरियाणा मैं किसानों ने गठबंधन सरकार की हालत पतली कर रखी है। अब बाकी बच गए  दिल्ली, गुजरात, छत्तीसगढ़, आसाम तथा उड़ीसा जैसे राज्य जिनके बलबूते दिल्ली की कुर्सी तक नहीं पहुंचा जा सकता।

लेख की शुरुआत हम इस अहम बात से कर रहे हैं आखिरकार संघ के सर संचालक मोहन भागवत ने मोदी और शाह के भोजन के निमंत्रण को क्यों नहीं स्वीकार किया यूपी के विवाद ने जाने से पहले एक सबसे बड़ा प्रश्न है। मोहन भागवत काफी लंबे समय से नरेंद्र मोदी नहीं मिले हैं। रही सही कसर पश्चिमी बंगाल के चुनाव में मोदी शाह और नड्डा को मिली करारी शिकस्त ने पूरी कर दी। उनका तिलिस्म अब बिखरता दिखाई दे रहा है। इस विवाद को तब ज्यादा हवा मिली जब योगी के जन्मदिन पर मोदी शाह व नड्डा द्वारा बधाई संदेश नहीं मिला जबकि राजनाथ सिंह ने बधाई देकर सबको चौंकाया।

उत्तर प्रदेश में बीजेपी का टकराव अभी सतह पर नहीं आया है, लेकिन इतना तय है कि टकराव जबरदस्त है। पंचायत चुनाव में मिली हार और कोरोना मैनेजमेंट में भयानक त्रासदी से बीजेपी की घबराहट बढ़ी है और बात का फायदा उठाने दिल्ली दरबार में उचित अवसर माना। इस महामारी के बीच ही शतरंज की बिसात बिछाई गई हैं। लेकिन जिन योगी आदित्यनाथ को 2017 में मनोज सिन्हा की जगह अप्रत्याशित तौर पर सीएम की कुर्सी सौंपी गई थी, अब वे उसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

 इससे पहले दिल्ली में यूपी को लेकर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, बीजेपी अध्यक्ष के साथ आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की अहम बैठक हुई थी। इस बैठक में यूपी बीजेपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल तो शामिल हुए थे लेकिन सीएम योगी और यूपी बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को नहीं बुलाया गया था। खबरें हैं कि ये बात योगी को बुरी लगी। योगी की सबसे बड़ी नाराजगी का कारण मोदी शाह नड्डा की तिकड़ी बताई जा रही है वह इस बात से खफा है कि यह तीनों राज्य की राजनीति में सीधा हस्तक्षेप करते हैं।  जिला अध्यक्ष से लेकर मंत्री, विधान परिषद की सीट, राज्यसभा सीट तक तय करने की भूमिका अदा कर रहे हैं। मंत्रिमंडल के मंत्री भी इन्हें के इशारे पर नाच रहे हैं।
इसके बाद दत्तात्रेय होसबोले लखनऊ पहुंचे। योगी ने होसबोले को लखनऊ में दो दिन इंतजार कराया और फिर भी उनसे न​हीं मिले। कार्यक्रम न होने के बावजूद होसबोले दो दिन रुके रहे लेकिन योगी सोनभद्र, मिर्ज़ापुर और गोरखपुर के दौरे पर निकल गए। होसबोले से योगी नहीं मिले और वे वापस मुंबई लौट गए। इतवार 6 जून को प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह राज्यपाल से मिल कर कोई बन्द लिफ़ाफ़ा सौंप रहे थे। इसके बाद वह विधानसभा अध्यक्ष से भी मिले।

यह स्थिति दिल्ली के इशारे पर तय की गई । मामले की तह में जाने से पहले यह जानना भी जरूरी है कि नरेंद्र मोदी 1986 में भारतीय जनता पार्टी में आए। उस समय मुरली मनोहर जोशी की तूती बोलती थी। मुरली मनोहर जोशी की अनुशंसा पर ही उन्हें भाजपा में शामिल किया गया। उस समय मोदी ने अपने साथ जिन दो लोगों को भाजपा में शामिल कराया उसमें अमित शाह व आनंदी बेन मुख्य है। अमित शाह को युवा मोर्चा का कोषाध्यक्ष बनाया गया और आनंदीबेन को महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनाई गई। 

आज आनंदीबेन उत्तर प्रदेश की राज्यपाल है जो लिफाफा प्रभारी राधा मोहन सिंह की ओर से देने की बात सामने आ रही है उसका एक प्रमुख कारण उपरोक्त है। उनको भली-भांति यह समझाया गया कि यदि आदित्यनाथ योगी राज्यपाल को विधानसभा काम करने की अनुशंसा करते हैं उस स्थिति में उन्हें क्या करना है। यही बात विधानसभा अध्यक्ष को इस स्थिति में उनकी भूमिका के बारे में बताया गया होगा। संभवत ऐसी स्थिति अगर बनती है तो राज्यपाल आदित्यनाथ योगी को कह सकते हैं कि आप अपने विधायकों से बात कीजिए और विधानसभा सत्र बुलाए। ऐसी परिस्थिति में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाएगी। बताया जा रहा है लगभग 200 के करीब विधायक आदित्यनाथ योगी के खिलाफ हैं।

पिछले चार साल में ये पहली बार हुआ है जब आरएसएस और बीजेपी की बैठकों में मंत्रियों को अकेले-अकेले बुलाकर फीडबैक लिया गया है। लेकिन मीडिया में मुख्यमंत्री बदलने समेत बड़े बदलाव की चर्चाओं ने यहां आकर दम तोड़ दिया कि केंद्र से भेजे गए पैराशूट कंडीडेट एके शर्मा को योगी ज्यादा से ज्यादा राज्यमंत्री बनाने को तैयार हैं। वह सत्ता का दूसरा केंद्र नहीं बनाना देना चाहते।

खबरें हैं कि केंद्रीय नेतृत्व योगी को रबर स्टांप जैसा रखना चाह रहा है लेकिन योगी की महत्वाकांक्षाएं अब सातवें आसमान पर हैं। संघ और बीजेपी के ​जिस तबके को कट्टरतम हिंदू नेता चाहिए, उनके लिए योगी भविष्य की आशा हैं। उनके समर्थक जब तब ​’हमारा पीएम कैसा हो, सीएम योगी जैसा हो’ ट्रेंड कराते रहते हैं।

लाख पर्देदारी और मीडिया मैनेजमेंट के बावजूद उत्तर प्रदेश की जनता के बीच ये बात फैल गई है कि योगीराज में ठाकुरवादी जातिवाद हावी है और बाकी जातियों के लोगों को किनारे लगा दिया गया है। प्रदेश का शासन अधिकारी चला रहे हैं, मंत्रियों और विधायकों की कोई पूछ नहीं हैं। ये धारणा पार्टी के नेताओं ने ही फैलाई है कि जैसे केंद्र में मंत्रियों और सांसदों की कोई हैसियत नहीं है, वैसे ही यूपी में विधायक और मंत्रियों की कोई नहीं सुनता। पर यही स्थिति दिल्ली में भी तो बनी हुई है।

दो हफ्ते से लगातार संघ और बीजेपी के बड़े नेताओं की बैठकों का दौर चल रहा है लेकिन इन बैठकों का कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। बाहर कहा जा रहा है कि पार्टी और सरकार के बीच सब ठीक है लेकिन खामोश तनातनी जबरदस्त हलचल की ओर इशारा कर रही है। 

उधर अंग्रेजी अखबार में सीएम योगी का विशेष इंटरव्यू में योगी ने नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को खारिज किया है। मीडिया में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं लेकिन इन अटकलों एवं चर्चाओं पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहली बार बयान दिया है।

उन्होंने कहा कि लखनऊ और दिल्ली में हुई मीटिंग सामान्य है।टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में सीएम योगी ने नेतृत्व परिवर्तन से लेकर कोरोना संक्रमण और आगामी विधानसभा चुनाव के बारे में खुलकर अपनी बात रखी है। नेतृत्व परिवर्तन की संभावना योगी ने खारिज की। इस इंटरव्यू में योगी ने सीएम बने रहने का दावा किया है। उन्होंने कहा की वह निष्ठा के साथ काम करते रहेंगे।

योगी को लेकर मोदी शाह और नड्डा की हालत अब वैसी हो गई है कि न उगलते बन रहा है, न निगलते बन रहा है। मोदी शाह नड्डा अब योगी को हटा भी नहीं पा रहे है। उनके नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही है

सबसे दिलचस्प ये है जिन योगी आदित्यनाथ को हटाने के प्रयास की चर्चाएं हैं, उनके समर्थक उन्हें पीएम कैंडिडेट के रूप में देख रहे हैं। कभी कद्दावर नेता और बीजेपी के संस्थापक लालकृष्ण आडवाणी को किनारे करते हुए नरेंद्र मोदी दिल्ली के आसमान पर छा गए थे। क्या आज योगी आदित्यनाथ भी उसी रास्ते पर हैं? ये उदाहरण तो नरेंद्र मोदी ने ही पेश किया ​था। अगर योगी आदित्यनाथ इस पर अमल कर लेते हैं तो इतिहास बहुत कम समय मे ही खुद को दोहराएगा।

यूपी बीजेपी के सोशल मीडिया एकाउंट पर मोदी की फ़ोटो गायब होने का मामला

यूपी बीजेपी के सोशल मीडिया एकाउंट पर मोदी की फ़ोटो गायब होने की तस्वीर वायरल हो रही है । पोस्टर से मोदी की फोटो गायब होने को लोग मोदी-योगी के विवाद से जोड़कर देख रहे हैं । कवर फ़ोटो में मोदी की गायब तस्वीर को ताजा विवाद से जोड़ना एकदम गलत है । क्योंकि ये कवर फ़ोटो हाल फिलहाल में नहीं बदला गया है । 21 अगस्त 2019 से यही कवर फ़ोटो लगा हुआ है । 2019 में तो विवाद की कोई खबर भी नहीं थी । लगभग तभी केंद्र में बीजेपी जीतकर दूसरी बार सत्ता में आई थी । राज्य सरकार की प्रत्येक योजना में नरेंद्र मोदी के फोटो  लंबे समय से नदारद है।

वैसे बीजेपी के लगभग सभी राज्यों के सोशल मीडिया एकाउंट पर मोदी की फ़ोटो लगी है । मैंने बीजेपी के लगभग सभी राज्यों के एकाउंट को खंगाला है तो मुझे दो राज्यों के सोशल एकाउंट मिले हैं जिनमें मोदी की फ़ोटो नहीं लगी है । एक उत्तर प्रदेश दूसरा असम । 

असम बीजेपी के एकाउंट पर भी मोदी की फ़ोटो नहीं है । असम में हाल ही में बीजेपी चुनाव जीती है। जबकि कर्नाटक बीजेपी का एकाउंट देखोगे तो उसमें भी मोदी की बहुत छोटी सी फ़ोटो लगी है । 

गोरक्षपीठ, गोरखनाथ मठ और नाथ सम्प्रदाय का महत्व

गोरक्षपीठ, गोरखनाथ मठ और नाथ सम्प्रदाय के बारे में बहुत सारे लोगों की जानकारी थोड़ी सतही है इसीलिए वो संघ प्रलाप कर रहे है हर जगह आज कल राजनीतिक विमर्श में। 

गोरखनाथ मठ का राजनीति से पुराना संबंध है बल्कि आपको जानकर हैरानी होगी कि महंत दिग्विजयनाथ ने 1921 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। चौरीचौरा कांड में वो शामिल भी थे, गिरफ्तार भी हुए थे।  बाद में वे हिंदू महासभा के साथ जुड़ गए। आप सब को तो पता ही होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म ही 1925 में हुआ है। अवेद्यनाथ जी तो 1991 में भाजपा से जुड़े उससे पहले तो मठ का भाजपा या संघ से कोई संबंध ही नहीं था।

पूर्व के गोरक्षपीठाधीश्वर ने कई प्रयास किए थे हिंदुओं को एक मंच पर एकत्र करने के जिसके कारण संघ उनसे प्रतिद्वंदिता रखता था और इसीलिए विश्व हिंदू परिषद की स्थापना एम एस गोलवालकर ने की थी। 

संघ कोई आधिकारिक प्रतिनिधि संस्था थोड़े है हिंदुओं की और न ही विश्व हिंदू परिषद है। हिंदुत्व तो फलता फूलता है मठों में, मंदिरों में और हमारे जिंदगी जीने के तरीकों में। राम मंदिर के लिए जितनी बड़ी लड़ाई गोरक्ष पीठ और हिंदू महासभा ने लड़ी है उतनी बड़ी लड़ाई किसी ने नहीं लड़ी है। और मैं उनको अज्ञानी मानता हूं जो राम मंदिर का श्रेय मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी को बांटते फिरते हैं।

ये भारतीय राजनीति का संक्रमण और प्रदूषण काल चल रहा है और मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि नरेंद्र मोदी और उनकी मंडली ने भारतीय राजनीति के साथ हिंदुत्व की राजनीति को भी प्रदूषित कर दिया है। 

संघ को हिंदुओं की जरूरत है या हिंदुओं को संघ की? आप जब इस सवाल का उत्तर ढूंढेंगे तो आपको समझ में आ जायेगा कि चीजें जितनी सीधी और सरल दिख रही होती है असल में वो उतनी सीधी और सरल होती नही है।

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